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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६२

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- कम्बोज वास्तविक थिल्पियोंने भली भांति अपनी अपनी क्षम ध्यानी वुड, कहीं प्रत्येक बुद्ध और कहीं दुहनिर्वाणका साका परिचय दिया है। प्राध्यामिक दृष्य है। आज भी अनुसन्धान हो रहा बड़े मन्दिरके निकट ही दूसरे भी कयो छोटे छोटे है। कम्बोजका पुरातत्त्व जानने के लिये फरासीसी ब्रह्ममन्दिर देख पड़ते हैं। पण्डित वापरिकर है। भविष्यत्म नूतन नूतन वैवीन नगरसे पूर्व प्राध कोस दूर 'पतन-ता-फम' विषय प्राविष्कृत होना सम्भव है। नामक एक प्रथम येणीमा उच्च मन्दिर है। उसका जलवायु-कम्बोजका जलवायु वनदेय मिचता है। संस्कृत नाम ब्रह्मपत्तन ठहरता है। उस मन्दिर ज्येष्ठसे भाद्रमासतक वर्षाका समय रहता और उत्तर- चतुरस्त्र है। प्रति दिक् प्रायः ४०० फीट विस्तृत है। पूर्व वायु वहता है। दक्षिण-पश्चिम वायु चलने पूर्वीत मन्दिरका वहिश्य जितना नयनप्रीतिकर भूमि सूखती है। यहां तापमान (थरमामोटर ) रहा, पाजकन्न 'उसका वाणामान भी नहीं कइनसे यन्त्रमें १०३ डिग्रोसे अधिक कभी उत्ताप नहीं क्या बिगड़ा ! सम्पति मन्दिरको चारो और वन बढ़ होता। फिर अधिक शीत पड़ने से पारा ५७ डियो- गया है। भित्ति तोड़ फोड़ महीरा मस्तन उठाये तक उतर जाता है। देयोय और युरोपीय-दोनकि खुड़ हैं। इधर-उधर टूट-फूट जानसे मन्दिर वन्य लिये यह स्थान प्रतिमनोरम और स्वास्थ्यकर है। जीवजन्तुका वासस्थान बना है। पूर्वको जहाँ गह कम्बोजदेश समतन्न जगता है। नदौके तटकी भूमि घण्टा ध्वनि प्राण प्रफुल्ल हो जा, आजकल वहां अतिशय उवैरा पाती थोर फससे वृक्षको शाखा भर दिवाभागमें भी शृगाल पपना उच्च स्वर सुनाते हैं। जाती है। भारतीयों के भारतीयत्व लोप होते होते ऐसी शोचनीय उत्पन्न द्रव्य-कम्बोज में धान, पान, सुपारी, चन्दन- अवस्था आयो है। केवल मन्दिरसे ही नहीं काठ पार रेवन्दचोनोको उत्पत्ति यथेष्ट होती है। कम्बोजके क्रोमि नामक पर्वतसे भी अनेक ब्रह्ममूर्ति लौह, रौम्य और इस्तिदन्त भी अधिक मिलता है। निकनी है। काशीम शिवलिङ्ग अधिक देख पड़ने ! ई०के नवम शताब्द दो परव भ्रमणकारी यहां पाये की भांति उन्ल पर्वतम असंख्य ब्रह्ममूर्ति मिन्नती हैं। थे। उन्होंने लिखा,-"जगतका सर्वोत्कष्ट मनमान कम्बोजराज भी ब्रह्मापर सातिशय भक्ति और कम्बोजमें मिलता है। फिर यहां प्रस्तुत हो वा अक्षा रखते थे। स्थानीय प्राचीन लोगों के कथनानुसार पृथिवीपर सर्वत्र भेजा जाता है।" एक गजाने किसी नागराजको कन्या विवाह जीवजन्तु-इक्षी, महिप, मृग और गोमेपादि वन किया। उसपर नागराजके उत्पातसे वह व्यतिव्यस्त दख दल देख पड़ते हैं। हो गये। गेषको उन्होंने नागदारमै एक ब्रह्ममूर्ति भाषा-कखोज में खुम और पानामशी भाषा प्रच- । उमसे उनका सफल भय छटा था। लित है। किन्तु आजकल काम्बोज प्रधानतः खमको नागरान नगर त्यागकर भागे। वह ब्रह्ममू आज भाषामें बात करते है। यही कम्बोनको पादिभाषा भी नागदारमें विद्यमान है। एक धोन-परिव्राजका समझी जाती है। १२८५ ई० की यहां आये थे। उन्होंने देखकर इसकी समाज देशका विस्तृत विवरण देखनेको निलिखिव वन्य पड़ना पञ्चानन वुद्धदेवको मूर्ति बताया है। किन्तु उन्होंका चाहिये- भ्रम मानना पड़ेगा। अथवा चीन-परिव्राजक वौडीके Henri mouhot's Travels in Indo-China, रोयनुसार नो देख पाते, उसे बौदधर्म-संक्रान्त ही Coinbodia, and Laos. बसाते थे। Die Volker der Oestlichen Asien von Dr. A. Bastian, कम्बोजके नाना स्थानाम बौद्धोंक देखने योग्य J. Garnier's Voyage d, Exploration en द्रव्य भी विद्यमान हैं। कहीं बहत् पाषापम खोदित do-China, स्थापन की