पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५८४

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दिया। १०२१ ई०को दिनके मध्य कालिनिया पालिश्नर कानिरिका( स०सी० ) कालिज डोष संत्राया मुसलमान इतिहास लेखक फरिस्तेके कथनानुसार कन-टाणपत रत्वम्। बिहक, मिसोत । १०७ शताब्दको केदार नामक किसी व्यक्तिने कालि. कालिङ्गो (स. स्त्री० ) कालिङ्ग-डोष । १ गजकर्कटी, घर खापन किया था। मुसलमानोंके इतिहासमें किसी प्रकारको ककड़ी। २ कलिङ्गदेशीया स्त्री, लिखा कि गजनी पाक्रमण करनेको जाते समय कनिक मुल्कको औरत । ३ एक नदी । कालिनरके राजाने साहोरके राजा जयपालको साहाय्य कालिज (अं• पु० College ) १ विद्यालय, पाठशाला, १००८० को मुहम्मद गजनवीने जब ४थै बड़ा मटरमा । उसमें उच्च शिक्षा दी जाती है। वार भारत पाक्रमण किया, तब पानन्दयामके साथ कालिज (हिं. पु.) पक्षिभेद, एक चकोर । वह पेशावरदेवमें एक युद्ध हुवा। उसमें कालिञरके शिमले में होता है। राला चानन्दपालकी पोरसे लडे थे। काग्निचर (कामचर)-युक्त प्रदेशके बांदा मिलेका कामिनरराजने कन्नौज राजाको पराजित किया। (बुन्देन् खण्डके अन्तर्गम) एक नगर । वह अक्षा. १०२२९०को मामूद गजनवी कालिष्वर पर चढ़े थे, २५.११० तथा देशा०८०३२ ३५“पू. में वांदा किन्तु अन्तको सन्धि करके लौट गये। १२०२ ई०को नगरमे १६ कीस दक्षिण विधवाचलके अन्तर्गत एक महम्मदगोरीके प्रतिनिधि कुतुव-उद्दीनने कालिन्नर. शाखा पर्वत पर अवस्थित है। पर्वतका दूसरा भी नीत वहां मसजिद प्रादिको निर्माण कराया। प्रल सच्च स्तर है। निम्नस्तरमें उक्त नगर स्थापित है। वह फिर हिन्दुवोंके अधिकारमें चला कालिचर प्राध कोस विस्त त और चागे पोर प्राचीर- गया। १२५१६०को मासिक नसरत-उद्दीन मुहम्मदने वेष्टित है। नगर भूमिसे ५३० हाथ ऊंचा होगा । उसे जय किया था। किन्तु प्रस्तरलिपिके प्रमाणसे लोकसंख्या ४ हजारसे कम है। सम्मध्य बाधव कुछ मालूम पड़ता है कि उसके पीछे फिर कालिझर अधिक है, काछी लोग भी कम नहीं दीख पड़ते । हिन्दुओंके हाथ लगा। १५३० २० को सम्राट हुमा- वहां पुलिसका धाना, डाक बंगला, बाजार, विद्याः | यूनने कालिञ्जर पाक्रमण कर १२ वत्सर काल घेरा सय और भौषधामय विद्यमान है। डाता था। हुमायूनके भारतसे चले जाने पर १५४५ कामिनर पति पुराकानसे महातीर्थ माना जाता ई० को सम्राट् शेरशाइने फिर कातिचर अवरोध है। रामायण (उत्तरका ५० स०), महाभारत (वन. किया। २२ वीं मईको शरणाहको तोपका गोला ८५०) हरिवंश (२११०) और गरुड़, ब्रह्माण्ड, पहाड़से लग वापस जा उनके बारुदखानेमें गिरा था। मत्स्य, पन प्रभृति पुराणमें उस महातीर्थका उसख मिलता है। उससे एक अग्निकाण्ड उपस्थित हुवा। शेरशाह पास पद्मपुराणोय कालसर-माहात्म्यमें लिखा है- हीथे। वह उसी पग्निकाण्डमें जम गये। उससे "अर्ध योजनविस्तीर्ण वत् चैव मम मन्दिरम् । उनका मृत्य भी दुधा। मृत्य यन्त्रणा भोग करते ही कालंजरसि विक्षया मुभिर्द शिवसबिषौ। उनको संवाद मिला कि दुर्ग मुसलमानोंके हाथ लगा गनायो दचिरी मार्ग कालघर रवि यमः। सबसीर्थफल' सब पुण्या व घमन्तकम् । था। उन्होंने ईश्वरको धन्यवाद दिया और उसी समय कालभर मम चेव मास्ति धायगोलकै ।" (म.) उनका प्राणवायु. निकल गया। २५वीं मईको शेर- दो कोस विस्त त वह क्षेत्र ही हमारा (शिवका)| खानके पुत्र जलासखान् नवाधिवत कालिन्तरमें मन्दिर है। शिवसविधिप्रयुक्त वही कामञ्जर सक्ति- पिळपद पर अभिषिक्त हुये। १५७०ई० को वह एक दायक कहाता है। गङ्गाके दक्षिण, मागमें कालजर खसम्म सरकारके अधीन किया गया। उसके पीछे क्षेत्र अवस्थित है। कालपरके- समान- पवित्र क्षेत्र - कालिचर. बोरक्त रानाको जागीरको भाति अर्पित भूमण्डलमें दूसरा नहीं। वहां सकल तीर्थका फस : हुवा। कुछ दिन पीछे उन सान बुन्देलोंके हाथ समाः और अनन्त पुण्य मिलता है। बार बहुत दिन बुन्देसोका वहां अधिकार राम Vol.' IV. 147