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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६५

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श्रोला, पत्थर। करंगा-करकटिया भी लगती है। २ पक्षिविशेष, एक चिड़िया। यह गोवरपर जगनेवाला छाता। ११ करम, ठठरी। क्षुद्र रहती और गोधूमके कोमल तरु चघुसे काट १२ पक्षिविशेष; एक चिड़िया। १३ राजस्व, माच- काट भक्षण करती है। गुजारी, टिकस । १४ दाडिम्बफच, पनार । १५ करका, करंगा (हि.पु.) धान्यविशेष, किसी किस्म का धान। यह सान्द्र पौर ईषत् वाष्णवर्ण. तुषविशिष्ट रहता है। करक (हिं० स्त्री०) १ पीड़ाविशेष, एक दर्द। जो पाखिन मास इसके पाकोन्मुख होनेका समय है। वेदना रह रहके उठती, उसको सधा करक पड़ती करंगी (स्त्री०) करंगा देखो। है। २ मूत्ररोगविशेष, पेशाबको एक वीमारी। इसमें करंजा (हिं० पु०) १कंजा। २ वृधविशेष, एक पेशाव साफ नहीं उतरता और वोच बीच दर्द उठता पेड़। ३ कोई आतिशबाजी। (वि०) ४ धूसरवर्ण है। ३ चिड़विशेष, एक निशान् । यह किसी वस्तु के नेत्रविशिष्ट, जो भूरी पांख रखता हो। पाघात, संघर्षण वा भारसे गरीरपर पड़ती है। करंजुवा (हिं० पु.) १ कंना। २ करंज, एक | करकपणन्याय (सं० पु०) न्यायविशेष, एक कायदा। पेड़। ३ कोई आतिशबाजी। ४ अरविशेष, एक कर शब्द कहनेसे जेसे कहपादि अलझारयुक्त कर कोपल। इसे घमोई भी कहते हैं। यह वंश, इक्षु समता जाता, वैसे ही इससे न्यायसूचक दृष्टान्तका प्रभृति जातीय पक्षों में फूटता है। करंजुवा जिस भावार्थ आता है। वृक्षम निकलता, उसको नाम करता है। ५ यवरोग- करकच (सं० ० ) १ सामुद्रिक लवणविशेष, समुद्र के विशेष, जौके पौदेको एक बीमारी। यह कपिको पानीसे निकाला जानेवाला एक नमक।. बड़ाच देखो। हानि पहुंचाता है। ६ वर्णविशेष, एक रंग। यह २ नख, नाखुन ३ ज्योतिषोख संचाविशेष। खाको होता है। माज, कसीस, फिटकिरी पौर शनिवी षष्ठी, शुक्रकी सप्तमी, वहस्पतिको अष्टमी, नासपात मिला इस रंगको बनाते हैं। (वि.) बुधको नवमी, मङ्गलको दशमी, चन्द्रको एका- धूसरवर्ष नेत्रविशिष्ट, भूरी प्रांख रखनेवाला । दशी और रविवारको हादशी तिथिको करकच सधूसर, खाकी। कहते हैं। करंड, (हिं० पु०)) प्रस्तरविशेष, एक पत्यर। इसे "शनिमार्गवजीवनकजसोमार्कवासरे। कुरुक्ष भी कहते हैं। करंड. प्रस्त्रशस्त्र पैनानके पठ्यादिविषयः सप्त क्रमात् करकचाः स्मृताः ॥ (ज्योतिचत्व) काम पाता है। करकच्छपिका (सं० स्त्री०) कच्छपस्तदावतिरस्ति करंडी (हिं. स्त्रो०) अंडी, कच्चे रेशमको चादर। प्रस्था सुद्रायाः, ठन्। कूर्ममुद्रा। सद्रा देखो। तान्त्रिक करती (हिं. स्त्री०) यन्त्र विशेष, एक श्रीनार। प्रचाकाल मत्स्यकूमादि अनेक प्रकार मुद्रा बनात यह १ इस्त दीर्घ, ६ अङ्गुलि प्रशस्त और.३ अङ्गलि हैं। उनमें कूर्म अर्थात् कच्छपाकार व्यवहृत सान्द्र होती है। चमार पर जूता सोते हैं। . होनेवाली मुद्राको ही करकच्छपिका वा कर्ममुद्रा करक (सं० पु-तो.) किरति विक्षिपति जल. कहते हैं। मस्मात् करोति जलमत्र वा, कृ. वा क-वुन्। अनादिभ्यः | करकन्न (सं० लो०) करपद्म, हाधका कमल । संशायां इन्। उप ४२५। १ करङ्ग, कमण्डल, करवा । करकट (सं० पु०) भरद्वाज पच्ची, एक चिड़िया। २ दाडिम्बवृक्ष, अनारका पेड़। ३ करनक्ष, करौंदे-करकट (हिं० पु.) असार, मल, कूड़ा, भाड़न। का.पेड़। ४ पलायच, टेसूका पेड़, ढाक । ५ कर- करकटिया (हिं. स्त्री०) कर्करट, एक चिड़िया । यह एक प्रकारका सारस है। इसका उदर एवं वारवक्ष, कनेर। । वकुलवृक्ष, मौलसिरी। ७ कोवि. अधोभाग कृष्णवर्ष रहता है। मस्तकपर शिक्षा होती दार, कंचनार । ८. कुसुम्भवच, कुसुमका पेड़। नारि है। फिर कण्ड भी श्याम ही रहता है। शरीरका कलका प्रस्थि, नारियलका,खोपड़ा। .१. गोमवच्छन, ७