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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६५५

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यह ६५८ काशीराव-काश्तकार हैं। उसमें उसाइतत्त्व, एकादशीतत्व, तिधितत्त्व, दाय. न्याय-अन्यकार । ४ ( भट्टाचार्य)-सुपद्मश्याकरण तख, प्रायश्चित्ततत्व, मलमासतत्त्व, शुद्धितत्व, और नुसार धातुपाठ, भूरिप्रयोगगणटोजा, मुग्धवोघटोका श्राद्यतत्वको टीका भी मिलती हैं। और मुग्धबोधपरिशिष्ट प्रसूति ग्रन्यकार | ५ (शर्मा) काशीराव-तुकाजीराव होलकरके एक लड़के । घनश्यामके पुत्र और राघव पण्डिसके पौत्र । उन्होंने दुर्वल हृदयके मनुष्य थे। इनके भाई मल्हाररावने १७३८ ई० को ज्ञानामृत नामक एक संस्कृत व्याक. १७८७ ई० को पिताके मरनेपर इन्दौरक सिंहासन रणकी रचना की थी। पर अधिकार करना चाहा था। काशीरावने दौलतराव काशीसम्म त (सं० पु.) पारद, पारा। संधियासे निवेदन किया। उन्होंने मल्हाररावको शाशू (सं० स्त्री.) कग-णिच्-ज। १ भनिनामक धानमण कर मार डाला। परन्तु यशवन्त राव इस अस्न, बरछी, भाला। विफलवाक्य, वेफायदा वात । विपदसे निकल भागे । १७८८ ई०को उन्होंने अमीर ३ बुहि, अली । ४ रोग, बीमारी। खान्के साहाय्यसे काशीरावको सेनाको पराजय काशूकार (सं० यु.) काशू विफलवाचं करोति, किया । काशू-क-प्रण । गुवाहा, सुपारीका पेड़ ! काशोध (सं० लो०) कुसित ईषत् काशीशमिव, को काशूतरी (सं० स्त्री.) काशूनामक क्षुद्र, प्रत्र, छोटो कादेशः। १ उपधातुविशेष, कसीस (Sulphate of वरही। iron.) इसका संस्कत पर्याय धातुकाधीश, काचोस, | काशेय (सं० पु०) काश्यां भवः, काशी ढक काश: काशि- धातुकासोस, खेचर, धातुशेखर, केसर, हंसलोमश, नृपतेः गोतापत्यं वा ।१ काशीरानवंशीय। काशौक शोधन, पांशकाशीश और शुभ। यह धातुका. प्रथम राजा काशवंशोद्भव । (नि.)२ कागोदेशजात । शोथ और पुष्पकाशीशक भेदसे दो प्रकारका काशयो (सं. स्त्री.) काशय डो। काशीराजकन्या । होता है। फिर इनमें भी धातुकाधीश हरित् पौर "भरतः खलु कायोरुपयेमे सार्वसैमोम' (भारत पादि ५०) खोहित भेदसे पोर पुष्पकाशोश खेत और कृष्ण काश्त (फा० स्त्री०) कृषि, खेतीका एक इक । उसके भेदसे दी दो प्रकारका होता है। भावप्रकाशको मतमें अनुसार जमीन्दारको कुछ वार्षिक नगान देकर यह अम्ल, तित, कषायरस विशिष्ट, उष्णवीय, वात किसान उसकी जमीन जोत बो सकता है। मनाशक, देशका पकारक, प्रिखिोकी खुजली, काश्तकार ( फा. पु.) कृषक, किसान, खेतिहर । विषदोष, मूवच्छ, अश्मरी और विनरोगनाशा है। २ कृषक विशेष, किसी किस्म का किसान। वह जमी- यह भृगराजके रसमें भिगोकर शोधा जाना है। न्दारको कुछ वार्षिक कर दे उसकी जमीन पर कपि

(हिराकस देखौ) २ (पु.) काश्याः ईशः, ६-तत् ।

करनेका खल पाता है। महादेव। ३ कायौदेशक राना। काश्तकार पांच प्रकारके हैं-गरहमुऐयन, दही- काशोपवितय (सं• क्लो. ) काशीयधातु, काशीशपुष्य नकार, गेर दखीतकार, माकितुनी मानझियत और और काशोश। शिकमी । शहरमण्यन सदा एक ही समान कर देते कापीमाद्यतेल (सं० लो०) तेनविशेष, एका तेल । हैं। उनकी भूमिपर कर नहीं बढ़ सकता। फिर कापोश, अश्वगन्धा, लोध्र और गजपिप्पानीको तेल में उनकी भूमि वेदग्वन भी नहीं होती। १२ वर्ष पाक करनेसे उक्त पौषध प्रस्तुत होता है। इसके लगातार वही जमीन जोतनेसे काश्तकारको दखोन- लगानि स्त्रीरोग निरोग हो जाता है। इसमें कालका कारी स्वत्व मिल जाता है। फिर उसे कोई वैदखन । बादाथ तैल पड़ता है । ( चक्रपाणिदास ) कर नहीं सकता।गैर दोशकार १२ १५ तक कोई सिायोशा(पु.) काश्याः ईश्वरः, ५-तत् । १ महा जमीन जोत को नहीं सकते। किसी जमान पर पहले कारकीशोदेशक रामा। ३ अर्थमनरो नामक जमीन्दारकी भांति सौर करनेवाले शिनान साकितुन्न तक