काश्मीर प्रथम गोनन्दके मरने पर तत्पुत्र दामोदर काश्मोर के राजा हुये । वह बहुत अहवारी थे। मुतरा पिताके मरनमे राज्य पाकर भी दामोदर सुखी न हुये। रानतरङ्गिणीके मन में उनके राजलकाल किसी गांधार राजकुमारीके स्वयम्बरोपलक्ष कण-बलराम बुलाये गये थे । दामोदरने यह बात सुन स्थिर किया कि पिहन्ताकै प्राणवधका वह सुयोग था, वैसा मुयोग त्याग करना उचित न रक्षा। इसी विवेचनामें उन्होंने . वृहत् सेन्यदलके साथ पधिमध्य क्रूपण-वस्तरामका आक्रमण किया । युद्ध में कृष्णके चक्राधातसे दामोद मारे गये। महाभारत पाठसे समझ पड़ता कि राजस्व यजकाल अर्जुनने काश्मीर जय किया था दामोदरके मृत्यु काल उनको महिपो यगोमती गभिगी थीं। श्रीकृष्णक पादेशानुसार वही सिंहासन पर बैठ गयौं । स्त्रीके राजा होनेकी बात सुन प्रधान अमात्यने आपत्ति डाली था। श्रीकृष्णने उन्हें उत्तर दिया- "काश्मीरा पावती तव राज्ञायी हरांगनः । भावने यो स दुष्टोऽपि विदुषा भूप्तिमिच्छता." (राजतरङ्गियो ) एसे चान्ये च राजानी यनयन्ती महारथाः। गमन्वयुनराम विदिषन्तो जनार्दनम् ॥" (हरिवंश १०) जरासन्धक प्रथमवार मघ राक्रमयको बर्थनामे उस शोक मिलते हैं। उसके पछि जिस समय कृष धनराम गोमन पर्वत पर गई, उसममग्र मौ अश्व सकल मित्रराज साय म्हें वध करने गये थे। मरासम्मक
- मिवरामि भी गौनद का नाम निकासमा यथा-
"मद्र: कलिदाधिपतिरेकितान: सवाधिक। कामोररात्री गोन करुषाधिपतितयार दुमः किम्य रुपयेव पार्वतीयाय मालवाः। पर्वतास्थापरं पाच सिपमारीयन्वमी" (हरिव'ग, ६.प.) परिवंशम इतना ही शिखा है. किन्तु चरामके हाथ गोनटक मारे 'नानेकी कथा उसमें नहीं पायी। • "नत: कारमोरी कान् वीरान विधान् चवियर्षभः । व्यायल्लीहितव मणलशमिः सह ॥१०॥ वतस्निगः कोने में दाः काकमदान्तथा । पविया वइयो रात्रघ्र पावर्तन्त सर्प यः ॥१८॥ पामसारौं सवो रम्या विनिग्ये कुरुनन्दनः । सरगावासिनईवरीचमा रोऽनयत ।"१९॥ (महामारत, समापर्व २०७०) काश्मीरको रमणी पार्वती और काश्मीरके राजा महादेवका अंश है। दुःशील रानावों से भी पुख्ता भेच्छु पण्डितों को घृणा करना न चाहिये। ययाकाल यशोमतीके गर्भसे मुनक्षणाक्रान्त बान कने जन्म लिया था। उसका नाम २य गोनदं पड़ा। राजतरङ्गिपोके मतमे उन्हींके समय भारतयुद्द हुवा था। वह शिशु थे। इसीसे कौरव पाण्डवमें किसीने उनको नहीं बुलाया 18 उनके पीछे ३५ राजा किन्तु वह ममी पधर्मी और दुर्दान्त थे। मासे किमो इतिहास वा शाम्नादि. में उनका नाम या विन्दुमाव भी विवरण नहीं मिलता। फिर लव नामक एक राजा हुये । कहना कठिन है-वह प्रथम गोनन्दके वंशजात घे या नहीं। वह पनिक पाचवों राजावों को ववश चाये। उन्होंने "लोलोर" नामसे एक नगर स्थापन किया था, किम्ब. दन्तीके अनुसार उसमें ८४ लाख पत्थरके मकान रहे। उन्होंने लोसारकै अन्तर्गत लेवार नामक प्राम ब्राह्मणोंको दिया था। लवके पीछे उनके पुत्र कुशेशय राना बने। उन्होंने ब्राह्मणोंको कुरुहार नामक ग्राम दान किया था। कुशेशयके पीछे उनके पुत्र खगेन्द्र नरपति हुये । वह प्रतिसाइसी, नागद्दषो और धीरवुहि घे । उन्होंने खांगिपुर और खुनमुष नामक दो ग्राम संस्थापन किये। +नीलमनपुरापम भी इसी प्रकार लिखा है- "दामोदरामियतस्य सून रानाभवन सुधौः ।..... पयोपमिन्दगाधारविषये ऽमृत् स्वमवरः । सवाइका समाजप्न राजानी बौशानिनः । सवागर्ने समाकी वासुदेव खयम्पर। लगाम माधवं थीह, चतुरचनान्वितः यादृशं वासुदेवस्य नरकैण महामवत् । ततः स बासुर्दम युद्ध थिनिशनिमः। पतवंदी सस्य पत्रों' वामदेवोऽध्यपेचचन । भविष्यत् प्रवरचार्य वय दंशय गौरवात् । ततः मा सुमुवे पूर्व वार्न गोनन्दसज्ञितम् । पालमामान पा सूतै मौतः कौरन वा " + वर्तमान माम मुदही या भडगीपाल है। खागिपुर का स्वर्गद्रपुरका वर्तमान नाम काकपुर । वेव