काव्य सकल चढ़ता है वाले माह्मणोंका वास है। वही ब्राह्मण अम्बा बा रसात्मक वाक्य हो काय है । दोष इसका पपकर्षक कावेरीदेवी का पौरोहित्य करते हैं । वह होता है गुण, अलङ्कार और रीतिसे काव्यका उत्कर्ष शाकान्नभोजी हैं । अपरापर कोड़ग ब्राह्मणों के साथ उनके विवाहका आदान प्रदान नहीं होता। "पानन्दविशेषजनकवाक्य कान्यम् । (रसगदाधर) कावेरोके प्रवन्न तरङ्गसे देश और शस्यको बचाने के जिस वाक्यद्वारा मनमें विशेष प्रानन्द पाता, वही नाना स्थानों में हिन्दू राजावोंके बनाये काव्य कहता है। पत्थस्के बांध मौजूद हैं । उनमें श्रीरङ्ग के निकट "कविया निर्मितिः काव्यम् । याच मनोहरचमत्कारकारिणी रचमा ।" प्रधान बांध है । वह एक पत्थरसे बनाया गया है । (कौस्तुम) बांध १०४० फीट दीर्घ और ४० से ६० फीट तक मनोहर एवं चमत्कारकारिणी रचना विशिष्ट विस्त त है । तुष्टीय ४ थं शताब्दसे पहने कविवाक्य द्वारा जो बनता, उमे ही विद्वान काव्य वह प्रस्तुत कहते हैं। हुवा था। किन्तु आज भी उसे पुराना कह नहीं सकते प्रथमत: वह उत्तम, मध्यम और अधम मेदसे पूजा कालको गङ्गा प्रभृति तीर्थ भावाहन करनेके तीन प्रकारका होता है । यथा-ध्वनि, गुणीभूतव्य मन्त्र बावरी नदीका नाम अन्तर्निविष्ट है,- और चित्रकावा। अतिशय व्यङ्गयाथ एवं वाच्या अपेक्षा ध्वनि "गह च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति । मर्मदे सिन्धु कावरि नन्वेस्मिन् सन्निधि करु" (तीर्थ वाइम मेंब) अधिक रहनेसे उत्तम, गुणीभूत व्यङ्ग सगनेसे मध्यम कावेरीका जल स्वादु, श्रमध्न, लघु, दीपन, दद्रु, और शब्दचित्र तथा वायचित्र चढ़ने एवं व्यंग्याय- साष्टप्न और मेघा बुद्धि एवं रुचिप्रद है । (राजनिघण्ट' शून्य पड़नसे अधम काव्य कहाता है। कुत्सित अपवित्र गरीरं यस्याः । २ वेश्या, रण्डौ । उक्त काव्य प्रकारान्तरसे विविध है-महाकाव्य ३ इंरिट्रा हनदी। और खण्डकाव्य | महाकाव्यम सर्गवन्धन पायेगा काव्य ( सं० लो०) वेरिदम्. कवेः फर्म भावो वा, और एक देवता अथवा मट्वंशजात धीरोदात्त गुण- कवि-ध्यन् । १ कविताप्रन्य, शायरीको किताब । युक्त एक नविय किंवा एकवंशीय मत्कुलजात २ कुशल, क्षेम, खुशहानी। ३ बुद्धिमत्ता, अलमन्दी । बहुतर राजाको नायक बनाया जायेगा । गृङ्गार, वोर और शान्तके मध्य एक रस उसका प्रीभूत होगा । ४ रसयुक्त वाक्य, मीठी बोली। समस्त रस एवं समस्त नाटकसन्धि, इतिवृत्त अथवा "काव्यं यथार्थ कसे व्यवहारविद शिविसरपतये। सद्य:परनिहत्ये कान्तास मिवतयोपदेगयुने।" (कान्य प्रकार) अन्य सज्जनाधित चरित उसके प्रा है। महाकाव्यके यशा, अर्थ, व्यवहारज्ञान, प्रमङ्गल विनाश, सद्यः वर्ग चार हैं। उनमें एक फल है। प्रथम नमस्कार, परम निवृत्ति और कान्ता सकलके उपयुक्त उपदेश पाशीर्वाद, वस्तुनिर्देश, खलनिन्दा अथवा सजन प्रयोगके निमित्त ही काव्य है। गुणानुकीर्तन करेंगे। मर्गके प्रथम एकविध वृत्तछन्दः द्वारा पौर सके शेषभागमें अन्यविध वृत्त द्वारा रचना "चतुर्यफलप्राप्तिः सुखादसधियामपि । काव्यादेव यतस्तेन तलस्वरूप निरुत" (साहित्यदर्यक) की जायगी। इस प्रकारके पाठ सग लग सकेंगे, जो कात्यमे अल्प बुहि व्यक्ति भी पनागस धर्म, न बहुत अल्प और न बहुत दीर्घ रहें। किसी किसा- अर्थ, काम और मोक्षरूप चतुर्वर्ग फल पाते हैं । प्रत के कथनानुसार नाना वृत्तछन्दः द्वारा सर्गरचना भी एव काव्यका स्वरूप निरूपण करते हैं। हो सकती है। उनमें प्रति संगके अन्तपर भावो मर्गको कथा-सूचना रहेगौ । सन्धया, सूर्य, चन्द्र, रावि, "काव्यं रसात्मक वाक्य दोषासस्थापकर्षकाः । उत्कर्ष नवः प्रोका गुणानकाररीतयः ॥” ( साहित्यदर्पच) प्रदोष, अन्धकार, दिवस, प्रासः, मध्यान्ह मृगया, पर्दन, . ।
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