पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७१७

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०२० कासौ-कास्त वह नदी पार हो पूर्वमुख एक बनमें चली गयी। प्रायः समस्त अक्षर बिगड़ गये हैं। सुतरां इस रक्षकने पहुंच उसका अनुसरण किया था। कुछ दूर समय तक उसका पाठोधार नहीं हुवा । प्रवाद है कि जाकर उसने देखा कि गाय शिवलिङ्ग पर दुग्धधारा मुसनमानोंने वह शिनानिपि बिगाड़ डाली है। छोड़ती थी। उसने उसो दिन घर जा राजाले उक्त कामी (मं० वि०) कामो ऽस्याम्ति, कास इनि । कास- घटना बता दी। बाघराजने फिर वह बात महाराज गेगविशिष्ट, खांसोका बोमार। (हि.) काशो देखो। कपिलेश्वरसे कहो । कपिलेश्वरने उम शिवलिङ्ग पर कामीमृत्तिका ( सं० स्त्री० ) सौराष्ट्रमृत्तिका, एक कुरुम्बरका मन्दिर बनवाया और गगनखर निङ्ग का नाम मट्टी। रहाया। उन्होंने योगेखरकुण्ड भी खनन कराया था। कासोस (स' क्लो०) कासी छुट्कामं स्यति नाय. सुसलमानों के समय अब्दल समद नामक किसी प्रमित यति, कासौ-सो-क । १ उपधातुविशेष, कमोस । मुसलमान फोरने बलपूर्वक उक्त मन्दिर प्राधिकार २ माक्षिक सुराविशेष, एक शराब। ३ तुत्थक, तूतिया । और उसमें गोहत्या कर मन्दिरको पवित्रता बिगाड़ कासोस भस्मसदृश, किश्चित् पम्न चौर लवरिस डाली थो। फिर उन्होंने शिवलिङ्गको स्थानान्तरित होता है। (डलण) कर चत्वरके मध्य तीन मसजिदें बनायों । कहते हैं कासीसहय (सं• लो०) धातु कासीम और पुष्प का. कि गोरक्त से मन्दिर कलहित होने पर महादेवको सोस । पुष्प कासाम किञ्चित् पोत और तुपर रस लिङ्गमूर्ति अन्तहित हो एगरा नामक स्थान में प्रका- होता है। (इलय) शित हुयो थी। फकीर के पहुंचनेसे पहले 'गांजिया | कासुन्द ( सं० पु० ) कासमर्द, क सौंदा । महाग' नामक कोई महन्त महादेव के पूजक रहे। | कासुम्भो (सं० पु. ) कौसुग्भी गाग्नि, एक धान । धेणियाबुड़ो' नाम्नो उनके कोई भैरवो थो। लागोंके | कासुर (म० पु. ) महिष, मैंमा। कथनानुधार महादेवके अन्तहित होने पर महन्त | कासू (म० स्त्री०) कति कु सत शब्दं गच्छति, कश-ऊ, और उनको भैरवो दोनों ऐशीति के वन सूपमे पृषोदरादित्वात् शस्य सत्व न्। णिकशि द्यते । छ। १ ।। बैठ भाकाशपथसे पूर्व मुख उड़े चले जाते थे। किन्तु एक विकलवाक्य, उलटी बात ।२ शक्ति-अस्त्र, बग्छो पाथमध्य भैरवो किसी जलपूर्ण स्थान पर गिर पड़ो। भाला | ३ दीप्ति, चमक । ४ भाषा, जवान् । ५ रोग, उसीसे गांजिया महाराजको भी उतरना पड़ा। उनके बीमारी। वुद्धि, समझा। उतरनेका स्थान “कुलासनि ग्राम कहाता है। उस . कासूमरी (स० स्त्री० ) इखा कासू, कासू-टरच् । प्राममें आज भो महन्त और भैरवीको मूर्ति स्थापित . कास् गोशोभ्या टरच् । पा ५। ३।१०। क्षुद्र शशि-पस्त्र, छोटी है। महन्तमूर्तिको पूजा होती है। कालक्रमसे उक्त बरछो। स्थान घने जंगलसे भर गया है। वहां कोई सहज हो | कासृति (सस्त्रो०) कुत्सिता सतिः सरणम्, की का- स नहीं सकता । बंगाली सन् १२३१ को वनमाली देशः । कुत्सित गमन, खराव चाल ।, पण्डा नामक किसो व्यक्ति ने मेदिनीपुर कलकरके | कासेतु ( स० पु०) इस्ख काशण, छोटा कांस। . पादेयंसे जंगल कटाया और कूपके मध्य दो खण्ड | कासाली ( स० स्त्री०) प्रतिबला, एक बूटी। महादेवको भग्न निणमूर्तिको पाया था। कास्कन्द, कासम देखो। कुरुम्बरमन्दिर में आज भी अनेक मूर्तियां अक्षुस्म | कास्टक (अं० पु० Caustic) जारक, तेजाब । इसके भावस दण्डायमान है । उक्त प्रस्तरमन्दिर देखने में पड़नसे चर्म जन्न जाता या भवन भर पाता है। पतिमनोरम है। वह २०. हाथ लम्बा और १५० कास्त-महाराष्ट्र की एक ब्राह्मण जाति । कास्त लोग हाथ चौड़ा है। मन्दिरको पथिम दोवा में उडिया खेनोबागेका काम करते और अधिकतर पूना तया भाषाको एक शिलालपि विद्यमान है। किन्तु उसके | खानदेश में रहते हैं। दूसरे ब्राह्मणोम उनका पद ...