पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६३६

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कायौ "माइपउद्दीन गोरी- जिस समय वाराणसी लुण्डन करने गये, उसी समय वह पवित्र तावलि मुसलमान कक विचपित प्रथवा विध्वस्त किया गया होगा बोध होता हिन्दू राजावोंके समय जो लिक प्रतिष्ठित हुवा था; वही में देखने को मिला। . भाजकल विश्लेखरका स्वर्णकलस और स्वर्णचड़ा विश्वेश्वरका मन्दिर। विसम्बित बासुन्दर मन्दिर नयनगोचर होता, वह फिर कोई कहता औरंगनेवको मसजिदसे अनति- शताधिक वर्ष पूर्व बना है। आजकल पिशेखरके दूर जहाँ श्रादि विश्वेश्वरका मन्दिर है, पूर्वको वहीं मन्दिरसे अनतिदूर औरङ्गजेबकी जहां मसजिद देख विश्व खरका लिङ्ग प्रतिष्ठित था; उता मन्दिरके पाच में पड़तो पहले वहीं विश्व खरका सुवृहत् मन्दिर था। मुसलमानोंको मसजिद बन जानेसे लिङ्ग स्थानान्त- हिन्दूविदेषी औरंगजेधने उक्त मन्दिर मष्टकर मुसल. रित हुवा। उ शादिविश्वेश्वर मन्दिरके पाचमें मानोंकी मसजिद निर्माण कराई है। अनेक लोग भी मसजिद है। किन्तु वह मसजिद सम्पूर्ण नहीं कहते कि वह मन्दिर हो मसजिदके रूप में परिणत हुयो । वह मसजिद भी आदिविश्वेश्वरके मन्दिरका इवा है मुसलमानोंने उसमें सामान्य हो परिवर्तन एकांश समझी पड़ती है । पूर्व जी मन्दिर था, इसकी -~-किया है। मसजिदक पश्चिमभागमें पान मी हिन्दू तोड़ उसीके पत्थरसे और उसीके नीवपर उक्त मसजिद देवालयका यथेष्ट परिचय मिलता, इसके निम्मतलमें बनी है। उसका कोई कोई अंश देखनेसे अति बोच गठनका विहारगृह देख पड़ता है। किसी प्राचीन मालूम पड़ता है। किसीकै मतमें वह प्राचीन किसीके अनुमानमें हिन्दुओंने प्रचन्च हो चौहकीति | बौधोंके समयको निर्मित है। विलुप्त करनेको विहारके जपर देवालय बनाया था। विश्वरका वर्तमान मन्दिर समचतुरस्र प्राङ्गापपर