सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काश्मीर मृत्यु हुवा। और विद्याबुद्धि दर्शनसे भीत हो काश्मीरराजने उन्ह भवन, खादना, मस्मा और ( यूकदेवी प्रतिष्ठित ) नड़. कैद किया। मन्त्री कैद किये जाते भी दुःखी न हुये वन विहार। रानी अमृतप्रभाके पिताके गुरुने स्तुन- वह सर्वदा शिवके प्रेममें पानन्दित रहते थे । १० वर पाली नामक नगरसे गमन कर नोस्तुनपा नामक इसी प्रकार बीत गये। अपुत्त्रक अवस्था में जयेन्द्रका एक खतन्च स्तूप बनाया था। मेघवाहनके मरनेपर उनके पुत्र श्रेष्ठसेन (अपर नाम प्रवरमेन १म) राजा कुछदिन अराजवाता रहने पौछ सन्धिमतिने प्रायः हुवे। पितामाताके बहुत कुछ बौहमतावनम्दी होते राज नामग्रहण पूर्वक काश्मीरवासियोंके यत्नसे भी उन्होंने अपने नामपर प्रवरेश्वर नामक देवमन्दिर सिंहासन पाया था। उन्होने अनेक सत्कार्य किये प्रतिष्ठाकर देवसेवाके लिये विगत राज्य दान किया था। प्रवाद है कि वह प्रत्यह सहन शिवलिङ्ग प्रतिष्ठा श्रेठमेनके मरने पर उनके पुत्र हिरखने, कनिष्ठ करते थे। ऐतिहासिक कहाणके समय तक उक्त सकन सहोदर तोरमाणके साहाय्यसे राज्य चन्नाया । पहले पाषाणमय शिवलिङ्ग विद्यमान रहे। (रामतरगाणो । २१३२१ काश्मीरमें जो मुद्रा प्रचन्तित रहो, तारमा एने उस के राजा सन्धिमतिने शिवलिङ्गको पूजाके व्ययनिर्वाहार्य बदले (किसीका अनिष्ट न कर) स्वनामानित वर्ण- भनेक ग्राम दान किये थे। उन्होंने अपने नामपर मुद्रा ( असरफी) प्रचार को। उक्त कार्यसे क्रुद्ध हो सन्धीश्वर, गुरु के नामपर ईशंखर पारखेदा एवं भौमा हिरण्य ने उन्हें सम्त्रीक कारारुद्ध किया था। भारागारमें नामसे दूसरे भी कई सुवृहत् देवालयों को प्रतिष्ठा की। तोरमाणको पत्नी गर्भवती हुयो और दगमास पूर्ण उनके समय समस्त काश्मीर राज्य देवमन्दिर और होने पर किसी उपायसे भाग गयो। उन्होंने एक कुम्भ- प्रासादमण्डित हो गया । उन्होंने कुछदिन राज्यकर झारके गहमें प्राथय लिया और वहां एक पुत्रको इष्टदेवको सेवामें समय अतिवाहित करनेके लिये पसव किया । शेषको वह पुत्र बड़ा हुवा,। उसके मातुल राजसिंहासन छोड़ दिया। ( इक्ष्वाकुवंशीय ) जयेन्द्र किसी प्रकार सन्धान पा इधर गना युधिष्ठिरके प्रपौत्रने गान्धाररान गोपा भगिनी और भागिनेयको स्वराज्यमें ले गये । हिरण्य- दित्यका आश्रय लिया था। उनके मेघवाहन नामक कुन्त ३२ वर्ष २ मास राजत्व कर निसन्तान अवस्था एक पुत्र हुवा। उसने प्रागन्योतिषकी राजकन्याको पर काम्नग्रासमें पतित हुये। स्वयम्बरमें पाया था । कामरूपकी राजकुमारीको उस समय उज्जयिनी में हर्ष विक्रमादित्य राजल लेकर लौटनेपर काश्मीरके मन्त्रियों ने उन्हे श्राद्वान करते थे । राजतरङ्गिणीके मससे उन्होंने शकों और किया। मन्त्रियोंके यनसे युधिष्ठिरका वंश फिर म्लेच्छो'को हराया रहा। उनको सभामें कविवर माह- काश्मीरके राजासन पर अभिषिक्त हुवा । मेघवाहनने गुप्त रहते थे । हर्षविक्रमने प्रथमतः कवि माळगुप्तका अभिषेक-दिवससे प्राणिहिसारो कनेको प्रादेश निकाला कोई सम्मान नहीं किया। माटगुप्त शयन स्वपन जाग- था । उन्होंने अपने नामपर मेघमठ, युटग्राम पौर रणमें अनुचरको भांति राजाके अनुगामी रहे। उनके मेघवाहन नामक अग्रहार स्थापन किया। उनकी रानि रात्रिको निद्रित होनेपर रविवर्गको भांति कवि मा. यो ने अपने अपने नामपर भिक्षुको के रहनेको गुप्त भी शयनागारके द्वारपर जगा करते थे। यथाकाच 'विहार' बनाये थे । उक्त विहारों के नाम रहे-अमृत. राजाने समझा कि वैसे असामान्य प्रतिभाशाली पण्डितको उपेक्षा करना अच्छा न था। उसी समय "तखते सुसमान पर्व तपर सन्धोश्वर मन्दिरका भग्रावशेष विदामान है। सन्धिमतिक नामानुसार उस पर्वतका नाम 'मन्धिमान् था। मुसलमानों ने • मुद्रित रानोमें 'लोम्तान्या' पाठ है। यह समपाठ समझकर उसके बदले 'मुस्लमान' नाम रख लया है। छोड़ दिया गया है। (राजतरजियो ३।१०) + वर्तमान इसल मावाटके उत्तर-पूर्व २ कोम दूर भवनयामकै पास ली नगरका वर्तमान नाम है। वह लाया या मय निश्चसमें यवस्थित है। स्तुनया तिव्वतीय शब्द है। भीमादेवीका गुहामन्दिर दृष्ट होता है।