पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६१९

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६२२ काशमर्टन-काशिकावृत्ति कासन है। जाता है। करता है । वृक्षका मूलदेश कठोर पड़ता है। शिखा काशिःछन् चिद् वा । १ काशिसम्बन्धीय, इनारमझे शयुक्त रहती हैं। पत्र क्षुद्र और सङ्कीर्ण होते हैं । मुतालिक । २ काशिजात, वनारस का पैदा । कलियां छोटी, चौड़ी और अधिक फली न्तगती हैं । | काशिकन्या (सं० स्त्री०) काशिवामिनी कच्चा मध्यप० । काशमको एक झाड़ी समझना चाहिये । वर्षा- १ काशिवासिनी कुमारी, कामोमें रहनेवाली लड़की। कालको वह घासफूसमें स्वयं उपजता पौर अग्रहायण वागीती काशीकन्यावोंको पूजने और खिलानेका 'मास पुष्य निवन्तता है। विधि है । २ काशिराजकन्या, कागोले राजाको लड़शी। वैद्यक मतसे काशमद, रोचक, बलकारक, विषघ्न, काशिकसूक्ष्म (सं.की.) काशीका उत्तम तून, शागीको नदोष निवारक, मधुर, वातश्लेपनाशक, पाचक, वढ़िया रुई। कुष्ठविशोधक, पित्तन, ग्राहक, लघु और उत्कट काशिका (सं० स्त्री०) काशि स्वार्धे कन्-टाए, यहा काशयति प्रकाशयति ज्ञानं महानाम् काग-णिच्- हकोमौके मतानुसार मिर्च के साथ उसकी शिक्षा ग्वुल टाप । इत्वम् । १ कागी, बनारस। २ मनको योस कर खिलानमे सर्पदष्ट वाशित आरोग्य होता है। निवृत्ति देनेवाली परमशान्ति लाभकारिणो तीर्थ- श्रेष्ठ मणिकणिका और ज्ञानप्रवाह रूप निमन गङ्गा- चन्दनके साथ काशमद बांट कर लगानेसे दाद मिट विशिष्ट अपनी बुद्धि। "ममोनिवृतिपरमीपशान्ति मा नौ वर्या मपिकरिका । कोई कोई उसका पत्र अलनके साथ वावहार ज्ञानप्रवाहा विमला हि गहा मा काशिका निनवीधरूपः।" करते हैं । काशमका पत्र सुखा उसको वुकनी ३ जयादित्य और वामनवत पाणिनिको एक वृत्ति । मधुमें मिला कर दाद वा अन्यान्य क्षत पर लगायो काशिकाप्रिय (सं० पु०) काशिका प्रिया यम्य, कागि- जाती है । बहुमूत्ररोगमें उसकी छान्न नन्नमें पका कायाः प्रियो वा। काशिराज दिवोदाम । पिनाते हैं। कसौंदौको पत्तियां पशु और मनुष्य दोनों काशिकावृत्ति ( मं० स्त्री० ) पाणिनि-वाकरणको खाते हैं। उबालनेसे उनका दुर्गन्ध निकल जाता है। वधाख्याका एक अन्य । किमी मतानुसार जयादित्यने साशमर्दन (सं० पु.) काशं मृदनाति, काम-मृद प्रथम ४ अध्याय और धामनने चेष ४ अध्याय बनाये कर्तरि ल्य'। काशमद, कसौंदी। हैं। फिर किसी किसी प्राचीन हस्तन्तिपिपर काशय ( में पु०) काशिराजके पुत्र । प्रथम ४ अध्यायको पुष्पिकाम 'वामन-काशिका' लिखा "काय सु काशयो राजन्।" (हरिवंश, २१.) है। किसी किसी इस्तलिपिकी समाप्ति-पुष्पिकामें कांथा (सं० स्त्री.) काशते इति, काश-पच्-टाए । "परमोपाध्यायवामनकताय काशिकायां वृत्ती निवा को वृण, कांस। काश देखी। देख पड़ता है। काशाल्मलि (सं• स्त्री.) कुत्सिता शाल्मन्तिः, को. का. भट्टोषिदीक्षित, रायमुकुट, माधवाचार्य प्रमृति देशः। कूटशाल्मन्ती, एक रेशमी रुईका पेड़ । वैयाकरणोंने काशिकासे जो विस्तर प्रमाण उठाये काशि (सं. स्त्री०) काश-इन्। १ काशी, बनारस । एलनमें भी बड़ी गड़बड़ है। अमरकोगमें शर्करा' (पु.)२ काशीनगरोफ्लक्षित देशविशेष । शब्द साधनेके समय रायमुकुटने जयादित्यकै नाममे "पत कम अनपदानिरोध गदतो मम । (५। २ । १.५ सूत्रकी) काशिकालि उद्धृत को है । बोधा मद्राः कलिङ्गाय काययोऽपरकाशयः ।।" (मारत, हारा.) फिर 'पारखर प्राब्द साधते समय 'नागाच' वार्तिक- ३ मुष्टि, मू। ४ सूर्य। सुहोत्रके एक पुत्र । यह सूवमें (पा ५।३।१०७ ) भाषावृत्तिकारके बादमे धन्वन्तरिके पितामह थे । (त्रि०) ५ प्रकाशित, जाहिर। उन्होंने जयादित्य का पक्ष समर्थन किया है। काशिक (सं० त्रि.) लाशेरिदं, काशिषु भवो वा, भट्टोनिदीक्षितने पा५ । ४।४३ मूत्रके वृत्तिकान