पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६८०

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काश्मौर नामानुसार गोपालपुर नामक नगर, गोपासमठ स्वयं राजत्व करने लगे । सुगन्धादित्य निर्मितवर्मा की पनियों में रासलीचा खेचते थे । वह सभी अपने अपने नामक मठ और गोपान्नकेशव देवताको स्थापन किया। फिर महिषी नन्दाके एक सन्तान हुवा । किन्तु भूमिष्ठ, पुत्रको राजा बनाने के लिये सुगन्धादित्यको प्रचुर धन होते ही वह मर गया। सुगन्धान एकाङ्गों की सहायता रत्न देने और अपना अपना देह वैचने लगों । मंत्री से दो वर्ष तक राज्य किया था ! एकागजातीय सेना मेरुके पुत्रों ने राज्य में प्राधान्य लाभको पाशा भगिनी पति और तन्त्री जातीय मन्त्री रहे.। सुगन्धान मन कष्ट मृगावतीके माथ निर्जितवर्माका विवाद कर दिया। पा.कर किसी उपयुक्त व्यक्तिके हाथ राज्यभार डालने किन्तु मृगावती भी अन्तःपुरमें पहुंच सपत्नियों का के लिये मात्रियों को निर्वाचनार्थ पादेश दिया पथानुमरण कर सुगन्धादित्य की अधीन बन गयौं । था। शेषमें प्रवन्तिवर्माका वंश.लोप होनेसे गर्मागर्भ: ८७ लौकिक प्रष्टको निजितवर्माका मृत्यु हुवा । जात सुखवाके पुत्र निर्जितवर्माको रानी सुगन्धाने एकाङ्गोंने उस समय वन्तं प्रकाश कर निर्जितवर्माको मनोनीत किया। निर्जितवर्मा दिनको सोते और रात बप्पटदेवीनाम्नी पत्नीके गर्भजात चक्रवर्माको राजा को जागते थे। तंत्रियों ने इसीसे उनका पक्ष न लिया। बमा दिया। वप्पत राजाका रक्षणावेक्षण करने लगे। कोषाध्यक्ष प्रभाकरके दुव्र्यवहारसे जो राजकर्मचारी १० वर्ष उसी प्रकार बोते थे । म लौकिक पष्टमें विरल एवं पोडित रहे, उनने उस समय सुयोग देख मंत्रियों ने चक्रवर्माको हटा मृगावती गर्भजात रानी सुगन्धाको राज्यसे निकाल बाहर किया। वह शूरवर्माको राज्य सौंपा । किन्तु उनके मातुन उनसे 'दुष्कपुरमें जा कर रहने लगौं । किन्तु एकाङ्ग अल्प अनुकूल न रहे । उनने अन्यान्य तंत्रियोंसे मिन और दिनके पीछे ही उन्हें फिर राज्य देनेके लिये बुलाने पार्थ से बहु अर्थ उत्कोच ले भागिनेयको राजच्यु त गये थे। काश्मीरीय लौकिक प्रब्दको उक्त घटना कर पार्थको राजा बनाया। उस समय पार्थ शाम्बवती हुयौ। तंत्रियोंने सुगन्धाके प्रागमनको वार्ता सुन नानी किसी वेश्याको प्रणयिनी होनेसे सर्वदा प्रपने निर्जितवर्माके दशम वर्षीय पुत्र पार्थ को राजा बनाने निकट रखते थे। उन्हों शाम्बवतीने शाम्बेश्वरी नामक के अभिप्रायसे पथिमध्य रामी सुगन्धाके सैन्यदन्नसे | देवीमूर्तिको प्रतिष्ठा किया। ११४ लौकिकान्दो लड़ किसी पुरातन जनशून्य विहार में :८. लौकि चक्रधर्माने उस समयको रीतिके अनुसार तंत्रियोंको कान्दको रानोको मार डाला। फिर पार्थ रामा हुवे । उत्कोच ( घंस, रिथवत ) दे राज्य पाया था । किन्तु अलस यथेच्छाचारी पिसा सनरक्षक बने थे। तंत्रियों मिवंदिता वश उनने मेरुवर्माके पुत्रों को अधिक क्षमता के मध्य भी क्रमशः आत्मविच्छेद पड़ गया। अपरा: दे डालो। उसीसे उन्होंने अपने २ नाम पर नाना स्थान -पर अधीन राजा स्वाधीन होने लगे। मेरु नामक मंत्री अधिकार किये। उनके राजत्वमें मेरुवर्माके जेष्ठपुद के सन्तानों ने ज्येष्ठ शहरवर्धनके अधीन रह सुगन्धा शहरवर्धन प्रधान प्राड़ विवाक् और शम्भुवर्धन प्रधान दित्यसै बन्धुता जोड़ भीतर ही भीतर राज्यके कोषा. मंत्री थे। उसी वर्ष तन्त्रियों को प्रतित उत्कोचका गारको लूटा था । उनहीने श्रीमावर्धम नामक विष्णुको रुपया चुका न सकने पर चक्रवर्माने भयसे मड़र मूर्ति का स्थापन किया! नामक स्थान पनायन किया। उस समय शहर: उसके पीछे ८३ लौकिक अब्दको राम्धमें भीषण | वर्धनने राजा होनेको श्राशासे शम्भु वर्धनको प्रबन्धादि दुर्भिक्ष पड़ा था । एक तो अराजक राज्य और दूसरे करनेके लिये तंत्रियों के निकट भेजा था। शम्भुने दुर्भिक्ष । सुतरां राज्य सम्पूर्ण विखल हो गया। नाकर नोट माताको बात न कह अपने ही सिये तंत्री राज्यके मध्य सबके जपर रहे। वह निर्जितवर्मा प्रबन्ध कर लिया। इधर चक्रवर्माने श्रीठक्क नामक पौर पार्थ उभयके मध्य अपनी सुविधाकै पनुसार स्थानवामी डामरजातीय सरदार संग्रामसे मिल उसे कभी इसको चौर कभी उसको सिंहासन पर बैठा। सहायता करने के लिये प्रतिमून कराया था। संग्रामने