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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६०७

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काल्य -कावाद सरल नदी तीर रहने लगे । उन्हें पाज भी लोग "बल्गावासो" ढक इनङादेशश्च । कम्त्याच्यादौमामिनट च । पा। 8URI कास्मक कहते हैं। १ कल्याणौके पुत्र । (वि.)२ कल्याणीसे उत्पन्न । काल्मक भिन्न दूसरी किसी मङ्गोलीय वा तुर्क | कावासोक्कत (वै. वि. ) गना किया हुवा। जातिके तुर्कस्थानवासियों को प्राकृति प्रकृतिसे उनका "काल्वालोकता हैब नई पृथिव्यास नौषधय पासुन धनम्पतयः।" पूर्ण सौसादृश्य नहीं पड़ता । त्रयोदश शतवर्ष पूर्व (मंक २ । १।३) जरनाण्डिसने हूगा जातिको वर्णना की थी। उसके | काल्हि (हि.) कल देखो । साथ कालाकीका ही सम्पूर्ण सादृश्य देखा जाता है । काय (सं० ली.) कविर्देवता ऽस्य, कवि-पण । साम- किसी समय इण दक्षिण युरोपमें फैल गये थे । विशेष। उसके देवता कवि है। काल्मक-खर्वकाय, विस्त त स्कन्ध, दीर्घ मस्तक, कावचिक (सं० लो०) कवचिनां समूहा, कवचिन्-ठञ् । रक्षाभ गात्रवर्ण ( नातिकप्णवर्ण ), अर्धमुदितनेत्र, ठठ कवचिनय । पा ४ । २ ।।५। १ वर्मधारी योहगण, जिरह निम्नमुख-नासिक, प्रशस्तनासारन्ध्र और बखतर पहने हुये लोगोंका गिरोह । (त्रि०)२ कवच- कुञ्चित एवं अर्ध्वकेश होते हैं। वह मुगम और मञ्च, सम्बन्धीय, वखतरके मुतालिक । लोगोंकी सूल जाति गिने जाते हैं। काल्मक भ्रमण- कावट (सं० पु०) कट, १०० गाओंका परगना शौल, प्रखपृष्ठवासी और बहुत ही युद्धप्रिय हैं । वह या जिला। साधारणतः यवक सत्तू पानी में घोल कर खाते और | कावड़ा-बङ्गाल में रहनेवाली. एक जाति । कावडा कुमिश नामक एक प्रकार पानीय ( घाटकीके सड़े चौरी करनेवाले कहाते हैं। परन्तु उनमें बहुत से लोग दुग्धसे प्रस्तुत) पीते हैं । १८२८ ई० को रूसस्थ काम- खेती भादिके सहारे भी जीविका उपार्जन करते हैं। कांकी शिक्षाके लिये विद्यालय प्रतिष्ठित हुये थे । कावर (हिं. पु.) १ अस्त्रविशेष, एक छोटा बरछा। सन विद्यालयों की शिक्षासे वह सभ्य और शिक्षित वह जहाजको गलहीमें बांध कर रखा जाता है । और ईसाई बन रहे हैं । किन्तु पनेक काल्मक भाज कावरसे हवेल आदिको मारते हैं। भी बौद्ध ही हैं। कावरी (हिं० स्त्री०) मुद्दो, रस्मोका फंदा । वह दो काल्य (सं० ली.) कल्यमेव स्वार्थे अण, कलयति ढोली रस्सियां बंटनेसे बनती है । जहाजमें उससे चेष्टां वा, कलि-यक् प्रजादित्वात् प्रण । १ प्रत्यूष, चीजें बांधी जाती हैं। सवेरा । (त्रि०) २. प्रात:काल कर्तव्य, सवेरे किया | कावरक (सं० पु०) १ पेचक, उन्न । (त्रि.) २ भयानक, जानेवाला। खौफनाक I. ३ स्त्रीभक्त, जोरूका गुलाम । "प्रमाते काख्यमन्याय चक्र गौदानमुत्तमम् ।" (रामायण, १1३४) कावली (हि. स्त्री.) मत्स्यविशेष, किसी किसकी कात्यक (मं० पु०) काले साधुः काल-यत् खार्थे कन् मछली वह दाक्षिणात्य को नदी में देख पड़ती है। प्रामहरिद्रा, कच्ची हलदी। कावष (सं. ली.) सामविशेष। काल्या (सं० स्त्री०) काला प्राप्तो ऽस्याः, काल-यत् टाप् । कावषेय (सं० पु.) यजुर्वेद के एक ऋषि । १ गर्भग्रहणप्राप्तकाल रजस्खला गा, उठी हुयी गाय, कावा (फा० पु..) चक्राकार भ्रमण, चक्कर, भांवर । उसका अपर संस्कृत नाम उपसर्या है । २ प्रतिवत्सर घोडेके गलेकी रस्सी पकड एक आदमी खड़ा हो प्रसवशीला गौ, हर साल व्यानेवाती गाय । जाता और उसे काटनेके लिये अपनी चारो ओर काल्याणक ( सं० ली.) कल्याणस्य भावः, कल्याण घुमाता है। उसीको मायः कावा करते हैं। इन्हमनौशादिभ्यय । पा५१११३॥ कल्यागता, कावाद (सं० पु. ) कु ब्रुत्सितः देषत् वा वाम, कोः भलाईका भाव । कादेशः । वाक्यके द्वारा कलह, जबानी झगड़ा, काल्यापिनेय (सं.पु.) कल्याया-प्रपत्य कल्याणी चिकचिक।