काशी . १६०० ई० को मानमन्दिर मानसिंह कटक निर्मित हुआ था। किन्तु उसमें स्थान स्थान पर प्रस्तर. को भग्नावस्था देख शिल्पशास्त्रविद स्वीकार करते हैं कि उसका कोई कोई अंश अधिक प्राचीन है। मानमंदिर- का शिल्पनैपुण्य उल्लेखयोग्य है। उसके सुन्दर वाता- यनको गठण प्रणाली पर्यवेक्षण करनेसे निर्माताको मुख्याति विना किये कैसे रह सकते हैं। प्राजकन वैसा बड़ा वातायन बहुत कम देख पड़ता प्राचीन वसावशेष-उत्तर-पश्चिम कोण पर अलीपुर महन्ले में बैंकरियाकुण्ड है। काशीखण्ड में वह वकरी वा छागकुण्ड नामसे वर्णित हुवा है । कुण्ड दैय में ३६६ हाथ और प्रस्थम १८३ हाय है । कुण्डके उत्तर- पाच एक ऊंचा टोला पड़ा है । उस पर प्रस्तरक भन्न प्रतिमा और मठके कलस प्रभृति मिन्नते हैं। वह सब बौह मठवो ध्यसावशेष समझ पड़ते हैं। कुण्डको पूर्व और भी इष्टकका एक वृहत् स्तूप है । स्तूपके पूरब योगिवीर नामक स्थान है। वहां किसी योगीने सशरीर समाधि लाभ किया है। कुण्ड के दक्षिण-पश्चिम एक दरगाह या मुसलमानोंका भजनानय है। वह भी किसी प्राचीन गृहको भित्ति पर स्थापित है । दरगाहके पूरव ( २५४१३ हाथ ) तीन पंक्ति पाषाणस्तम्भ पर स्थापित एक क्षुद्र मसजिद है। वह मसजिद भी बहुत पुरानी है। उसकी गठनप्रणाली देख अनेक लोगोंने स्थिर किया है कि पीछे वर बौडोंकी रही। अाधु- निक समय में उसे मुसलमानों ने अपनी मसजिद बना लिया है। उसमें ७७७ हिजरी (१३७५ ई.) को खोदित फिरोजशाहको शिलालिपि है। उसके निकट बौद्ध चैत्य भी Eष्ट होता है। अनेक लोग स्वीकार करते कि एक काल बकरियाकुण्ड के पार्श्वमें वौइ. देवालय था। राजघाटके दुर्गम भी बौद्ध-विहारका निदर्शन मिलता है। उस भग्नावशेष विहारका शिल्पनेपुण्य प्रशंसनीय है। उसका कारकार्य और भास्करकार्य Sherring's Sacred City of the Hindus, p. 273. 287; J. A. S. Bengal, XXXV. p. 59 87; Forher's Ar- chaeological Survey Lists N, W. P. Vóli, 1. p. 199-202. सांचौके बौद्ध स्तूपसे मिलता है। वह विहार भी सुम लमानोंके हाथसे बचा न था। राजघाट दुर्गके उत्तर कवरस्थान, वरणामृङ्गामक अधमपुर महल्ले, वाराणसोके तेलियाने, चाटभैरव नामके रास्ते, बत्तीस खंभे, अढ़ाई कंगूरे को मसजिद और वरणाके पूर्व पार्श्व पंचक्रोसौ राइके पास सोना तलाबके निकट पान भी बौर-चत्य, विहार, स्व प एवं प्रतिमाका भग्नावशेष देख पड़ता है। अनेक नोग पनुमान करते कि भैरवको लाट बौर- रान अशोकने प्रतिष्ठित की थी। व्यवसाय-ऐसा नहीं कि काशी केवल पुण्यक्षेत्र ही है। वहां नानादेशीय लोगोंका समागम रहने से व्यवसाय भी पच्छा चलता है। काशीम चीनी, नील औरणोरेका व्यवसाय प्रधान है । नीनपुर, वस्ती, गोरखपुर प्रमृति स्थानीका सकल प्रकार उत्पन्न पण्यादि वहां पानीत और विक्रीत होता है। काशीके रेशमी कपड़े, शान, जर दोनी, हीरा जवाहरात, और खिलौने प्रसिप हैं। प्रधान प्रधान सभी हिन्दूराजावोंके वहां भवन अथवा छत्र हैं। हिन्दूराजा काशीमें भवन बना सकनेसे अपनेको धन्य समझते और समय समय पर वह वहां सपरिवार जा अवस्थिति करते हैं। सुतरां काशीमें राजभोगका भी प्रभाव नहीं। वहां दुर्ग, वारीक, विश्वविद्यालय, अनेक अन्यान्य विद्यालय, रेलवे स्टेशन, डाकघर,प्रदा खत पौर विस्तर चतुष्याठी विद्यमान हैं। पहले नाना स्थानसे विज काशी वेद पढ़ने जाते थे । पाज कत भी लोग जाते हैं सही, किन्तु पूर्वको भांति यन पब देख नहीं पड़ता। फिर भी अद्यापि वाराणसीधाम शास्त्र- चर्चाके लिये प्रसिद्ध है। कुछ दिन हुये हिन्दुवोन काशी में अपना बनारस विश्वविद्यालय खोला है। फिर काशीका "पाज" नामक दैनिक समाचार पत्र हिन्दीमें बहुत अच्छानिकलता है। बनारम देखी । काशी जैमियों का भी पवित्र तीर्थ है। चौथे कान- को प्रादिमें भगवान ऋषभदेवने यह नगर वसाया था। सर्वप्रथम यहां के राजा प्रकंपन हुये। इनने अपनी पुत्री सुखोचनाका स्वयंवर कर घडा यश प्राप्त किया था। यहां सातवे तीर्थकर सुपाचनाय पार तेईसवे तीथ- .
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