पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७२

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निकले हैं। (अपजन्म ८५ १०) : यो भारतवर्षक १८ जम्बीरबल, अंभोरी. नीबूका पेड़। (को०) नाना स्थानों में रहते हैं। इनका प्राचार व्यवहार १८ योगियोंका पासन। २० तार्दि। २१ लेख्थ- बायोंसे मिलता-जुलता है। १५ कायख जातिको पत्र, साचिदिव्यादि। एक वेणी। कायस्य देखो। दाक्षिणात्य कहीं कौं करपक (सं.वि.) दारा, से। पूर्ववर्ती किसी कर्णलु नाम भी प्रसिद्ध है। १६ अतिशास्त्र के मतले पदके साथ वधुव्रीहि समास न रहते इसका प्रयोग एक व्रात्यचत्रिय जाति। असम्भव है। "भाली मार राजन्यात वाव्यानिच्छिविरेव च। करणबाण (को०) करणीः इस्तादिमिः वायते नटच करण व खसद्रविड़ एव च।" (मह १०११) यत, करणे युद। मस्तक, सर, मत्था । १७ पसभ्य अवस्थामें पतित एक जाति। पासाम करणत्व (सं० ली.) साधनव, तायोद, नरियो । के पूर्वीय पार्वतीय प्रदेश, एवं ब्रापौर श्याम देशमें करणनियम (सं० पु०) इन्द्रियनिग्रह, सन्तको रोक । यह लोग रहते हैं। सकल स्थानों के करण देखने में करणवाचक (स.पु.) करणं वाचयति, करण- एक प्रकार नहीं लगते। ट्रेशभेदसे पाकारमें भी वच-खुल। करणवोधक जरियेको जाहिर वैतक्षय पा गया है। यह वनमाली, साहसी करनेवाला। और भीमकाय होते हैं। मुखपर गोदा रखनेके करपवास-युक्तप्रदेशके बुलन्दशहर जिलेका एक कारण स्त्रीपुरुष दूरसे भयचर देख पड़ते हैं। असभ्य नगर। यह बुलन्दशहरसे ३. मौन दक्षिणपूर्व होते भी चरण अति सरल, सत्यवादी और निरोड़ हैं। पनूप गहरको तहसील, गङ्गाके दक्षिण तौर अवखित युरवियह किसीको अच्छा नहीं लगता। सब लोग है। प्रायः समस्त अधिवासी हिन्दू और जमीन्दार शान्तिप्रिय होते हैं। किन्तु किसीके अनिष्ट करने बैस-राजपूत हैं। दशारेको यहां एक मेला लगता या दोषी ठारने से इनका वीर्यवड़ि भभक छठता है है। इसना बड़ा मैसा बुलन्दशहर जिलेमें दूसरा ५७ अप्रवासी बलवीयमें एक करके समकक्ष पड़ते नहीं होता। शीतलाका एक प्रतिप्राचीन मन्दिर हैं। बलशाली होते भी यह लड़ने भिड़नेसे पस्नग विद्यमान है। प्रति सोमवारको उ मन्दिरमें स्त्रियां रहते हैं। किन्तु इससे करण पलस नहीं ठहरते। उपस्थित हो पूजा चढ़ाया करती हैं। दिवायोसे यह जहां वास करते, वहां अपने प्रपरिसीम परिश्रम करणवास तक सड़क लगी है। और यनसे भूमिको प्रचुर शस्थशालिनी बना रखते करणविन्यय (सं• पु०) चारणका नियम, तथफू. हैं। फिर भी इन्हें एककाल निर्दोष कर नहीं फु.जका तरीका। सकते। कारण यह नशा बहुत पोते हैं। करण करणस्थानभेद ( स० पु. ) इन्द्रियका पार्थक्य, मद्यके लिये लालायित रहते और उसे पानपर अर्थको रक्तका फर्क। मी तुच्छ समझते हैं। करणा (सं.स्त्रो०) वाद्ययन्त्रविशेष, एक बाना। यह लिखना-पड़ना कुछ नहीं जानते और न यह अक्षत और सछिद्र यन्त्र है। भारतवर्ष और किसी धर्मशास्त्रको ही मानते हैं। मूर्खताका कारण पारस्यमें इसे व्यवहार करते हैं। ध्वनि कर्णभेदी पूछने पर इनके मुखसे मुनम पाया, किसी समय है। इसका देयं १५ फोट होता है। ईखरने महिषचर्मपर अपना पादेश और धर्मशास्त्र करणाधिप (० पु.) करवानां पधिपः, तत् । शिख मनुष्यों को बुलाया था। मनुष्यों में संब लोग जीव, कह। २ इन्द्रियाधिष्ठान देवंता। कर्णके देवरका पादेश और धर्मशास्त्र ग्रहण करने को पहुंचे, दिवा त्वक्के वायुः नेवके पर्क, रसनाके प्रचेता, किन्तुं समय न मिलने से केवल करण जानसके नासिकाके पश्खिनीकुमारहय, वायके वक्ति पाणिक सुतरां चिरकासको धर्मयात्रहीन की गयी पन्द्र पादके उपेन्द्र पायु मित्र, उपसक प्रजापति, Vol. IV. 11 । 19