1 ७२ करनावत, कारण करचायघृत (सं• लो०) करौंदे वर्ग रह चीजोंसे । सारस। इसकी गर्दन बाची होती है। कानों के बना हुवा घो। करज, निम्ब, अर्जुन, थाल, नख पर आगे बढ़ दो सुन्दर सफेद गुच्छे बना देते हैं। एवं वट की व शरावक, तथा इन्हों द्रव्योका कल यह एशिया और अफरीकाले कयो भागोंमें पाया -१ भरावक, घृत ४ शराव और ४ शरावक जल डाल जाता है। डाल सबको एक वरतनमें पकाते हैं। फिर १६ बरड़ करड़ (हिं. पु.) १ शब्दवियेष, एआवाज। शरावक शेष रहनसे यह घृत बनता है। बरबाद्यधृत जब कोयो चीज बार-बार टुटती फूटती या चटनुती, दाहपाक और शुतिरागयुक्ता उपदंशके दोषशी दूर तब यह आवाज निकलती हैं। प्रायः दन्तसे कठिन करता है। (चक्रपाधिदत्त) वस्तु भन करने जो शब्द पुनः पुनः पाता, वही कर कारञ्जिका (स. सी.) १ कंटीला करौंदा। यह करड़ कहता है। (क्रि.वि.) २ सन्दके साथ पाक कट, तूवर, ग्राहक, उष्णवौर्य एवं तिक्त और तोड़फोड़, मेह, कुछ, अर्थ, व्रण, वात तथा कृमिनाशक करण (लो) क्रियते अनेन, क-युट। १ याक- इसका पुष्प वीर्य में उप्प, तिल और वात तथा कहर रपोत कारक्षविशेष। क्रियानिष्यत्ति कारपसमूहमें होता है। (यनिवार) २ नक्षमालफल, बड़ागरौंदा। कारणान्तरका व्यवधान न पड़ते जो पातु क्रियाको करली (B. स्त्री० ) १ महाकरज, वड़ा करौदा। निप्पत्तिका कारण माना जाता, वही करस्कारक यह स्तम्भन, तिल, तुवर, कटुपाक एवं वीर्योपण और कहाता है। इस हारा कर्ता क्रियाको सिड करता पित्त, अर्ग, मि, कमि, शुष्ठ तथा प्रमहन्न है। है। जैसे-रामने रावणको वापसे मार डाला। (भावमलाय) २ करञ्जवली, करौंदेवी वैन । यहां इस्त्रादि मारनेका निष्पन्न कारक ठरते भी करट (सं.पु.) के कुत्सितं वा रटति रवं करोति, संयोग प्राधान्य वाश ही करपकारक होता है। करट-अन् । पचादिभ्यो न्युपिन्द्रयः। पा श६१३४ । १ काक, हिन्दो में इस कारकका चित्र है। कौवा। २ स्तिगण्ड, हाथोकी कनपटी। "प्रियायाः परिनिपनियापाराइनन्तरन् । "a'हमिनकरट पनि वनगौचरम् । विवावे यदा बब बन करपलदावन ।” (परिचारिका) - उपन्याय मानानं बरेष: यूकर म्प मेन" (मारत) २ चक्षुरादि इन्द्रिय। ३देश, जिध। क्रिया ३ कुसुम्भाच, कुसुमका पेड़। ४ घण्य जीवनधारी, काम। ५ स्थान, जगह। ६ हैत, सबद । पात. खराव भादमी, वुरा पेश करनेवाला । ५ एकादशा लेप, साधको लिपायो-पोतायो । ८ नृत्यका प्रकार, या ६ दुई कढ़, करनास्तिक। ७ वायभेद, नाचना तज गीतविशेष, एक गाना ! १० क्रिया- "एकवाना। भेद, एक वास। ११ संवेशन, बैठाव । १२ व्योतिषक करटका (सं० पु.) करट खायें कन्। १ चौरमान गणितजी एज निया । वव, वालव, कोदव, तैतिल, प्रवर्तक कोंके पुत्र। २ हितोपदेश वर्णित एक गर, वणिज, विष्टि, प्रकुनि, चतुष्पद चिन्तुष्ध और नाग-ग्यारह करए होते है। इनके अधिष्ठाट- मृगाला सरट देखो। कारटा (सं. स्त्री.) करट-टाम्। १ दुःखदाध गाय, देवता यथाक्रम यह है-इन्द्र, कमलज, मित्र, अर्थमा, मुश्किलमे लगनेवाली गाय । २ हस्तिगण्डस्थल, भू, या, यम, नि, हष, फपी और मारता वदादि हाथीको कनपटी। सात करए शुलप्रतिपटकं पार्षसे सणचतुदंपोक करटिनी ( स्त्री० ) हस्तिनी, यिनी । 'प्रथमा पऔर अवशिष्ट, चार अप्पचतुयोर्क शेवास करटी (स.पु.) करटो विद्यतेऽस्य, माथस्तेय इन्। पलप्रतिपदके प्रथमाधं तक रहते हैं। १३ विन। इक्षी, झायो,
- १४ नातिविशेष, एक कोम। ब्रप्रवर्तपुराणमें
करटु (सं० पु०) क-पटु। कर्करेटु यची, खाकी । लिखते वैसके भौरस तथा गद्राके मभ करण .