६२६ काशिराने काशी काशिप्रसाद साधारण हितकर कार्य भी सम्मि वह स्थानसे हमसे कभी विमुक्त नहों अर्थात् हमने लित होते थे । वह आनरेरी- मजिष्ट्रेट और म्यनि उसे न कभी छोड़ा न छोड़ते और न शेड़ेंगे । इस सपालिटीके "जष्टिम अव दी पोस" रहे । १८७३ ई० से वह भविमुक्त नांमसे विख्यात है। को ११वौं नबम्बरको काथिप्रमादका मृत्यु हुवा। मन्सापुराणके मत- काशिराज (सं0 पु०) १ काशीके राजा। धन्वन्तरि । “यव मन्निहिती मित्यमविमुक निरन्तरम् । काशिरामदेव-एष बङ्गाली ग्रन्थकार। उन्होंने बनाना तमध व न मया मुक्रमविमुक्न ततः स्म तम् । (१५/१५) ‘पद्यमें महाभारत बनाया है। वह देव वा दास उपाधि- अविमुक्त क्षेत्रमें हमारा निरन्तर मानिध्य है। इस 'धारी कायस्थ थे। उनके पिताका नाम कमला- क्षेत्रको इम कमो परित्याग नहीं करते । इसी हेतु कान्त रहा। वह इन्द्राणी प्रान्तके सिङ्गग्राममें रहते वह अविमुक्त नामसे विख्यात हुवा है। थे। उनके ग्रंथ की रचना-प्रणालीसे समझ पड़ता कि कूर्मपुरागामें कहा है,- उन्होंने किसी पण्डित या कथकमे पूछ पछ महाभारत "भूनकि नेव मखनमन्तरी ममान्वयम् । पविमुक्का न पश्यन्ति मुका पश्यन्ति चममा। लिखा है। कहते हैं १.७५ सनमें वह जोवित थे । ग्मगाममे सम्विधासमविसममिति मम मम्।" (३० । २८२.) 'उनको जीवनोका विशेष विवरण विदित नहीं । अन्तरीनमें अवस्थित हमारा मान्नय स्वरूप वह '२ तिथितत्वके एक टीकाकार । क्षेत्र भोसके साथ कभी मंलग्न नहीं । इमोसे वह काशिल (सं.वि.) १ काटपामय, कोससे भरा अविमुक्त है अर्थात् संसार मायावह नीव उसे कभी दुवां । २ काथनिर्मित, कांसका बना हुवा। देख नहीं सकते । किन्तु संसारके बन्धनसे विमुक्त काशिष्णु ( सं० वि०) काश बाहुलकात् ईष्णुच । प्रका- महात्मा केवन मानम-चक्षुमे उसे देख सकते हैं। शशोल। (भागवत, ४ । ३ ..) इसोसे वह अविमुक्त नामसे प्रसिद्ध है। काशी (सं• स्त्री• ) भारतवर्ष के मध्य हिन्दुवोंका सर्व काशी में प्रवाद है कि वरणार नामक कोई राजा, प्रधानं तीधै। उसका संस्कृत पर्णय-वाराणसी, तीर्थ वहाँ राजत्व करते थे । उन्होके मामानुसार काशीका बाली, 'तपस्थली, काशिका, काशि, अविमुक्ता, अामन्द. नाम वाराणसी पड़ा है - (चन; प्रानन्दकानन, अपुनर्भवभूमि, रुद्रावास, महा- भूमात-शुक्लयजुर्वेदीय शतपथब्राह्मण और कौपी- प्रश्मशान और स्वर्गपुरौ है । उक्त नामोंके मध्य काशी, तकी-ब्राह्मणोपनिषद- सर्व प्रथम · 'काशी' शब्दका .अविमुक्त और वाराणासीको समधिक प्राचीन है ।। उल्लेख देख पड़ता है । (१) प्रति प्राचीन समयम हिन्दीमें प्रायः बनारस कहते हैं।..: :: :. काशी एक विस्तृत जनपदं और पवित्र याभूमि कहकर मानि-शिवपुराण के मतानुसार-.. परिचित थी। कोषोतको उप०, ३१ देखी।. "कम कर्षशात् सा में काशीति परिकपात । (ज्ञानस हिसा, १८1७८) रामायण के समय भी काशी एक विस्तीर्ण जनपद वहां जीव शुभाशुभ कर्मसमुदाय आयकर मुक्ति थो। (किष्किन्धाक, ४ । २२) उस समय रमणीय तोरण पानिमें समर्थ होते हैं, इससे उसका नाम: काथी है। 'पौर · प्राकारपरिशोभित प्रधान नगरी वाराणसी स्कन्दपुराणेय काशीखंडके मतमें- "काशतेऽत्र यतो नीतिस्तदनाये यमोधर । भविष्यपुराशीय ब्रह्मरवण नामक अनतिप्राचीन ग्रन्थमैं भी कायो- असो नामा पर वास्तु काशोति प्रथितं विभो ॥" (२६ 10) पति वरनारका विवरण मिलता है। (भविष्यप्रखण्ड ५३११-१२६ उसी वाक्यका अगोचर परम ज्योतिः उक्त क्षेत्र में सोक) किन्तु उस यन्यमें वास बागपमोको कथा नहीं दिखी। प्रकाशमान होनसे काशी नाम विख्यात हुधा है। उन्होंने कागोपुरी में 'याराथमी नावो एक देवोमूर्ति प्रतिष्ठा को थी, लिङ्ग-पुराणमें लिखा है,- पचापि वह मूर्ति काशीम विराज करती। "विसमा न मया यस्मान्मोधात ना कदाचन । (१)"त: काशयो ऽग्रोमा दत्तम् ।"५1५1।।। मन चैवमिदं समाविमुक्तमिति स्म तम् ॥" ( १२ । ४५ ) "यायोना भरतः सालतानिब।" शतपचनालय, १५१५
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