काश्मीर उसके पीछे राजपुरोके राजा सहजपाल मर गये । उनके पुत्र संग्रामपाल राजा बने थे। किन्तु उनके पिवृष्य मदनपालने राज्य आक्रमण करने की चेष्टा लगायौ। संग्रामने स्त्रीय कनिष्ठा भगिनी पोर यश- राजको काश्मीर भेज साहाय्य मांगा था। जयानन्द हठात् मर गये। मृत्य काल जयानन्दने विजुक सम्बन्ध में रानाको सतक किया था। राजाने विजुली धनी और क्षमताशाली देख कुछ न कहा। विजु राजाके मनोभङ्गका कारण देख सतर्क होनेके लिये विदेशको चन्नते हुवे, किन्तु अल्प दिनके ही मध्य मर गये। जया. नन्दके मरने पर जिन्दुराज भी चलते बने । उमी प्रकार सती सूर्यमतीका शाप फला था । जयानन्दके पोछे उनके वंशीय वामन प्रधान मन्त्री हुवे । राजा कलसने उस समय अवन्तिस्वामी देवताके कई देवोत्तर ग्राम छोन कलसगंज नामक धनागार स्थापन किया था। उसके पीछे मदनपालने द्वितीय वार राजपुरोमें विद्रोह उपस्थित किया। काश्मीरराजने वप्पट नामक सेनापतिसे उन्हें पकड़ मंगाया था। उसी समय 'वारहदेवके भ्राता कन्दर्प हारपति हुवे पोर मदन- पाल कम्पनापति बने। फिर राना कलसने नौल. पुर-नरेश्वर कीर्तिराजको कन्या भुवनमतीसे विवाह "किया था । ६३ लौकिकाब्दको वहपुरके राजा कीर्ति, "चम्पाके राजा बांसट, बल्लापुरके राजा कलस, राजपु- रोके राजा संग्राम, लोहरराज उत्कर्ष, उरशाराज सङ्गट, कान्दके राजा गम्भीरसिंह और काष्ठवाटके राजा उत्तमराज काश्मीरमें जां उपस्थित हुवे । कन्दर्पने उसके पीछे स्वापिक नामक दुर्ग नीता था। राना कलस नृत्यगीतके बड़े भत रहे। उन्होंने जयवन के निकट तीन पंक्ति देवमन्दिर और कलसपुर नामक नगरको स्थापन किया था। उसी समय युवराज हर्षने नाना. देशको भाषा और सर्वशास्त्रको शिक्षा पायो । महापण्डित और कवित्वसम्पन्न होनेसे सबके अत्यन्त प्रिय पात्र बन गये । वह बड़े दानशील रहे । धर्म और ..विश्वांवट्ट नामक.दो मन्त्रियोंने अनेक दिन चेष्टा करने पर उक्त इषको भी पिताके विरुद्ध उत्तेजित किया था। उन्होंने विश्वावको परामर्थानुसार किसी दिन पिताको विनाश करने के अभिप्रायसे अपने प्रालयमें बुनाया । शेष को विश्ववट्टने हो राजा कलससे सब भेद बताया था । युवराज उत्ता वृत्तान्त सुन उस दिन पिताके पास न गये। उसके पीछे इपं मो नम पड़े थे । किन्तु उभय पक्षके दूतोंको गड़बड़में सदाशिव एवं सूर्यमतो गोरोग- मन्दिरके निकट ६४ लौकिकान्दको पौष मासको शक्त षष्ठोके दिन पितापुत्रका एक युद्ध हो गया। युद्ध में हर्ष बन्दी हुवे। हर्षको वन्दो होते मुन रानी भुवनमतीने आत्महत्या को थी। हर्ष बंधे पड़े रहे। उनके प्रिय माता प्रयाग साथ ही थे। तुकको पौत्री सुगला इपंको एक पत्नी रहौं। उनके रूप में वृह राजा कलस मोहित हो गये। दुष्टा सुगलान भी श्वशुरकी प्रेमार्थिनी हो स्वामीको मन्त्री नोनक्षक साहाय्यसे विष दिलवा दिया, किन्तु प्रयागने भेद भाव समझ इषको वह खिलाया नया। पापीको पापच्छा न घटी । राजा कलसने फिर दुष्कार्य प्रारम्भ किया था। उन्होंने सूर्यदेवको तात्र- मृति मन्दिरसे निकाल कर फेंक दो.। सन्तानहीनका विषयादि राजाको प्राप्य मान वह अनिकोंके सन्तान मारने लगे। क्रमश: उनके भीषण प्रमेह रोग हुवा और नाकस तब चला। उस समय पुत्रके हाथ राज्य दान करने के लिये उन्होंने लोहरसे उत्कृषको बुलाया था। शेषको मृत्यु काल समस्त धनरत्न वितरण कर मार्तण्डके सूर्यमन्दिरमें रहने को वह चले गये । मानेके समय उन्होने इषको देखमा चाहा था। किन्तु उत्कर्षके लोगों ने उन्हें जाने न दिया। वह बांधकर अलंग रखे गये थे। उत्कर्षको बुलाकर कलसने कहा "दोनों भाई राज्य दो भागमें बांट लो" किन्तुं समस्त वाथा स्पष्ट कहतेन कहते उनका वाक्य रुका था। ४८ वर्षके वयसमें ३५ लौकिकाष्दको अग्रहायण मासकी शक-षष्ठी के दिन महाराज कलसने पञ्चत्व पाया । मम्मनिका प्रभृति ६ रानी और जयामती नारी कोई प्रेयसो सहमृता हुवौं। उत्कर्ष राजसिंहासन पर बैठे थे। वर्ष बन्दी ही रहे । पद्मश्री नानौ गजीके गर्भजात विजयमक्ष प्रभृति भ्रातावोंके साथ उसी समय उत्कर्ष का मनोविवाद वह
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