पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६२४

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काशी .. कायोराज्यको राजधानी थी। (१) प्रतिष्ठान (प्रयाग) पर्यन्त काशी जनपदके अभूत था । (२) प्राजकन काशी कहनसे ही वर्तमान वाराणसी ‘वा बनारस नामक नगरका बोध होता है। किन्तु पूर्जा प्राचीन शास्त्राटि द्वारा प्रमाणित होता कि पहले यह नगर हहदायतन था। चीनपरिव्राजक फाष्टि यानके ग्रन्थपाठसे समझ पड़ता कि ई० पञ्चम शताब्द को काशी एक विस्तीग जनपद और वाराणसी उसका 'प्रधान नगर कहलाता था। विष्णु प्रभृति प्राचीन पुराप में वर्तमान काशी "काशीपुगे और वाराणसी” नाममे पभिहित हुयी है। (विय ए, पुराए ५। ३४ । २९.४१) पुराणादिमें काशीपुगेको सीमा और . परिमाण मप्रकार निरूपित हुवा है- "हियोगमन्तु तनची पूर्व पयिमतः सनम् । प, योशमविम्ती सत्येष दधियोपरम् । घरमा हिनदी यावद यावच्छ,कनी हो। भौमधिकनारम्य पक्ष नेत्ररमन्तिका" (महापुराण १८-) वह क्षेत्र पूर्व पश्चिम दो योजन भायत और उत्तर दक्षिण अर्ध योजन विस्तृत है। वह वरणा नदीसे शुष्क नदी पर्यन्त और भीष्म चण्डिको प्रारम्भ कर पर्वतश्वरके निकट पर्यन्त अवस्थित है। फिर उसके प्राग- "दियोभनमयोधच वचन पूर्व परिमम् । यौनरिसोर्थ दरिपोरता मतम् । बारापसी मदो यावन यार कनदी " (१८४it-.) शिवपुराणको सनत्कुमारसंहितामें कहा है- "वागतमला त्य आरश्या सह महता। भरपा नाम नव गासिय सरिसरा" (५) वरणा और गङ्गासि (असि) नाम्नो दो नदो उस क्षेत्रको अलङ्कत कर जाड्यौसे मिल गया है । शिवपुराणको जामसंहिताम जिवा है- "सतय नमः सारं पञ्चकोयात्मक गुमम् ।" (1) वामनपुराण में बताया है- “यो ऽसौ ब्रमास पुष्य भर्दशनमो ऽव्यब। प्रयाग वमते मिस्य योगमायोनि विभुतः। चरणादियाचम्य विनिर्गता मरिहरा। विश्रुता वरवयव सर्वपारा मुभा. सध्यादन्या दिवोया र पसिरिस्य व विना। वैष्ठ भेर सरि लौकपूजा व चतु। तयोर्मध्ये तु यो यस्तत्व योगमायिनः । देखोक्यावर यो सर्वपापप्रमोचनम् । म ताहणं हि नगमे न भूम्या म रमानने । ववाति नगरो पुस्खा खाता रापसी (स-२) युमा" (१) विशा ततो गमो वयस्यमतोमयम् । प्रतटन काशिपनि परिष्वन्य दमनवौत् । 1 सोमय त्वया राजन भरतेन कृतः मह। मायामय हायपुरों' बाराधमी' ना. एमपीयो त्वया गा सप्राकारा मुतोरणाम् ॥" (उत्तरव्हाण, ५-१०) (२) सनः कालेन महता दिष्टान्तमुपगमिवान् । विदिम गो राजा ययातिनहुषामनः ॥ पुरुयभार तद्रामा' घ"प मशाह प्रतिष्ठाने पुरवर काभिराम महायशाः" ( टप्तरकाण, १८-१८) महामारत उणेगपर्व ६० और १२.५० देखी। Fo-Ewo-Ki, Cb, XXXIV., translated by Lai- -dley, p. 910, - इस पवित्र ब्रह्माण्ड के मध्य प्रयागमें हमारे (विष्णु- के) घंशनात प्रयाय पुरुष योगशायो नामले निरन्तर वास करते हैं । उन्होंके दक्षिण चरपसे सर्व पाप. प्रणाशिनौ शुभहरी वरणा और वाम चरणसे असि नानी विख्यातं द्वितीय नदी निःसृत हुयी है । उक्त उभय नंदी लोकमध्य पूजनोया है। इनके मध्यस्थलमें योगशारी महादेवका सर्व पापनाशन विनोकके मध्य सर्वश्रेष्ठ तीर्थस्वरूप क्षेत्र है। सुविख्यात मोक्षदायिनी पुखमयी वाराणसी नगगे उसी स्थान विराजित है। वैमा स्थान, पाकाश, पाताल वा भूमखन्न कहीं मिले नहीं सकता।