पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६८८

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उता काश्मीर मन्नने ज्येष्ठको मुक्त देख पानन्दसे उत्फुल्ल हो युंड उपस्थित हुवा । जिस दिन महाराज कलसने राज- धानोको त्याग किया, उमौ दिन उत्कर्ष के लोगों ने हर्ष रोक दिया। हर्षने फिर उबाप के निकट जानेको देवको किसी स्वतन्त्र स्थानमें बांध दिया था । दूसरे प्रासादमें प्रवेश किया था । किन्तु मन्त्री विजयसिंहने

दिन उन्होंने पिताके मरने और उत्कर्ष के राजा बनने उन्हें रोककर कहा-"क्या जान बूझ कर वेडी

रोंमें डलवाते हैं, रानग्रासादमें जाकर एक का संवाद सुना। पिताके मृत्य से उनका हृदय बहुत घवराया और अधीर ही उन्होंने रोना मचाया था। वारगी ही सिंहासन अधिकार कौनिए ।" उसी समय उत्कर्षने वाद्यभाण्ड सह नगरमें प्रवेश कथा कह विजयसिंह उन्हें लेकर राजप्रासादके कर उनके निकट सोगोंको भेज उन्हें मान करने का मध्य सिंहासनग्रहमें उपस्थित हुवे । फिर उन्होंने हर्ष. अनुरोध किया । हर्ष देवने सोचा सम्भवतः सत्कर्ष देवको सिंहासन पर बैठा अन्यान्य सुवुद्धि मन्त्रियों को उन्हें राजा बनानेवाले थे। किन्तु अनेक क्षण बीत गया संवाद दिया था। उन्होंने जाकर हर्षदेवके अभिषेक- उसका कोई लक्षण देख न पड़ा । अन्तको उन्होंने का आयोजन किया। उधर विजयसिंहने स्वयं जा स्वयं श्रादमी भेज कहलाया था-"यदि आप चाहें उत्कर्षको प्रहरिवेष्टित किसी घर रख छोड़ा । विजय. तो हमें राज्यसे निकाल छोड़ दें और नहीं तो यदि मल्ल संवाद पाकर पहुंचे थे। नव भूपति हर्षदेव हमें राज्य में ही रखना चाहें तो हमारा प्राप्य राज्य छनसे कहने लगे "भाई ! तुम्हारे उद्योगसे ही इसने हमें दे दें।" सत्कर्ष भी उन्हें राज्य सौंपनकी पाशा प्राण पाया और राज्य भो पाया है।" विजयमल्ल देव्या कालच्य करने लगे। भ्रानेहमें मुग्ध हो गये। उत्कर्षने राजा हो राजाके शासनादिका कोई कारागारमें नीनकने उत्कर्षसे मिल उन्हें खीय परा- प्रबन्ध बांधा न था । वह केवल इसी चेष्टाम सग गये मर्श से कार्यकरनेको अनुयोग किया था। उत्कर्ष- कैसे कोषमें धन बढेगा। उससे उन पर सब लोग ने अनुयोगसे भग्नहृदय अन्य किसी हमें प्रवेश विरत हुये । सुवुहि मन्त्री हर्षदेवको राजा देनेका कर आत्महत्या को। सहजा पार कप्या नाम्रो दो परामर्श करते थे। उधर जयरान और विजयमलको प्रेयसीने उनके साथ गमन किया था । नहर पर्वतमें उनका मासिक प्राय्य रीतिके अनुसार न मिला। उनको दूसरी भा कई प्रियतमा उक्त संवाद सुनकर विजयमझने स्वीय राजयको लौटनेका उद्योग लगाया चितापर चढ़ गयौं। पर दिनमें शवदाह हुवा । किश्चि- था। उसी समय हर्षदेवने विजयमलसे अपनी मुक्ति टून २२ वर्ष वयसमें २४ दिन राजत्व कर उत्कर्ष पर- की बात बतायो। विलयमझ और जयरामने ज्येष्ठ लोकको चले गये। चाताके लिये दुःखित हो सैन्य संग्रहपूर्वक राजधानी 'टूसरे दिन हर्षदेवने नोनक, शिष्तार, भट्ट, प्रशस्त को अाक्रमण किया था। उधर नोनक प्रभृति कलस प्रकृतिको बुला कारागारमें डाला था। उनको कुमन्त्रियोंके परामर्शसे सत्कर्ष ने हर्षदेवको मारनेके लिये बन्दी करनेके पोछे राज्यों उसी दिन मानो शान्ति कारागारमें कई सैनिक भेजे थे। उन्होंने वहां पहुंच स्थापित हो गयी । विजयमल हर्षदेवके दक्षिणहस्त हर्षदेवके सौजन्यमें मुग्ध हो पचावलम्बन किया । हुवे। कन्द हारपति, मदन कम्पनपति, वचपुत्र इसके पीछे सत्कर्ष ने शूर नामक मन्त्रीके हाथ राज सुन्न प्रधानमन्त्रो और सुबके कनिष्टधाता जयराज देशको प्रतिभू स्वरूप वधज्ञापक अङ्गरी न भेज भ्रम राजानुचराध्यक्ष बने थे । प्रहस्त और कलसादि क्षमा क्रमसे मुक्तिचापक अङ्गरी भेज दी थी। हर्षदेव | प्रार्थना करनेसे पूर्वपदपर नियुक्त हुवे । केवल नोनक- मुक्त होनेपर उत्कर्षसे जा कर मिले । उस समय भी को सकल दुर्घटनाका मूत समझ फांसी दी गयी। विजयमलसे नगरके बाहर युद्ध हो रहा था। उत्कर्षके कुछ दिन पोछे दुष्टके परामर्श में पड़ विनयमजने अनुरोधसे हर्षदेव युह निवारण करने गये। विजय - राज्य हरण करनेको प्राशासे दरंद देशके डामरीकी -