कारनौर १५६३ वर्ष १५८० " 'सैयद सुबारक १माम २५ दिम १वप २मास ५वष ३माम १०५२ " मुखताम नाजुकथा (हितोयवार) १३ वर्ष माय रसका आविर्भाव होता और निर्माताको सहन धन्य- रमाइल (हितोयबार) १ वर्ष ५ मास वाद देनेके लिये जी चाहता है। प्राचीन भारत मिर्जा दरान १५.४९ १० १० वर्ष वासियों की शिल्पविद्याका परिचय कामोर, अर्घट समयान नाजुक शाह (वसीयवार) १०माम मिलता है। प्रोक्ष प्राचीन देवस्थान पुरवतीर्यको माहीम इम माइल भांति प्रसिद्ध हैं। बरफ ढेरको काटकर असंख्य तीर्व. यौव १० वर्ष ८ माम गाजीखान् यात्री उक्त सकन्न प्राचीन पुण्यतीर्थ दर्शन करने जात समचक हैं। अमरनाथ देखी। चलौशादचक वर्ष एसद्भिन्न काश्मीर के प्रर्नक तीयों में भाज मो अमृत यूसुफ था १वर्ष२० दिन नैसर्गिक व्यापार सङ्घटित हुवा करता है। उनकी दर्शन करनेसे जगत्स्रष्टाको अपार महिमा हृदयनम लोहर चक होती है । भारतके प्रायः सभी देशों में तो है। उनमें रसफ शाह (विसीयवार) यापवान् १ वर्ष जी 'पद्भुत व्यापार देखा जाता, उसमें अधिकांश ने. दिल्लीवाले मुगलसबाट अधीन १५८६ ई० से १७५२ ई. कों को धारणासे कृत्रिम कहाता है। किन्तु काश्मीरम चश्मदशाह दुरांनो ऐसे अनेक तीर्थ हैं, जिनको नेमगिक व्यापारको देन घफगानोंके अधीन १८५२ , से १८१८१. कर कभी कृत्रिम कह नहीं सकते। यहां हम दो एक रणजीतसिंह १८१८॥ तीर्थ की बात कहेंगे। गुग्लायसि १८.३" १५. वर्ष चौरमवानी-श्रीनगरसे उत्तर ३ घण्टे नावकी राह रणमौरसि १८५८ २० पं पर एक जुट होप है। उसमें एक कुण्ड विद्यमान है। प्रवासिक इसोको चौरभवानी कहते हैं। वहां लोग जोर वा प्राचीन मन्दिर और च सावशेष-तुषारमय शैलशेखरवेष्टित पायसाबसे देवी भवानीको पूजा करते हैं। उत कुगड. काश्मीरमें भी बहुतसी पुरानो चौमें देखने लायक का जन कभी चान, कमी इरा, कभी गुन्हावी नाना हैं। इतिहास पढ़नेसे समझते हैं कि काश्मौरके प्रायः वएका पाकार धारण करता है। वैमा क्यों होता है? सकल हिन्दूराजावोंके हारा प्रथया उनके राज में कोई नानिक उसका प्रकृत कारण ठहरा नहीं अपर व्यक्तिक क नाना स्थानों में सहस्र सहस्र देव- सकता है। मूर्ति एवं देवसन्दिर प्रतिष्ठित दुवै थे । कालवश उनमें सचल दोप-श्रीनगर दक्षिण माचिहासा नामका अधिकांश बिगड़ गये। फिर भी उनको संख्या बहुत परगना है । उस परगर्नमें कोई प्रतिहत् नन्नाशय कम नहीं। पाज भी श्रीनगर, पाण्डथन्, अवन्तिपुर, है उसके जन्नपर बड़े बड़े भूमिखण्ड पड़ है । उन तखत सुलेमान, पामपुर, पत्तन, लेदरो, काकपुर, वराह भूखण्डों पर पेड़ पत्ते क्षर्ग है । पशु भी चरनके निचे मून्त, यमपुर, भवानीयर, वर्ण कोटगै, भौमज, पायच, उनपर घूमा करते हैं। बड़ा ही आचर्य है। अधिक . मार्तण्ड, सतापुर, मानसवल, नारायणताम्स, फतेह वायु चलनेसे उक्त भूखण्ड चादिक साथ धूमने रुग गढ़, तेवन, हवनमा, बङ्गातके निकट, नौसेहरा, तथा जाते हैं। रोका मध्यवर्ती दिमन नामक स्थान और खुनमोके अनेक प्राचीन देवासय मग्न वा प्रभग्न अवस्था में पड़े • Asiatic Journal VI. XVII. pt. 11. ', 241-927; हैं। इन प्राचीन मन्दिरोंका जिल्पनैपुण्य देवनसे Vol. XXV. pt. 1 (1866.) 1. 91-123, Büller's fone चमत्कृत होना पड़ता है। हिमानीगहरके मध्य जस krit Miss. Kashmir (1877.) p. 4-16 of 8 17ET पर पाषाणमय देवमन्दिर दर्शन करने से किसी प्रकृत के प्राचीन दसमन्दिरका विवरण मिटता। १८८५"
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