पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६७९

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काश्मीर पाषाढ़ो शुक्ल-वतीयाके दिन परलोक गमन किया। उस समय लौकिक अब्दक ५८ वसर बीते थे । अवन्तिवर्माके मरनेसे उत्पन्नवंशीय दूसरे भी बहुतसे लोग राज्यनामार्थ उत्सुक हुवे । किन्तु रानाके पारिपार्षिक सेनापति रत्नवर्धनने अवन्तिवर्माके पुत्र शङ्करवर्माको ही राजा बनाया था मन्त्री कर्णपोविन्न पने उससे विषपरवश हो सरवर्माके पुत्र सुखवर्मा को यौवराज्य प्रदान किया। उसी कारण राजा और युवराज परस्पर शत्रु हो गये । शेषको नाना युद्ध होने पर शङ्करवर्मा ही जीते थे। फिर उसने युद्दयात्राको निकल दा भिसार, गुर्जर और विगतं जय किया। पथिंमध्ये थकीयकरानने वश्यता मानी थी। उनने भोज रानके कवलसे थक्कोयराजा उद्दारकर उनको दे डाला. पोछे उन्होंने दरद और तुरष्कका मध्यवर्ती प्रायः समस्त भूभाग जीता था। उसके पीछे शहरवाने राजाक। प्रत्यावर्तनकर पञ्चसन्न प्रदेशमें अपने नामपर शङ्कर. पुर नगर और उसी नगरमें शङ्करगौरोथ नामक शिवकी स्थापना की। उनने उदकपथके राना श्रीस्वामौकी कन्या सुगन्धासे विवाह और उनके नामा- नुसार "सुगन्धेश" लिङ्ग स्थापन किया था । किसी नायकने उक्त मन्दिरहयके निकट एक सरखतीमन्दिर बनवा दिया । उसके पीछे हठात् दैवविडम्बनासे शङ्करवर्माको मति बिगड़ गयो । उनने छन्त बल कोश- लसे स्वराजमें अत्याचार प्रारम्भ किया था। देवस्खाप. हरण, करवृद्धि, राजकर्मचारोके वेतन झास इत्यादिसे देश विचलित हो गया। उमने पत्तन नामक एक नंगर स्थापन कर मंत्री सुखराज भागिनेय को हार- पंतिका पद दे वहां भेजा था। किन्तु विराणक नामक स्थान में अपने ही दोषसे उनका मृत्यु हुवा । फिर शारवर्माने विराणक नगर उत्सनकर उत्तरापथको युदयात्रा की और सिन्धुतौरवर्ती कई राज्य जीत उरण राजामें घुसे। वहां वह हठात् किलो व्याधके वाणसे आहत हो ७७ लौकिकाव्दको फाला नौ कृष्ण-मप्तमौके दिन पञ्चत्वको पहुंचे। मंत्री सुखराज नाना कौशनसे राजाका मृतदेह ६ दिन पीछे काश्मोरके अन्तर्गत वल्लाभक नामक स्थानपर ले गये। फिर वहां उनने उसका सत्कार किया था। राना सुरेन्द्रवतो, दूसरी रानी, वान्नावितु तथा जयसिंह नामक २ विश्वामी अनुचर और लाड एवं वजमार नामक २ मृत्योंने राजाकी चितामें सहमरण किया। शङ्करवाके पीछे उनके वान्तकपुत्र गोपालवर्माने माता सुगन्धाके अधीन राजा पाया था। रानी मुगन्धा किन्तु उसी समय कोषाध्यक्ष प्रभाकर देवके साथ व्यभिचार में लिप्त हुयौं । प्रभाकरन रानीसे कौन- पूर्वक राजाके मध्य प्रधान प्रधान पद, धन, रत्न और नाना भूभागको ले लिया। उनने साहोगजाके मध्य भाण्डारपुर नामक नगर स्थापनके लिये वहांके साहीको आदेश दिया था। किन्तु उनने उम को उपेक्षा किया । उसोसे प्रभाकरने उनको पदच्युत कर लक्षिय साहौके पुत्र तीरमाणसाहीको उक्त पंद दे डाला और देशका नाम बदन कमन्नक रख दिया। उसके पीछे प्रभाकरके पत्याचारसे राना अस्थिर हुवा था । महाराज गोपालने सब भेद क्रमशः समझा और एक 'दिन जाकर देखा कि कोषागार शून्य रहा। प्रभाकरने शास्ति मिलने के भयपर स्वीय बन्धु रामदेवके साहाय्य और कोगनसे गोपानवर्माको जीवन्त जन्ता डाला। गोपालवर्माने २ वत्सर मात्र राजत्व किया था। राम- टेव भी अपना कार्य प्रकाशित होने पर भय से पात्म- हत्या की। गोपालवर्माके पीछे उनके सहोदर मन्ट केवल १. राजत्वकर मृत्यु के मुखमें पतित हुवे । सबटवर्माके पीछे लोकानुगेधसे गनी सुगन्धाने राज्य ग्रहण किया था । कारण गोपालवर्माको महिपो नन्दा उस समय गर्भवती रहौं। गनी सुगन्धाने पुत्रके पर्वसिवर्माने जिस समय राज्य वाम किया उस समय लौकिका- ब्द १ था पत: मका राजस्वकारच २० साल दो मास और कुछ दिन सिद्ध होता है। + शकरपुरका वर्तमान नाम पचन है। वह भी धीमगरसे - कोस पश्चिम मागम पवंस्थित है। वहां पान भो पापापमय शिवनपुण्यविशिष्ट प्राचीन शिवमन्दिर देख पड़ते हैं। • वीरमाणमाडौको शिवालिपि निकली है I See Epigraphica Indios, 1890, p. 298.