पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६३५

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(३८ काशी जिस प्रकार बढ़ता महादेव उसी प्रकार : उक्त क्षेत्रमें हैं। अतिप्राचीन कालमे हिन्दू विश्व स्वररूपी भग- उमिल होकर ऊपर उठा करते हैं। हिलवर । कागी वानको पाराधना करते पाते हैं। मसा, कूर्म, लिङ्ग महादेव त्रिशूलके अग्रभाग पर अवस्थित है। वह और शिव प्रभृति पुराणमें विखेश्वरका माहामा वर्णित आकाश और भूमि पर अवस्थित नहीं, मूढ़ व्यति हवा है। कैसे समझ सकते हैं। "पञ्चक्रीयाः पर्ष नान्यत् चैवश्व भुवनवाये। काशीखण्ड में कहते हैं,- पथवा पापिना पापमोटमाय बहर मत्य लीके गर्म व समानाय स्थित महा। "वं पविव' हि यथाऽविमुक्त नान्यतया यकृ तिमिः प्रयुक्तन् । यथा तथापि धन्ध्य पचक्रोगो मुनौवरा 14 न धर्मशास्त्र न च ते पुगण सम्माकरण हि सदाऽविमुक्तम् । यव विश्वरी देवी धागव्य सचितामयम् । सहीवाति नावाग्निरारुणेऽसिरिता मता। यद्दिन हि समारभ्य : काय्यामुपागमः ५. वरणा पिछला नाड़ी तदन्तस्वविमुमाकम् ॥ तहिनं हि ममारभ्य कामो ये उतरा धमत" सा सुपुम्रा परा नादीवयं वाराणसी त्वमी। (शिवपुराण, भानमपिता ४१.) सदवोक्कमणे सर्वजन्तुमा हिश्रुती हो। हे मुनीन्द्र । पचक्रोशोके तुल्य उत्कष्ट स्थान त्रि- सारकं वद्य ध्याचट तेन वद्यमवन्ति हि। एवं शौकी भवत्येष पाहुव वेदवादिनः : भुवनके मध्य दूमरा नहीं। पयवा पापियों के पाप नाविमुक्कसमं चैव नाविसकसमा गतिः । विनाशको स्वयं महेश्वर मत्यलोकमें परमोत्कृष्ट स्थान नाविमुक्तसमें ग्नि सत्य' सत्य' पुनः पुनः ॥” (५। २४ -५ स्थापनपूर्वक नियत अवस्थिति करते है। प्रतएव अविमुक्त क्षेत्र जैसा पवित्र है, जगतमें कोई भी पञ्चक्रोणी विनोको धन्य है। वहां स्वयं देवदेव स्थान वैसा नहीं। यह नहीं कि वह केवल धर्मशास्त्र वा विश्वेश्वर जाकर प्रवस्थित हुये हैं। जिस दिनसे महादेव पुराण द्वारा प्रतिपादित हुवा है, किन्तु स्वयं अति काशी गये, उसी दिनसे वह अतियेष्ठ हुयी है। उसको प्रतिपादन करती है । अतएव सर्वदा प्रवि- "न केवलं प्रप्रन्या प्राय कता च निवर्तते । मुक्त क्षेत्र प्रायय करना जीवोंका एकान्त कर्तव्य है। प्राम्य विश्वेश्वरं देव म सा मयोऽमिनायव" सुप्रसिद्ध सुनिष्ठ जावालिने कहा है-१ भारुणे ! (मत्स्यपुराय, १८९1१0). असि नदी इडा, वरणा नदी पिङ्गला और उभयके वहां केवन ब्रह्महत्या ही नहीं, प्राकृत पाप- मध्यस्थित अविमुक्ताक्षेत्र सुषुम्ना नाड़ी कहाता है। पुण्यादि समस्त कम निवृत्त हो जाता है। देवदेव उत नाडीवयको हो वाराणसी कहते है। उता वारा. विखवरको पाकर उक्त कर्म सकन पुनरि उत्पब पसौमें प्राणत्याग करनेसे भगवान् महादेव जीवके हो नहीं सकता, सुतरां मोक्ष मिलता है। दक्षिण कमें तारकमा नाम कीर्तन करते हैं। चीन-परिव्राजक यूअन चुयाने वाराणसी उससे जीव ब्रह्मको स्वरूपता पाते हैं। इस विषय में जाकर शतहस्त उच्च तारमय विश्ववर गिङ्ग देखा वेदन पण्डित शोक कीर्तन करते हैं-'अविमुक्तके था।* समान सहतिदायक स्थान दूसरा नहीं। पविमुक्त अाजकल वह शतहस्त उच्च तासमय लिङ्ग स्थित शिवलिङ्गको तुल्य अन्य शिवलिङ्ग कहीं नहीं। कहां है? प्रायः तेरह सौ वर्ष पूर्व चीन परिवाजकने उक्त वाक्य निचय ही सत्य है। उसमें कोई मन्देश जो शतहस्त उच्च तासमय लिङ्ग देखा, आजकल नहीं। उसका निदर्शन अथवा तत्परवर्ती किसी प्राचीन "कली विशेशरी देव: कमी वाराणमौ पुरी"(१५) अन्य में उसका उल्लेख तक नहीं मिला। सम्भवतः ... कलिकालमें विखवर ही एकमात्र देव और वारा- बसी ही एक मात्र मोक्षपुरी है। Ls Vie de Hionen Thsang par Stanislas Julien, देवदेव विखे खर धाराणसीके अधिष्ठात्री देवता | p. 430. । .