काश्मीर काश्मीर प्रति पुराकालसे प्रार्य जातिका लीलाक्षेत्र उस समय कामौर घोटक* लिये प्रमिह था । है। पाय देखी। शाहायन-प्राणमें लिखा है। अाजकल वह घोटक 'गुट कहाता है। 'पथ्यास्वस्तिको ही उत्तरदिक् समझिये । पथ्या वर्तमान काश्मीर राज्यका "लम्बु" भी महाभारतके समय पवित्र तीर्थ जैसा विख्यात था। स्वस्ति ही वाक् हैं । उत्तर दिन में ही वाक्य प्रन्नात जैसा कीर्तित है। लोग भी उत्तरदिकमें भाषा सीखने "लयमार्ग समाविया देवर्षिपिट वितम् । पञ्चमधमवाप्रीति संघकामसमन्वितः " . ( वन, ८९ ०१ माते हैं। ऐसा प्रवाद है-जो लोग उत्तरदिक्कसे पाते देवता, ऋषि और पिढ़कटक निषेवित जम्बूमाग हैं, सब लोग यह कह उनका (उपदेश) सुनने को नामक तीर्थ में जानसे अश्वमेधका फल मिलता और इच्छा करते हैं, कि वह बोल रहे हैं । कारण सत्तर- समस्त कामना परिपूर्ण हवा करती हैं। दिक वाक्यको दिकको मांति ख्यात है P* कश्मीरका इतिहास विनायकमने शाहायनमाष्यमें लिखा है- हरिवंशी काश्मीरपति गोनर्दका नाम मिलता है। 'काश्मीरमें सरस्वती कीर्तित पा करती है। राजतरङ्गियोमें कहणने उन्होंको प्रथम राजा जैसा ( सरस्वती ही वाक है) सरस्वतीके प्रसादलाभको मिखा है। राजतरङ्गिणी में स्थान स्थान पर “गोनन्द लोग उत्तरदिक लात हैं और "गोन नाम पाया है। काश्मीरके राजावोंमें विनायकमको उकिसे समझ पाते कि अति पुरा. तीन गोनन्दका नाम मिमनेसे प्रथम गोनन्द 'गीनन्द काम लोग उत्तरदिक भाषा सीखने जाते थे । सम्भ- प्रथम' जैसे अभिहित हुये हैं। वत सीसे काश्मीरका अपर नाम सरस्वती वा शारदा राजतरङ्गिपीके मसमें प्रथम गोनन्द कलियुगसे पहले काश्मीरके सिंहासन पर अधिष्ठित थे। इससे महाभारतके समय भी कामोर एक तीर्थ के समान वह युधिष्ठिरादिके समसामयिक ठहरते हैं । कारण प्रसिद्ध था। यथा- कतिप्रविष्ट होनेसे युधिष्ठिरादिने स्वर्गारोहण किया.. "काश्मीरचव नागस्य भवन तकस्य च। वितसाध्यमिति खातं सर्वपापप्रमोचनम् । था । गोनन्द मगधराज जरासंधके वन्धु रहे । उनका वय वाचा गरीननं वाजपध्मयान यान। राज्य गङ्गाकै उत्पत्तिस्थान कैलास पर्वतके मून देश सर्वपापविशहामा गच्छेच परको गतिम् ॥" ५ (वन. ८२०) पर्यन्त विस्तुतः या.! जरासन्ध ने जब मथुरासे यदुवंशी काश्मीर देशमें सक्षकमागका भवन है। वहां यों को भगाया, तब पाहत हो गोनन्दने एक दस वितस्ता मामक सर्वपापनाशन एक सौर्थ है। सैन्य के साथ जरासन्धको साहाय्य पहुंचाया था। फिर इसमें मान..मारनेसे नर वाजपेययागका फल पाते उन्होंने यमुनातीर शिविर स्थापन कर पथिमदिक को और सर्वपापसे छूट नाते हैं। सुतरां विशुद्ध हो जानेसे | यदुवंशौर्योका पनायनपथ रोक दिया। युद्धकालं उन्हें परमगति मिलती है। कणसे लड़ जरासन्ध हारे थे। किन्तु गोनन्दके बलराम- से युद्ध कर विपक्ष सैन्यको विध्वस्त करते भी • 'पण्यास्वस्तिस्दीची' दिगं प्राधानात् । वाग् वं पथावतिः । तस्माद पर्यन्त जय पराजय स्थिर न हुधा। पवशेषको वह दौथो दिगि प्रभावतरा वागुयते । उदो उ एक यान्ति बाचं शिचितम् । बलरामके अस्त्राधातसे मारे गये। यो वा तत पागच्छति सस्य वा प्रश्नुपन्ने पति का एषा हि वाचो दिक् प्रभाता।" (14) 'कामौगैव सुरगामः " (महाभारत, विराटप) +"प्रज्ञातसरा वायुराते काश्मीर सरस्वती की ये है। बदरिकाशमै वैदघोषः हरिवंश खिखा है कि कारकीरराज गोनर्दने नरासन्धको साहाथ सूयते । बाचं गिषितु सरस्वतीप्रसादा उदो।" दिया और मथुरा नगरौके पषिम हारका पवरोधमार अपने कपर लिया 1 मतान्तरमै सतीका अंग गिरमेस काश्मीरका पपर नाम शारदा था । यथा-"शासोरराको गोमो दरदाधिपतिई पः । पोट है! दुर्योधनादधयेव धार्तराष्ट्रा महावताः । Vol, 168 IV.
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६६६
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