ताल्लुक रखनेवाली। कावार -कावरी कारी-प्रपात है। प्रायः १५. हाथ मे जन नो. कावार ( म० क्लो) जलं पाणति, क-प्रा. . को उतरता है। वहां दृश्य मनोमुग्धकर है। शिव- पण । शैवाल, सेवार। काधारी (सं. स्त्री० ) कावार-डीए । दृगादिच्छव, समु ट्रसे कावेरीके अपर पार पर्यन्त हिन्दू राजाओं के घासको बनी इतरी। उसका संस्कृत पर्याय-जङ्गम बनाये दो सुदृढ़ प्रस्तरसेतु हैं। यानी उन्हीं सेतुसे कुटी और भ्रमत् कुटी है। शिवसमुद्रके दर्शनको जाते है। काविराज ( स० स्त्री.) छन्दो विशेष, एक बहर । महिसुरमें कावेरीको कई या खा । यथा- उसमें +१+e अक्षर होते हैं। हेमवती, लक्ष्मणतीर्थ, खोकपावनी, शिंथा, अर्कवतो, कायो (म स्त्री० ) कवेरियम कवि-प्यञ्-डोन-यस्तोपः । सुवर्गवती या होल्नु होला । वहां तन्नोर और त्रिचना- गारवायनो अन् : पा1१1। कविसम्बन्धीया, शायरसे पल्लीके अभिमुन कई नाले निकल गये हैं । उनमें कालिदम ( कोलरुण ) नामक नाता ही प्रधान है। काक (पु.) कुत्सितो हक इव, ईषत् हक मन्द्राज विभाग, कावेरीको निम्नलिखित कई इव वा, कोः कादेशः । १ कुकुट, मुरगा।२ चक्रवाक, भाडा -भवानी, नोयेन, अमरावती । चकवा।३ पीतमस्तक पक्षी, पीली चोटीको चिडिया। रामायण, महाभारत प्रमृति प्राचीन ग्रन्यों में कार (सं. क्लो० ) कस्य सूर्यस्येव आ ईषत् बेरं कावेरी पुण्यतोया मानी गयी है । हरिवंशके मता- भन यस्य ज्योतिर्मयत्वात् । कुखम, रोरी। नुसार युवनाश्वके शापसे गहाने शरीराधभागसे कावेरक ( स० पु.) रजत नाभिकै गोवापत्य । युवनाख की कन्या बन जन्मग्रहण किया था । उन्हों का कावेरिका ( स. स्त्री. ) कावेरी स्वार्थे कन-टाप नाम कावेरी है । जङ्ग, मुनिने उनका पाणि- ईकारस्य इस्वत्वम् । कावेरी नदी। ग्रहण किया। कावेरोके ही गर्भसे जह के सुनह कावेरी (सं० स्त्री.) के जलमेव वैरं शरीरमस्या, नामक एक धार्मिक पुबने जन्म लिया। (हरिव'श,२५०) कवेर-अण् । तस्य दम् । पाइ॥ ३६१०। १ दक्षिणापथकी शरीराधभागसे जन्म लेने के कारण कावेरी एक महानदी, दक्खिनका एक वडा दरया । वह "अगङ्गा" नामसे ख्यात हुयो हैं । स्कन्दपुराणोय अक्षा० १२२५०० तथा देशा० ७५. ३४ पू० पर कावेरीमाहामा में लिखा है,- कुरग राज्यमें पश्चिमघाटके ब्रह्मगिरिसे निकल दक्षिण "ब्रह्मतनया विष्णु माया वा लोपामुद्राने पिता पूर्वाभिमुख महिसुर अधित्वका अतिक्रम कर मन्द्राज श्रादेशसे कावेरी नामक किसी मुनिकी कन्या ही जन्म- प्रदेशके मध्यसे वनोपसागरमें जा गिरी है। कुरग ग्रहण किया था । फिर कावेरी मुनिके आनन्दवर्धन राज्यमें कावेरीको गति प्रति वक्रभावापन्न है । और मानवगणके पापमोचनको वह नदीपसे प्रवाहित गर्भ प्रस्तरमय है। उभय तौर नाना हक्षसमाकीर्ण है। हुयो।" कहनूर, कुम्भहोल, ककावे, मुत्तरमुत्त, चिकहोल तसकावेरी और भागमण्डन नामक प्रथम सनम पौर सुवर्णवती नानी कई उसको शाखानदी हैं। स्थान पर पति प्राचीन देवमन्दिर है। कार्तिक कावेरी नदी महिसुर राज्य में अल्प परिसरने मास सहन महसू तीर्थयात्री उक्त मन्दिर दर्शन और प्रवेश कर एकबारगी ही ३०० गजसे ४०० गज कावेरी-सलिलमें स्नान करने को जाते हैं। दक्षिणा. सक फैल गयी है। वहां खेती वारोके लिये उसके पधके लोग कावेरीको "दक्षिणगङ्गा" कहते है। कई नाले हैं। नालोंके बीच बीच बांध भी कगे हिन्दुस्थानमें जिस प्रकार निष्ठावान् छिन्द गङ्गा- हैं। उनमें बड़ा नाला प्रायः ३६ कोस विस्तृत है । स्नान काल गङ्गास्तव पाठ करते, वैसे ही दाक्षिणात्यके कावेरीके मध्य पुण्यतो शिवममुद्र, श्रीरङ्गपत्तन चोग कावेरो नहाते "कावेरीस्तोत्र" पढ़ते हैं। और-श्रीरङ्गम् दीप विद्यमान है। शिवममुद्रके समीप कावेरी-प्रवाहित देगमें 'प्रमाकोडग' वा कावेरी -
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६०८
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