६६४ काश्मीर वियोंको पद्मपुर नामक स्थान पर भीषण युद्ध में इरा के दर्शनको गये थे । तंत्री, एकाङ्गि प्रभृति सकल सैना चक्रवर्माको राजा सौंपा । युद्धम चक्रवर्माके हाथ दैववश हार गया। उसके पीछे उनने ब्राह्मणों को. शहरवर्मा मारे गये । फिर शम्भवर्धन सैन्य संग्रह वुता उपयुक्त राजनिर्वाचनका आदेश दिया था । उन- करने लगे। किन्तु एकाङ्गों के युद्ध में योग देनेसे चक्र. ने सोचा कि वही राजा बनाये जायगे । किन्तु ब्राह्मणों वर्मा अनायास सिंहासन पर बैठे थे। भूभट नामक ने लोकनिर्वाचनमें प्रवृत्त हो टेखा कि उत्पन्नका किसी सेनानी ने शम्भुवर्धनको पकड़ राजाके समक्ष वंशीय कोई न था । पिशाचक पुरके वीरदेव-पुत्र काट डाला। कामदेव मेरुवर्धनशे धरमें शिक्षकता करते थे । उन- चक्रवर्माने राजा हो बहुत कुछ शान्ति स्थापन को पुत्र प्रभाकर शहरवर्मा के कोषाध्यक्ष रह । उनने की थी। उसी समय रण नामक कोई विदेशी डोम्ब सुगन्धाके साथ तंत्रियोके युद्दमें प्राणत्याग किया। गायक तिलोत्तमा जैसी सुन्दरी हंसी और नागनता प्रभाकरके पुत्र यशस्कर राजाको दुरवस्था टेग्नु स्वीय नानी दो कन्या ले राजसभामें गाने गया । दोनों बन्धु फाला नकके राजामें जा पहुंचे । वह किसी सुन्दरियोंके रूप में मोहित हो राजाने उन्हें ग्रहमा दिन स्वप्न देख स्वराजाको तौटे थे। ब्राह्मणों ने उन्हें किया था। इसी प्रधान राजी हुई। उसी सम्पर्क मे देखते ही राजपदमें वरण किया । शिक्षित हो डोम्ब राजामें प्रधान बन गये। फिर डीम्बों कल्पपालके वंशमें स्त्रियों, मंत्रियों और अज्ञात- के कारण गनामें भयानक अत्याचार होने लगा । कुनशील बालकों को छोड़ ८ राजा हुवे । काश्मीर चक्रवर्माने शैव लोगों के लिये चक्रमठ प्रतिष्ठा किया राजा उक्त वंशक हस्त ८४ वर्ष ४ मास रहा । था। उसका निर्माण शेष होते न होते अन्तःपुरमें १६ यशस्कर राजा हो कर सुख-शान्ति से सुविचार. लौकिकाब्दके समय डामरों ने राजाको मार डाला । पूर्वक राजत्व करने लगे। उनमें भी एक दोष था । वह उसके पीछे शवैट और अन्यान्य मंत्रीने पार्थ पुत्र लल्ला नानी किसी नीच जातोय भ्रष्टा रमणीको प्राण- उन्मत्तावन्तिको राजा बनाया था। वइ अत्यन्त अत्या को अपना भी अधिक चाहते थे। उन्होंने उसोको चारी रहे । उन्होंने पितामाता एवं शिशु माता पत्रियों प्रधानमें बनाया। यशस्करसे स्वपुत्र संग्रामदेव- भगिनो प्रादिको कई दिन पनाहार रख नाना यंत्रणा को छोड़ दिया था। अवशेषको वह उदरपोड़ासे प्रदानपूर्वक काट डाला। गुप्त, शर्वर, छोज, कुमुद आक्रान्त हुवे और खोय पिटष्य पुत्र रामदेवके बेटे अमृताकर पार प्रभागुप्तके पुत्र देवगुप्त उन्मत्ताव वर्णटको गज्यमें अभिषित कर चल बसे । किन्तु वणंट- न्तिके प्रिय और समधर्मा मंत्री थे। रक नामक कोई ने पीड़ित पिटव्यका कोई संवाद न लिया और अतिशय साहसी वीरपुरुष सेनापति रहे । उनने अपना समय मवराज्यके पामोदमें लगा दिया था। डामर सरदारके घर के पास पनवनमें रक्तश्रीदेवीको यशस्कर भ्रातुष्युत्रके उस व्यवहारसे मर्माहत हुवे। अधिष्ठित देख विलकुल उसी पादर्श पर रक्कजाया उनने मृत्यु काल संग्रामदेवको राज्य देवप्रतिष्ठित नानी देवीको प्रतिष्ठा किया । काश्मोरीय १५श लौकि यशस्कार खामी नामक प्रर्धनिर्मित देवालयमें कामया- काम्दको उन्मत्तावन्तिने पञ्चत्व पाया । पन किया था। उसी मन्दिर में पर्वगुप्त प्रभृति कई लोगोंने उसके पीछे राजान्तःपुरको रमणियों के चक्रान्तसे धनरन दास दासी हरख कर उन्हें एकाकी छोड़ अज्ञातकुलशील कोई शिशु राजा हुवे । लोग उन्हें दिया। २४ लौकिकाब्दको भाद्रकृष्णसीयाको राजा राजपुत्र शूरवर्मा कहते थे । कम्पनराज कमलवर्धन तीन दिन प्रचिकित्सा और असहाय रह मृत्यु के मुवमें उस समय उच्छल डामगेको शासन कर मड़व पड़े । महिषी वैलोक्यदेवीने सहगमन किया था। नामक स्थानमें रहते थे। उनने यह सुनते ही ससैन्य गाजधानीको भाक्रमण किया कि शिशराज जयस्वामी- उसके पीछे पर्वगुप्त, भूभट प्रभृतिने शिशु संग्रामको
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