काशी नबावके करानकवलसे राज्य रक्षा करने के लिये राम- रानको १.१३ विक्रम संवत् (१२५ ई.) को प्रदत्त एक शिलालिपि मिली है।महीपालके पीछे उनके नगरमें एक सुदृढ टुर्ग बनाया। उसके पीछे पालम. पुत्र स्थिरपाल और वसन्तपालक (१०८३ ई. तक) गौर वादशाहके राजत्व काल उनके पुत्र मुहम्मदपली विद्रोही हो अवधक सूवेदारसे मिल गये। उस समय राजत्वकास भी काशी बौड पालोंके अधिकारमें रही। ११८४ ई० को कनौजरान जयचन्ट्रके पराभूत होने | मीरजाफर बङ्गान्तके नवाब धे । मुहम्मदप्रलो पौर पर शहाबुद्दीन् गोरीने वाराणसीके अभिमुख यावा की। शुजा-उद-दौलाने मीरजाफरको पदच्युत कर बङ्गाल अधिकार करने के लिये पटनाके अभिमुख यात्रा को । उन्होंने प्रायः सहस्राधिक हिन्दूमन्दिर तोड डाले । अकबर बादशाहके समय मिर्जा चीन शिलीच १७५८ ई० को मौरजाफर अङ्गरेजी सेन्चके साहाय्य: चनारसके फौजदार थे । उम समय काशी इलाहाबाद से ण्टनाके क्षेत्र में उपस्थित हुये। दूसरे वर्ष शुजा-उद- सुवेके अधीन थी। औरणलेबने बाराणसी बदन्न कर दौनान फिर बङ्ग विजयका उद्योग लगाया था। उस "मुहम्मदाबाद नाम रखा था । उनके परवर्ती मुसन- समय मौरजाफरने वसवन्तसिंहसे सहायता मांगी। ‘मान ग्रन्थों और अवधके नबाबकी सनदी में वाराणसी राजा बलवन्त सिंहने सैन्य द्वारा उन्हें यथेष सहायता दो थी। फिर बङ्गालके नबाव और बलवन्तसिंहको का नाम मुहम्मदाबाद मिलता है। ई. सप्तदश शताब्दक शेष भाग प्रवधकी सूवेदागै सन्धि हो गयो । उसो सन्धिके अनुसार बङ्गखर बल- अधीन रहते भी वाराणसी एक स्वतन्त्र गज्य कहलाती थी वन्त सिंहको स्वाधीनता बचानको विपदकाल मदद दिल्लीके बादशाह मुहम्मद शाहने हिन्दुवोंके पवित्र करने पर प्रतिश्रुन हुये । १५६४ ई. को २५ वों स्थान वाराणसीको हिन्दू राजावोंके ही अधीन रखना दिसम्बरको दिल्लीके बादशाह शाह पालमने ईष्ट- चाहा था। उसोके अनुसार उन्होंने १७३० १० को इण्डिया कम्पनीको धाराणसी राज्य प्रदान किया था।* वाराणसीसे पांच कोस दक्षिण अवस्थित गङ्गापुर ग्राम शुजा-उट् दौलासे सन्धि होने पर १७६६ है. का के जमीन्दार मनसारामको 'राजा' उपाधि प्रदान ईष्ट इण्डिया कम्पनीने वाराणसी रान्य अवध के नवाब. किया। उनके पुत्र बलवन्त सिंह १७४.ई.को पिट को सौंप दिया । उसी समय बलवन्तसिंह वृटिश गज्यके अधिकारी हो पुण्यभूमि वाराणसीके सिंहासन गवरमेण्टके मिवराजा कहलाने लगे। बीच में शुजा- पर बैठे थे। १७४८१० को मुहम्मद गाह मर गये । उद्दौलाने बलवन्तसिहको तसदेख करनेकी उनके पुत्र अहमदशाहने सफदर जङ्गको बजीरका चेष्टा की थी। किन्तु ईष्ट इण्डिया कम्पनौके बलवन्त- "पद और अवध प्रदेश दिया था। उसी समय वारा. सिहका पक्ष लेने पर उनकी पाया पूर्ण न हुयो । पासी अवध सूवे के अन्तर्गस हुयो । बलवन्त पर सफदर १७७० ई. की २२ वौं भगस्त को बलवन्त सिंहका नकी दृष्टि पड़ा थी । उन्होंने बलवन्तका परिचय स्वर्गवास हुवा । उसके पीछे उनकी एक क्षत्रिया रमणी- अवधके अधीन किसो सामान्य जमीन्दारकी भांति के गर्भजात चेतसि हने राजसिहासन पधिकार देने की चेष्टा की । उस समय बलवन्त ने अपनी किया । १७७३ ९० को हठौं सितम्बरको प्रबंधक स्वाधीनता बचाने के लिये यथेष्ट क्षमताके साथ साहस मवाइने चेतसि हका एक सनद दी थी। १७७५ ई. दिखाया था। १७५३ ई० को सफदरजङ्ग के मरने पर की २१वीं मईसे वाराणसी टिश गवरमेण्टके अधीन उनके पुत्र शुजा-उद-दौना सूबेदार हुये। उन्होंने भी हुयो । उसके अनुसार १७७६ ई० को १५ वौं मईको
- पिताके अनुवर्ती वन वलवन्त की पदमर्यादा खवं करने चेतसि इन हटिश गवरमेण्टसे फिर एक सनद पायो
की विशेष चेष्टा चन्तायी थी। उसी समय बलवन्तन उसी समय युरोपमें फरासीसी विश्व हो गया। सनदके • Indian Antiquary, Vol. XIV. p. 140. Aitchison's Treaties ctc. ol p.6. .