पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६२०

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काशिकावृत्ति ६२३ जयादित्यसे पूर्व विद्यमान घे । चीनपरिवाजक इत् जयादित्यचा यार पा ०।१।२० सूवर्क वृत्तिकाल मिन्न ई. (६१२ शक ) को चीन भाषाके वामनका मत ग्रहण किया है। उसीप्रकार रायमुकुटने 'असर' शन्द माधने काल पा८।४ । ४८ सूत्र 'दक्षिण समुद्रयावा' पुस्तक में जयादित्य विरचित 'वृत्ति. का वामनकाशिका उपत की है। माधवाचार्यने सु' का उल्लेख किया है । यदि इत्सिङ्गका विवरण धासुत्तिमें जयादित्य और वामनका मत ग्रहण पश्चत निकले तो ६६० ई० मे पूर्व पाणिनिपू. त्तिकार जयादित्य मरे थे।"* किया है । तत्काटक उहत जयादित्यका मत पा निःसन्देह विश्वास नहीं आता उस स्थल पर चीन ३।२।५८ सूत्रकी और वामनका मत पा1३1३० परिव्राजकका विवरण कातक मुमाव और उनका सूवकी काशिकामें देख पड़ता है। प्रकत पाविर्भावकान क्या था। एमप्रकारको स्वन्नमें गज- इसलिये भोजिदीक्षित, रायमुकुट एवं माधवा- तरङ्गिणी वर्णित घटना पर निर्भर करनेमे नितान्त चार्यके मतम ३ से ५ अध्याय पर्यन्त नयादित्य और अन्याय समझ पड़ता है। फिर भी यदि वाश्मीरराज ७ से ८ अध्याय पर्यन्त वामनकर्ट क विरचित हैं । जयापीड़ने काशिकायत्तियो लिग्वा था, तो करण राजतरङ्गिणीमें जयादित्य काश्मीरके एक विद्यो- पण्डितने उनका कोई उल्लेख क्यों नहीं किया। -साही गना और वामन उन्होंने मन्त्री बताये गये हैं। सम्भवतः राज्याभिषिता होनेसे पहले यौवनकालको "देगागरादागमय म्याघचाए धमापतिः। नयादित्यने काशिकाहत्ति बनायी होगी। कारण राजा प्रावयव निचिन' मामाय स्वमणी ra चीसमिधाच्छन्दविद्योपाध्यायाय समतः यनः । होने से पूर्व जयादित्य के सम्बन्ध में करणने कोई दात बुध: माययी हमि अयापौरपरिणत: ४८ नहीं निखी। जयादित्य स्वयं एक वैयाकरण और महा बदतथा खकियाख्यनेम सौकत्य वर्धितः । परित थे। उन्होंके समय महाभाष्यका पुनरुद्धार भट्टोऽभदमटम्तम्य भूमिमत: ममापति: Been साधित हुवा ! वामन उनके एक सचिव थे। उसी समय म दामोदरगमाख्यं कृतिमीमतकारिपम् : BAD ललितादित्य-अमात्य लक्षएके पुत्र हेलराजने. वाक्य- मनोरथः शहदचपटक मन्त्रिांसपा। पदीयति बनायो । जयादित्यकै समयका काश्मोर इति- चमूपः कवयतस्य वामनायाय मन्त्रिप" (४च तर) हाम पढ़नसे समझ पड़ता कि वास्तविक उनके राजा जयादित्यने नाना देशसे वोता पण्डितोकी राजत्वकाल पाणिनिव्याकरण विशेष पाहत हुवा था । महाभाष्यके संग्रहमें लगाया । उन्होंने शब्दशास्त्रविद् जयादित्वने काशिकात्तिके प्रथम ५ अध्याय धोरखामौके निकट * व्याकरण, पढ़ा था । खल्यि लिखे थे। पीछे उसके मन्त्री वामनने श्रवशिष्ट ३ प्रधान पति और उद्भटभट्ठ उनके सभापण्डित रहे। अध्याय लिख ग्रन्य सम्पर्ण किया । उन्होंने 'कुटिनीमत-प्रणेता दामोदरगुप्त को प्रधान काशिकात्तिप्रकाशक परिहत वाजगास्त्रीने लिखा मन्त्रित्व प्रदान किया । मनोरथ, पादत्त, घटक, है,- काशिकाकै रचयिता जैन वा-बौद्ध थे। इससे सन्धिमान् प्रमृति कवि उनकी सभा क्षयन करते अमरकोषकी भांति काधिकाके प्रारम्भमें मङ्गलाचरण थे। वामन प्रभृति परिइत उनके अमात्य रहे। लिग्ना नहों गया । काशिकाकारने अनेक स्थलमें कायस्वराज जयाणेडने ६६७ शकको सिहासना- पाणिनिसूत्रका परिवर्तन किया है । यदि वह व्राह्मण रोहण किया था। रहते, तो कभी ऐसा कर न सकते । पा १।३। ३६ । कारनौर गैरकायद गददेखी। अध्यापक मोक्ममूतारक मतमें-"काशिकाकार सूत्र के नौङ, धातुका पामनेपदपर सन्मान अर्थ जयादित्य एक स्वतन्त्र व्यक्ति रहे। शो काश्मीरराज काशिकाकारने 'चागम्यमान अर्थात् होकायत- Max Wüller's India that can it teach चौरमामो मररोषक एक प्रचाम टीकाकार। us? pp. 342-346.