काल्पग 1-कात्मक कानपुरसे बम्बईको ग्रेट इण्डियन पेनिनसुला कटे है। नीदीवंशीयोंके समय जिसप्रकारको हयं- रनवे कालपी होकर गयौ है। कालपीटेशन भी है। प्रणाली प्रचमित थी, इसी गठमके साथ काली की समारतको भी बराबरी देख पड़ती है । गुम्बज सम- यमुनापर पका पुत्र बंधा है। कासपीमें एक अतिरिक्ता सहकारी कमिशनर चतुष्कोण है। उसकी एक दिक, बाहरी पोरसे नाश्ने पर हाथ दोध और ५३ हाथ उच्च होगी। भीतरका रहता है । कई अदालतें, पुलिस थाने, औषधालय और विद्यालय भी हैं। स्थान शतरंजकी बिसात जैसा है। एक एक और पाठ भाठके हिसाब सब ६४ स्तम्भ है । स्तम्भ पर दोनो काल्मक-चीनतातारवासी इलियों की एक शाखा ओर ४४९ कर मेहरा नगी है। त चारो काल्पक अपनेको वलीट कहते हैं। वह जंगर, तागत, और समतल है । मध्यस्थतसें गुरबज बना है । चारो चौसद और तारवेत चार जातियों के मध्य बन्धुतामें कोण पर चार छोटे छोटे दूसरे गुम्बज देखने में बहुत प्रावह हैं। ९६१९ ई. को उन्होंने बलवान हो राज्य सुन्दर हैं। उसको पोर दृष्टिपात करनेसे मनमें एक स्थापन किया था। प्रायः एक शताब्द काल उनका प्रकारका अपूर्व भाव उदय होता है। ठीक निर्णय राजत्व चना । औषको काल्पक चीनावों के अधीन हो किया जा नहीं सकता-उसका चौगसी गुम्बज नाम क्यों गये। तुर्की खलीमक (अर्धात् पश्चात् परित्यता) वा पड़ा। सम्भवत: चालीस गुन्यजसे चोरासी गुम्बज नाम मनोलीय घोलएम के (पग्निराशि ) अथवा मङ्गोलीय पड़ गया होगा। वह धाधुनिक नगरको पश्चिमदिक काल्पक (अर्थात् दुर्दान्त लोग ) शब्दसे उनके नामकी है। भूतन नगरको पश्चिमटिक् गणेशगन और तार• सत्यत्ति है। युयेन वंशका प्रधापतन होनेसे एक दन नामगन है। वहां विलक्षण व्यवसाय होता है। गोची मरके दक्षिण गया और 'कोकनर इद पर्यन्त श्रीवाजार नामक स्थानमे सन् ८५३ हिजरोको एक फैल पड़ा। उसी वंशके कुछ वंशधर १५७१ ई. को थिलालिपि देख पड़ती है। फिर पट्टी गलीके प्रवेश महाकष्टसे चीन देशको लौटे थे। काल्पक पौर उज- हार पर सन् १०८१ हिजरीको और शेख अब्दुम्न वक लोग एक मूश जातिसे उत्पन्न हैं । वाम परिवर्तन गफुरके कूपपर सम्राट पौरङ्गजेबके राजत्त्वझे द्वादश करनेसे वह काल्पक कजाक और खरजि नातिक वर्षको एक लिपि पद्यापि विद्यमान है। साथ एक प्रकार मिल गये हैं। वह चार प्रधान राजा वीरवलने कालपी नगर में ही जन्म लिया शाखा विभक्त हैं । यथा-१ खासकोट वा चोमद- था। वह नासिके ब्राह्मण थे। पहले उनका नाम महेश वह युद्ध व्यवसायो हैं । उनको संख्या प्रायः ६००.. दास था । वीरवल सम्राट अकबरके दक्षिण रस्त थे। है। वह काकनर इदके निकट रहते हैं। फिर उनमें कालपीको लोकसंख्या- धानका प्रायः साड़े चौदह कुछ लोग एशियास्थ कसको इटिश नदीके तौर जाकर हमार होगी। वर्षाकालकर झांसी और कानपुर जानेके वसे हैं। शेषको उनको द्वितीय शाखा जङ्गरीमें मिल लिये पहले यमुना पर नौका पा सेतु बनता था । गयी है। उक्त जातीय दूसरा दल युरोपीय रूसके पस्त्रा. बहुतसे खेवेके घाट भी हैं । उरई, हमीरपुर, वांदा, कान जिले में रहता है।३ नगर-चीन राज्य परिम जालौन पौर झांसी जानेके लिये कई उत्तम जुङ्गरिया राज्यमें उमका वासस्थान है। उसी के नाम- कालपोसे निकले हैं। वहांसे कई, और धनाज कान- से वह ख्यात भी हो गये हैं। उनकी संख्या प्राय: पुर, मिर्जापुर और कलकत्ते मेजा जाता है। नदीक २००० है । ३ उरेट, तागत या टासद । वह जुरिया राह भी अनेक पण्य ट्रव्य पाते जाते हैं। कानदी में छोड़ घुसपोय रूसको डन और इलि भदौके तौर जा बदियां मिसरी बनती है। कागजका कारखाना भी कर रहे है । उनको संख्या पाय- १५०...है। वह है। कालपीका कागज बहुत अच्छा होता है। पहले आजकल डन कन्जाकोंके साथ प्रायः मिल गये हैं। कायोका कागज सुप्रसिद्ध था। ४ तागत-वह १६३. ईको जुङ्गारिया छोर पक्षा Vol IV. । पथ 153
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