काश्मीर ६७६ सगे कि मनुष्यका जीवन क्षणविध्वंसी और पापका जयापीड़ने राज्योहार कर शान्ति को स्थापन किया। शास्ता जगदीवर दी है। उनने केवल १ वर्ष १५ महिषो कल्याणदेवीने पुष्कलेबको युद्धभूमिमें कल्याण- दिन राजत्व किया। उनके वानप्रस्य अवलम्बन करने पुर नामक नगर बसाया था। जयापीड़ने स्वयं · पर पिम्ती मिवशर्माने सस्त्रीक मस्त में ड्वाय महणपुर नामक नगर और उसमें केशवमूर्तिको स्थापन किया कमलान भी कमला नामक नगर वसाया। छोड दिया था। कुवलयादित्य के पीछे ववादित्य सिंहासन पर बैठे उस समय काश्मीरमें विद्याचर्चा बहुत थी। राजा उन्होंने महिषो क्रमर्दिका गर्भसे जन्म लिया था। जयापीड़ने पतञ्जलिके.महाभाष्य और स्वरचिन शाशिका शोक उन्हें वप्पियक वा ललितादित्य भी कहते थे । वृत्तिका प्रचार किया। (उनने स्वयं क्षीर नामक वह निष्ठुर देवस्खापहारी (परिहासपुरादिकी अनेक पण्डितके पास व्याकरण पढ़ा था।) उनटभट, दामो. देवोत्तर सम्पत्ति उन्होंने छीन ली थी), अतिशय प्रत्या दरगुप्त, मनोरथ, शवदत्त, घटक और सन्धिमान चारी, स्कोविलासी और म्लेच्छाचारी थे । पतिमात्र नाम कवि उनकी सभा में विद्यमान थे.। उटभ स्त्रीसम्भोगके फल यक्ष्मारोगये. उनका- मृत्यु हुवा । सभापण्डित रहे। उन्हें प्रतिदिन लक्ष स्वर्णमुद्रा उनने ७ वर्ष राजत्व किया था। (असर्फी) मिलती थौं । दामोदरगुप्त, प्रधानमन्त्री वजादित्य के पीछे उनके पुत्र पृथिश्यापोड़ गजा और कवि एवं वैयाकरण वामन उनके अन्यतम हुये । उनकी माताका नाम मनरिका था । उनने मन्त्री रहे। ४ वर्ष १ मास राजत्व किया । जयापीड़ने पीछे जयपुर प्रभृति दूसरे भी कई पृथिव्यापीड़के पोछे उनको विमासा मत्स्याके गर्भ नगर, जयदेवी नाम्नी देवीपतिमा, राम लक्ष्मण पा. जास संग्रामपौड़ने राज्य पाया । उनका राजत्वकास टिको मूर्ति और अनन्तशायी विष्णुमूर्तियो प्रतिष्ठा -७ वर्ष रहा। किया। कहा जाता है कि विष्णुने स्वप्नमें नन्नवेष्ठित संग्रामपीड़के मरने पर-वप्पीय वा हितोय. ललिता द्वारावतीपुरी निर्माण वारनेको आदेश दिया था। दित्य (वजादित्य ) के कनिष्ठ पुत्र जयापोड़ सिंहासन जयापीड़ने वैसा हो एक मगर. निर्माण कराया। पर बैठे। उनने प्रयागमें माLetee अख ब्राह्मणको करणकै समय अभ्यन्तर-जयपुरके नामसे विख्यात था। दान किये थे। उक्त दामके पीछे जयापीड़ने. प्रयागमें 5 स्थानमें भो जय दत्त नामक किसी कर्मचारीने खनामसे एक स्तम्भ बनाया पार उसपर निम्नलिखित | एक बौहमठ और मथुराधोखर प्रमोटके . जामाता विषय खोदाया-जो हमारी भांति नामों को चपख पाचने खिर नामक एक शिवलिङ्ग स्थापन किया । इस स्थान पर दे सकेगा, वह हमारे इस स्तम्भकोमानी उसके पाछे जयापाड़ दिग्विजयार्थ हिमालय पर सोड़ डालेगा। कायस्थ देखो। चढ़े थे। यहां उनने विनयादित्य नाम ग्रहणपूर्वक फिर जयापाड़ गौड़के अन्तर्गत पौण्ड वर्धनमें उप- पूर्व दिक्को विनयादित्यपुर नामक नगर स्थापित 'स्थित हुवे। वहां उनने गौड़रान जयन्तको कन्या किया । उनने उता स्थानको पूर्वदिक भीमसेनराज्य त्याणदेवी और देवनतको कमलाका पाणिग्रहण और नेपालराध्य नाना कौशचसे जीत लिया । किया। प्रत्यागमनकाल राइमें वह कान्य कुन जीत उसके पाछे जयाीड़ने स्त्रीराज्य जीत कर्णका सिंहा- वहांका प्रतिमनोहर सिंहासन उठा ले गये। सन अधिकार किया। उनने युद्धादि व्ययके सुविधा काश्मीरमें उपस्थित हो नयापोड़ने सुना कि उनके "चलगन" नामसे सैन्यसमभिव्याहारी कोषागार पूर्व स्यालक जनगे राज्य अधिकार किया था। उनने निकासा था। जयापोड़ने कर्मपर्वत पर एक ताम्र निको राज्योहार के लिये युह घोषणा की । पुष्कलेव नामक आविष्कार कर ताम्र उत्तोलनपूर्वक उसके मूल्यसे ग्राममें युद्ध हुवा । उसमें जन्न मारे गये। नच देखो। अपने नामपर, एकोनशतकोटि स्वर्णमुद्राको प्रस्तुत वह
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