सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काश्मीर साथ व्याहा था। दिवाके मातामह साही रहे। राजा कर उनकी पितामहीको पभिभाविका वभाया। सनने मिगुप्तसे धन ले भीमकेशव देवताको प्रतिष्ठा (पैर तिरछे रहने से लोग उन्हें वक्राट्रीसंग्राम करते थे.) काल पाकर पर्वगुप्तने बड़ा राजमाता तथा अन्य किया। हारपति फ़ाला नकन्या चन्द्रलेखा क्षमगुप्तको पांच सहकारियोंको वध किया था। फिर वह गज्यके | दूसरी महिषी थौं । प्रधान बन बैठे, किन्तु गजा शिशु संग्राम हीरहे । एका क्षेमगुप्त मृगयाप्रिय थे । वह शिकारके लिये दामो. ङ्गों के भयसे हठात् वह उन्हें मार न सके थे। शेषको दरवन, लल्यान और शिमिक प्रकृति स्थानमें सर्वदा किसी दिन सन्यदसके साथ रातके समय राजधानी पर घूमा करते थे. । उल्कामुखी-मृगयामें उनको बड़ा अाक्रमण किया। राजभक्त मंत्री रामवर्धन विनष्ट आमोद मिलता था । ३४ लौकिकाष्दके पौषमासकी हो गये । पर्वगुप्त विलम्ब न कर उसी समय सिंहासन कृष्ण चतुर्दशीको रात्रिके समय वह शिकार करने गये थे। पर बैठे थे। वैशावित्त व्यक्तिने गलेको माला पकड़ वहां किसी उल्कामुखीके मुखमें प्रज्वलित-उस्का देख उन्हें भूमिपर निक्षेप किया । पर्वगुप्तने उठ किसी दूसरे भयसे उनको लूतामय ज्वर चढ़ा और उसी ज्वर में यहमें जा वक्राहिसंग्रामको मार डाला। उनका काल हुवा । वहहुष्क पुरके निकट वराहमन्दिर- २४ लौकिकाब्दके फाल्गुन मासकी कृष्णदशमीको में रहने लगे थे। उस स्थानमें उनने क्षेममठ और पर्वगुप्त राजा दुवे । वह विशोकपर्वतके पाववर्ती जन श्रीकण्ड नामसे २ मन्दिर बनाये। फिर उसी मासके पदराज़ दिविर पभिनवके पौत्र संग्रामगुप्तके पुत्र-थे । शुक्लपक्षको उनका मृत्यु हुवा । उनने वार राजब पर्वगुप्तने स्कन्द मन्दिरके निकट पर्वगुप्ते खर नामसे किया था। देवताको प्रतिष्ठा किया । फिर यशस्करको किसी पत्नी क्षेमगुप्तके पीछे उनके शिशुपुत्र हितोय पभिमन्यु महियो के रूपमें मुग्ध हो उन्होंने यशस्कर स्वामौका मन्दिर | दिहाके तत्वावधानमें राजा हुये उसी वक्ता तङ्गेखर बाजारके करा दिया। मन्दिर शेष होने पर राजमहिषी निकट भयानक पग्निदाह प्रारम्भ होनेपर वर्धनस्वामी- पापीके हाथमें न जानेसे ज्वलच्चिता पर चढ़ौं । पर्व के मन्दिरसे भिक्षुकीके पाख पर्यन्त समस्त स्थान जस गुप्त भी जलोदर रोगसे पीड़ित हो सुरखरीके मन्दिर गया। क्षेमगुप्तके मरनेपर अन्यान्य रानो उनके साथ मर में रह २६ लौकिकाब्दके भाद्रमासको कष्णत्रयोदशी मिटीं । केवन दिहा नरवाहनके पनुरोध और रबके को.मर गये। यत्नसे सहमृता न हुवौं । वर पल्पबुधिमती रहीं। पर्वगुप्तके छे उनके पुत्र क्षेमगुप्तको राज्य मिला । एसीसे राजाको अन्त्येष्टिकिया. शेष होते न होते वह भी अतिशय सुरापायी पौर आजन्म पत्याचारी थे। फाला नादि मंत्रियोंने विद्रोहिता करने की चेष्टा फालान और जिष्ण वंशीय वामनादि उन्हें सदा सगायो। किन्तु शेषको विद्रो पाप ही बन्द हो गया। पापमें उत्साह देते थे। दूतक्रीड़ा, रमणी और मद्य फाला न राजधानी. छोड़ पर्योस नामक स्थानमें जा को कमी. छोड़ते न थे। . उसी समय यशस्करके बसे। पर्वगुप्तने राजा होते समय भूभट और को मंत्री फाला नमने फाला नस्वामी नामक देवताको नामक मंत्रीयों के साथ अपनी दो कन्याओं का विवाह प्रतिष्ठा किया। कम्पनराज वृह रकने फिर डामर सर कर दिया था। उनके महिमा और पाटस नामक.. दारको मार डालनेके लिये जयेन्द्रविहारमें अग्नि पुत्र हुवे । उस समय उनने भी राज्यसोभसे हिमकादि मगाया था। डामर सरदार उसमें छिपे थे। मंत्रियों के साथ योगदान किया था। महिषी दिहाने रखने पतनोन्मुख विहारसे बुद्धमूर्तिको निकाल लिया वह बात सुन उनको राजप्रासादसे निकाल दिया। और उसके प्रस्तरादिसे पथके पार्श्व राजाके नामसे महिमान स्वीय खशर शक्तिसेनका पाश्रय लिया था। क्षेमगौरीखर देवताको प्रतिष्ठित किया। लोहरदुर्गके परिहासपुरसे हिम्मक, मुकुल एवं एरामन्तक और शासनकर्ता सिंहराजने स्वकन्या दिहाको चेमगुरुके ससितादित्यपुरसे पमृताकरके पुत्र उदयगुप्त.. तथा Vol IV. 172 सम्पूर्ण .. ।