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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६४

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.. कयासो-करई .. कृयासी (म० वि०.) १ मानस, ख्याती। २ काली : पनमामहपानाच चर्मया रेलस्य च।. निक, भन्दाजी, अटकली। ३ पानुषङ्गिक, मुशाबिक, मृजयानाच माणानां सर्वचारसमयस्य च !" एकसा कल्पित विषयको 'अमर-कृयासी' पोर वृक्ष, प्रस्तर, मधु, घृत, गन्धद्रव्य, रस, पुष्य, मूल, काल्पनिक प्रमाणको 'सुबूत कयासों कहते हैं। फल, पत्र, शांक, ण, चर्म, पिष्टक; मृत्पात्र और कयाई (सं. पु०) पक्वतान्त सदृश वर्ण. अश्व, जो प्रस्तरपान प्रभृतिका पठांश रानाको प्राप्य है। घोड़ा पके छुहार जैसे रंगका ही। "मियनाणेऽप्यांददौवन राजा योबियात करम् । कय्य-एक राजा। इन्होंने श्रीकण्यस्खामा नामक मठ न च सुधास्य मसौदेच्छोनियो विषये वसन् ।" (मनु०.०) और कय्यविहार नामक विहार वनवाया था। (राजत०) यत्यन्त धनहीन होते मी राजाको श्रोत्रियका धन कर (सं० पु.) कीर्यते विक्षिप्यते भसी अनेन वा ग्रहण करना उचित नहीं। किन्तु व्यवसायी होनेसे कर्मणि वा करणे अप। १ हस्त, हाथ २शुण्डा श्रोत्रियको रानकर देना पड़ता है। : दण्ड, हाथोकी सूड। ३ किरण, रश्मि। ४ वर्षी निम्नलिखित समुदय देख भाल वणिक के विक्रय पलं, श्रीला।' प्रत्यय। ६ विषय, काम कर्ता, द्रव्यका मूख्य निर्धारण करना चाहिये- करनेवाला । ८ एक कारक। यह पूर्वको उपयद अमुक वस्तु क्रय करनमें क्या मूला लगा है, अमुक भानसे लगता पौर इससे जनक प्रादि समझ पड़ता | · वस्तु वेचनेसे कितना लाभ होगा, अमुकं वस्तुरक्षा ह, जैसे-मुखकर इत्यादि । 2 शुल्ला, महसूल। करने यथवा चौरादिसे निरापद रखनेमें वणिक्को .१० चौबीस अङ्गुको नाप ।। ११ बाडुल्यचुप, एक क्या व्यय पड़ा है, प्रव. उसे बेचने में कितना लाभ झाड़ काश्मीरम में तवरडू कहते हैं। १२ राजस्ख, निकलेगा। राना केवल अपने राज्य की रक्षा करने मालगुजारी, टिकस। यह नृपतिका प्राप्य अंथ होता हुये व्यय वा परिवमादिको देख एकदेशदर्शी रूपसे इसका संस्कृत पर्याय-मागधेय, पलि, कार और कर निर्धारण नहीं करते। उन्हें अषम वणिक् प्रमृसिका प्रत्याय है। समस्त कार्य पर्यालोचनाकर कर लगाना होता है। "क्रयविक्रयमचान भवध सपरिव्ययम् । वत्त एवं अमरक अल्प प्रल्प चोर तथा मधु भषण योगमा प्रेया वपिनी दापर्यंत करान् । करने की भांति रानाको भौ वणिका मूलधन यथा फालिन युज्येत राजा की च कर्माम्। उच्छेदन कर कर लेना उचित है। यदि सर्वखाप- तथाविधा पौ.राष्ट्र भयेन सत्तन करान्" (मनु) हारी राजा द्वारा श्रोत्रियको क्षुधासे अवसव होना नृपतिको क्रय विक्रय प्रकृतिका लामालाभ देख पड़ता, तो उसकाराष्ट्र अचिरात् मट्टी में मिलता है। कर संग्रह करना चाहिये। राजा ऐसो विवेचनासे अतएव राजा : योस्त्र एवं ज्ञानानुष्ठानमें प्रवृत्त हो कर लगायें, जिसमें कर्मकर्ता और वह दोनों फलका अवश्य वह कार्य करें, जिसे लोग धर्मविरुद्ध न करें भाग पायें। और जिसमें थोत्रिय चौरादिके भयसे निरहेगारह “पधायाग पादयो राचा परिणयोः । सके। राजकतक सुरक्षित थोत्रिय जो धर्मानुष्ठान धान्यानामष्टमी भाग: वही सदय एव वा." खंठाते, वह भूपतिका पायुः . एवं धन और राष्ट्रका रानाको यश एवं सुवर्णादिक पचास और भूमि वैभव बढ़ात हैं। (मनु) : सम्बन्धीय उत्कर्ष तथा अनुत्कर्षकी विवेचनासे | करइत (•ि पु:) मिधिशेष, एक कौड़ा। यह धान्यके छह, पाठ या बारइ भागमें एक भाग लेना । प्रायः छह अंडलियरिमित दीर्घ रहता और वायुमें उड़ा करता है। "पाददोवाय पठभाग मागममधुमर्पिषाम् । करई ( हिनौ)पावविशेष, एक बरतन । 'गन्धोमविश्वानांच पुपमूखपवस्व." यह पाव न रखनके काम पाता है। कई भासी VOL IY. 17

‘चारिये। .