पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६१

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१२ कम्वोन पण्डितोंके मतमें पोरवटके मन्दिरसे कम्बोजक ब्रह्मा- मन्दिर सर्वप्रकार श्रेष्ठ है। क्या शिल्पनैपुण्य, क्या कारकार्य पार क्या स्थापत्यकर्म-सबमें ब्रह्ममन्दिरके निर्माता अपना-अपना प्राधान्य देखा गये हैं। विये- षतः समस्त भारतमें जो ढंटे नहीं मिचता, वही पतु- मुख ब्रह्माका मन्दिर कखोजमें देख पड़ता है। ब्रह्ममन्दिर उब्रह्ममन्दिर देखनेसे मनमें कयी बाते उठती उसका चिह्नमात्र विलुप्त हो गया। नहीं समझते- हैं। हमारे आराध्य वेदके शिरोभाग उपनिषट् ग्रन्वसे | भविष्यत्के गर्भ में क्या निहत है। सम्भवतः हिमा- सर्वप्रथम ब्रह्माको उपासना देख पड़ती है। ब्रह्मा लयके दुर्गम तुपारवेष्टित गदरसे ब्रह्ममन्दिरका गूढ़ भारतीयोंके सर्वप्रथम उपास्य देवता हैं। उपनिषद तत्व निकला होगा। निराकार परब्रह्म और पुराणमें चतुर्मुख ब्रह्मा हो किसी किसी पाशात्य पण्डितके कथनानुसार पहले कहे गये हैं। पुराणमें अनेक ब्रह्मतीयों के नाम भी मध्य एशियामें ब्रह्ममन्दिर रहा। प्राचीन काम्बोजोंने मिलते हैं। किन्तु देखने या सुनने में नहीं आया यहां प्रा उमौके यनुसार ब्रह्मानय बनाया। भगवान भारतवर्षमें किसने कहां ब्रह्माका सन्दिर बनाया है। जाने-यह बात वाहांतका सत्य फिर इस प्रश्नका उत्तर देना भी कठिन है-कम्बोजके कम्बोजसे ब्रह्मामन्दिरोंका यही विशेषत्व पाते- भारतीयोनि कहांसे ब्रह्ममन्दिरका तत्व पाया। समझ प्रत्येक चड़ापर चतुर्मुख शोभा देखाते हैं। फिर एक पड़ता-नव भारतके उत्तरस्थ कस्बोजदेशवासी वृहत् मन्दिर पहारवटके समकक्ष हा सकता है। काम्बोज नन्मभूमि छोड़ इस सुदूर प्रदेशमें पाते, पति क्षुद्रका भी पायतन पौर गठन सामान्य नहीं। सब उसी भादिकम्बोज देशमें प्रयोपासनाके साथ पूर्व पृष्ठमें किसी क्षुद्र ब्रह्ममन्दिरका चित्र खींचा है। ब्रह्ममन्दिर भी बनाते थे। कयो शत वर्ष गुजरने किन्तु चित्र उतारकर देखाया जा न सका-मन्दिरका पौर विधर्मियोका पुनः पुनः प्राक्रमण पड़नेसे अभ्यन्तर किस प्रणालो और कैसे कौरवसे,बना है। 1