करनेकी काश्मौर कालिदास होते, तो प्रशंसा करते भी शह ग उन्हं एक उन्हें स्मरया पाया कि काश्मीर राज्य पराजक रहा। बार कालिदास न लिख देते ? कालिदास देखो। उन्होंने मागुप्त को बुलाकर कहा था-"यह पत्र लेकर आप काश्मीरके शासनकर्ताके निकट चले राजतरङ्गिणीमें इविक्रमादित्य के शकदेश जय जाइये। पथिमध्य से खालकर कभी न पढ़ियेगा।" । बात लिखी है। शिन्तु क्या निश्चयता है कि उक्त शकदेशका जय, संवतब्दप्रतिष्ठाताके ही समय मालगुप्त यथासमय काश्मीर पहुंचे । मन्त्रिवर्गने 'इर्षविक्रमादित्य का पत्र पा मागुप्तको काश्मीर राज्य हुवा था? पर अभिषिक्त किया था। उस समय उन्होंने विक्रमा कुमार प्रवरसेन काश्मीर लौटकर राज्य करने दित्यको गुणगाड़िताको समझा और नानाविध उप लगे। उन्होंने काश्मीरके चतुःपार्षस्थ राज्य जीत ढोकन तथा कवितादि उज्जयिनीको भेज दिया। लिये थे। राना मानगुप्तने स्वराज्यमें पशुबध रोका था। हर्षविक्रमादित्य के पुत्र उन्नयिनौराज . प्रताप उनको सभामें 'हयग्रीववध' नामक काव्यप्रणिना कवि शीन वशिलादित्याने प्रवरसेनसे क्रमान्वय ७ बार हारते वर मामणका अवस्थान रहा । राजा मारगुप्तने भी काश्मौरकी अधीनता न मानी । शेषको पटम "मारगुप्तस्वामी" नासक विष्णुमूर्ति प्रतिष्ठाकर देव बार युद्धमें जीवनसङ्कट देख स्वयं वशीभूत हो गये। सेवाके लिये विम्तर पर्थ व्यय किया था। उनका राजत्व कणके कथनानुसार प्रतापशील शायद मयरको भांति ४ वर्ष १ मास १ दिन रहा। नाच और बोल सकते थे। फिर प्रवरसेनने शायद इधर तोरमाणके पुत्र प्रवरसेन (श्य)-ने सुना कि उसीकी देख उनका जीवन बचा और उन्हें स्वाधीन उनके पिट पितामहके सिंहासनको किसी दूसरे व्यक्ति बना दिया। इसी प्रकार समस्त प्रतापान्वित राज्य ने अधिकार किया था। कुमार इस बातको सहन कोत द्वितीय प्रवरसेन पितामहपुरमें रहने लगे। सके और कामोरको चल दिये । मंत्री उनके साहाय्यार्थं | उन्होंने वितस्तातीर अपने नामपर मनोहर प्रवरपुर उपस्थित हुये थे। प्रवरसेन काश्मीरको अवस्था मामक नगर स्थापन और "जयस्वामी" नामसे शिव- देख कहने लगे-"निरपराधी माळगुप्तका क्या दोष है। लिङ्ग तथा देवी मूर्तिको प्रतिष्ठा किया था । प्रवरसेन- वर्तमान व्यवस्था करनेवाने विक्रमादित्य की ही इम पुरके निकट विनायक भीमखामौका मन्दिर रहा। इसका प्रतिफल देंगे।" उसके पीछे सैन्यसंग्रह कर उन्होंने वितस्तापर सर्वप्रथम नौसेतु प्रस्तुत कराया था। प्रवरसेनने विगत जीता था। फिर उन्होंने हर्ष- उनसे पूर्व किसीने काश्मीरमें नौसेतु नहीं बनाया। विक्रमके विरुद्ध उन्नयिनीके अभिमुख गमन किया। उक्त नौसेतुके उद्देश उन्होंने प्रसिद्ध सेतु काव्य वा 'दशा पथिमध्य समाचार मिला कि हर्षविक्रमादित्यका स्यवधप्रबन्ध' प्रणयन किया था। उनके मातुल जयेन्द्र- मृत्य हुवा था। उससे बड़ी पाशा मारी गयौ । कुमार ने 'जयेन्द्रविहार नामसे बौधविहार बनाया। उनके प्रवरसेनने सानाहार छोड़ दिया। दिवारावि क्षोभमें मन्त्री पौर सिंहलके शासनकर्ता मोरकने 'मोरक- बीती थी। भवन' नामक एक मुदृश्य प्रासाद निर्माण कराया था। उक्त मावगुप्तको कवि कालिदास और हर्षविक्रम- महाराज प्रवरसेनके ललाटमें स्वभावतः शूलचिड़ को संवताब्दप्रतिष्ठाता शकारि विक्रमादित्य मान अनेक पंन्ति रहा। उनको महिषीका नाम रत्नप्रभा था। लोग महाचममें पड़ गये हैं। मानगुप्तके सम्बन्धपर प्रवरसेनके पीछे उनके पुत्र युधिष्ठिर (२य) राजा कितनी ही कथा राजतरङ्गणोमें मिलती है। उनको । हुये। उन्होंने २१ वर्ष ३ मास राजस्व किया। उनके कृषिता, धार्मिकता और महानुभवताको कनपने मुक्त । मन्त्री जयेन्द्रपुत्र वजेन्द्रने भवच्छेद नामक चैत्यादि कण्ठसे सराहा भी है। किन्तु उन्होंने मालगुमको | समाकीय बौखग्रास स्थापन किया था। कुमारसेन कहीं कालिदासको भांति नहीं लिखा । यदि माळगुप्त
- प्रवरसेनपुर-वर्तमान प्रौनगर राजधानी है।