पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६७७

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काश्मीर कराया। शेष दशाको वह कायस्थ मन्त्रियों के परा' वनापीड़के पुत्र अजितापीड़ को राज्य सौंप दिया। मर्शसे युद्धलालसा छोड़ रमणो-विलासमें मत्त हो गये अजितापोड़ राना होनेपर झालंपञ्चकको समान और ब्रह्मशापसे मृत्युमुखमें पतित हुये। उनकी भावसे सन्तुष्टकर न सके थे । उससे बड़ा गड़बड़ पड़, जमनी अमृतप्रभाने पुत्र की सहतिके लिये अमृतकेशव गया । एकसे प्रास्ताप करने पर चार भाई चिढ़ने लगे। नामसे हरिमूर्तिको प्रतिष्ठा किया । जो हुवा हो, उक्त पांचो नोगोंने देश में अनेक सत्कार्य जयापोड़के पीछे उनके पुत्र ललितापोड़ महिषी किये थे। उत्पनने उत्यन्तपुर नामक नगर तथा उत्पन्न- दुर्गाके प्रयत्नसे राना हुये। वह बहुत कामासक्त रहे। स्वामी नामक देवता. पद्मने पद्मपुर नामक नगर एवं उनने ब्राह्मणोंसे सुवर्णपाखं, फलपुर और लोचनोक्स पद्मस्वामी देवता, पद्मकी पत्नी गुणदेवोने विजयेश्वर नामक तीन स्थान छोम लिये । उनका राजत्वकान्त नामक स्थान तथा पद्मपुर में एक एक देवता, धर्मने हादश वर्ष मात्र था। धर्मखामी नामक देवता, कल्याणवर्माने कल्याणस्वामी ललितापोड़के पीछे उनके वैमात्रेय ( गौड़राज नामक विष्णुमूर्ति और मम्मने मम्मस्वामी नामक कुमारी कल्याणदेवीके गर्भजात ) संग्रामपौड़ (२य )ने देवताको स्थापन किया । काश्मोरीय ८८ नौकिकाष्दको पृथिव्यापीड़ नाम ग्रहण कर सात वर्ष राजत्व किया । राजा सहस्पतिका मृत्यु हुआ । वृहस्पतिके पीछे उनके संग्रामपीड़ के पीछे ललितापीड़के शिशपुत्र वृहस्पति मातुलौने ३६ वर्ष अनुस्य प्रतापसे राज्य चम्नाया था। वा चिप्पटजयापोड़ राजा हुये। उनने सलिसापोड़के उसके पीछे उत्पन्नसे मम्मका विषम युद्ध हुवा । उस औरस और जयादेवी नाम्नी रमणीके गर्भसे जन्म भयानक युद्दमें शवराशिसे वितस्ताका जलप्रवाह रुक लिया था। जयादेवी अखुबवासी कल्पपालको कन्या गया था। कवि शङ्खकन अपने "भुवनाभ्युदय" काव्य में रहीं। रूप देख ललितापोड़ उन्हें हरण कर ले गये थे। उक्त युहका विशेष विवरण लिखा है । युद्दमें मम्मके राजा बालक होनेसे पद्म, उत्पलक, कल्याण, मम्म और पुत्र यशोवर्माने जय प्राप्तकर अजितापीड़को राज्यच्यु त धर्म नामक मातुल राज्यका रक्षणावेक्षण करने लगे । और संग्रामाोड़के पुत्र अनलापोड़को राज्यस्थ किया । वह भी सब अल्पवयस्क थे। सर्वन्येष्ठने पञ्च प्रधान अनकापोड़ राजा तो दुवे, किन्तु उत्पलके मरने पर कर्मचारीका पद ग्रहण किया पौर सबने जयादेवीके उनके पुत्र सुखधर्माने प्रतिशोध ले यशोवर्माको हराया पादेशानुसार काम लिया। जयादेवीने जयेश्वर देव और अनङ्गापीड़को राज्यच्च त कर अजितापीड़के पुत्र ताको प्रतिष्ठा किया था । बालक हस्पति वा चिप्पट ] उत्पलापीड़को राज्य का अधिपति बनाया। जयापोड़ १२ वर्ष राजत्व कर मातुलोंके चक्रान्तसे उत्यन्तापीड़के राजत्वका सान्धिविग्राहिक रखने अभिचार क्रिया पर मृत्य के मुखमें पतित हुये। यथेष्ट धनशाली ही रत्नखामी नामक देवताको स्थापन उसी समय राज्यमें विकला पड़ गयो । जयादेवी. किया और विमलाख नामक स्थानके जमीन्दार के धानपञ्चकने अपना प्रताप अशुस रखनेके लिये लोग और दाऽभिसारके विचारपति राजाकी भांति भागिनेयको मार डाला । फिर किसीको नाममात्रका स्वाधीन बन गये। राना बनाने के लिये वह घूमने लगे । किन्तु भाइयों में उसी समयसे काय स्य दुर्लभवर्धनका वंश लोप होने इस बात पर मतभेद हो गया:-किसको राजा बनाना लगा। मुखवर्मा जिस समय, सिंहासन पर बैठनेका चाहिये। उसी समय जयापीड़के दूसरे वैमात्रेय भ्राता आयोजन करते थे, उसी समय उनके बन्धु शुष्कने (रानी मेघावलोके गर्भजात ) त्रिभुवनापोड़के वंशीयों-उन्हबार डाला। शूर नामक प्रधान मन्त्रीने काश्मीरीय में सर्वापचा वयोज्येष्ठ होनेसे उत्तराधिकार-सूत्र में ३१ तोकिकाम्दको उत्पलापौषको राजधत कर राज्य पान के अधिकारी थे। किन्तु पञ्चचाताके एक • पद्मपुरका वर्तमान नाम पामपुर। वह रानधानी योनगरसे. मत न होनेसे जयादेवीको साहाय्य उत्पलने उस विभुः ५ कोस उत्तर-पूर्व वेहत नदी दविष तौर पवस्थित है। ture- -