पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७१६

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१४८२ ई० १५०४ " " " ... " ... कासिम बरोद शाह- -कासियारि ७१९ कासिम बरीद १म पूर्वदिक एक गभीर दोधिका (तलैया) है। उसे अमीर बरोद योगेखाकुण्ड कहते हैं। वह कुण्ड कुम्भीरसे अनी बगैद (प्रथम नबाव )... १५४२ परिपूर्ण है। वहां मुगलपाड़ा नामको एक पल्ली (गांव) है। धूवाहीम वगैदशाह १५६२ उसमें मुगलों द्वारा निर्मित अनेक मसजिटें और इमा- कासिम बरोद शाह श्य १५६८ रत खड़ी हैं । मुगलों के शासनकाल कासियारि ग्राम पली बरीद शाह श्य १५७२ टमर वाणिज्यका केन्द्रस्थल और तहसीलदारीका सदर अमीर बरीद शाह श्य १६०० थाना था। किमी मसजिद में अरबी भाषासे खोदित कासिम बगैद शाह श्य-अहमदाबाद बीदरके एक एक प्रस्तरन्तिपि है । उससे भी मालूम पड़ता है कि नबाव । १५६८ ई० को इन्हें अपने माता ईवाहीम वह औरङ्गजेबके समय बनी थी। वसावशेषके मध्य वरोदशाइका उत्तराधिकार मिला था। किन्तु १५७२ किसी स्थान पर एक मुसम्मान फोरको प्रस्तर. ई०को ३ वर्ष राज्य करने के पीछे इनका मृत्य हुवा । मूर्तिका भग्ननगड पड़ा है। उसके गावमें फारसी भाषा- फिर इनके पुत्र श्य मोर्जा प्रलो बरोदने राज्य पाया से खोदित एक शिलालिपि है। उसमें भी पौरङ्गजबका था। उन्होंने २७ वर्ष राज्य चलाया । १६०८ ई० को ही समय मिलता है श्य पमोर बरीदने इन्हें मार राज्य अधिकार किया । कासियारिसे कुछ दक्षिण मुगलमागे ग्राम है। सुस- यह अपने वंशके अन्तिम नवाब थे। लमानोंने सर्वप्रथम कुरुम्बरके हिन्दुवों को हरा मन्दि- कासिमबाजार-बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले का एक रादि ध्वंसकर उनके स्थानमें मसजिद बनायी थी। पुराना शहर । वह अक्षा २४.६४." और देशा० फिर मराठोंने मुगलमारी ही मुसलमानों को परा- ८८.१७ पू० गंगाके तट पर पवस्थित है। ई०१८ श जय किया। सम्भवतः त पराजयके पीछे ही मुगल- शतान्टुको वहां पोतंगोजी, फरासीसियों और अंगरजी मारो नाम पड़ गया। को कोठी थी। रेशमको बड़ा व्यापार होता था। पाज- कल वह बात नहीं। कासिमवानारमें कई बडे बडे कुरुम्बरके सम्बन्ध में स्थानीय प्रवाद इस प्रकार है- नमीन्दार रहते हैं। उड़ीसाके देवरानवंशीय महाराज कपिलेश्वरने या कासियारि-वालका एक प्राचीन ग्राम। वह मैदमी मन्दिर बनवाया था। फिर उन्होंने इसमें गगनेश्वर पुरसे प्रायः ३.० मील दूर दक्षिण-पश्चिम अवस्थित नामक शिवलित स्थापन किया। कहते है वह स्थान है। वहां पनेक प्राचीन कोतियोंके भग्नावशेष पड़े पहले जंगलसे घिरा था। सुवर्णरेखा बहरहो यो। हैं। उनमें कुरुम्बर दुर्गका वशि:प्राचीर पान भी उस समय यहां बाघराज नामक कोई राजार।बाघ- कम बिगड़ा है। वह रलवर्ण वालुका-प्रस्तरसे बना रान नामसे ही सम्भवतः वाधभूमि परगना कडाया है कुरुम्बर दुर्ग प्रायः१० फीट जचा है। प्राचीरक है। इनके पनेक दुग्धवसो गायें थौं । उनको लेकर . बगल में चार मेहरावोधाला बरामदा है। अभ्यन्तर. कोई रक्षक प्रतिदिन सुवर्णरेखाके पतिम तीर चराने को पूर्वदिक्के प्रान्तभागमें शिवमन्दिर: बना है। उस जाता था। कुछ दिन पोछे एक गायका दुग्ध प्रत्याह मन्दिरके अन्तर्ती किसी कूपमें शिवलिङ्ग प्रतिष्ठित है। घटने चगा।रानाने सुनकर सोचा सम्भवत: रक्षक सुधा- ठीक मन्दिर के सामने पश्चिम प्रातसें एक मसजिद है। तुर होनिपर वनमें दुकर पो जाता होगा। उन्होंने वड़ीया भाषामें खोदित शिलालिपि लगी है। किमोदिन रक्षकोको वुथा विस्तर तिरस्कार किया था। उसके पाठसे समझ पड़ता है कि औरङ्गजेबके राजत्व रक्षक या सिरस्कृत हो दूसरे दिन दूध घटनेका पता काल मुहम्मद ताइरने वह मसजिद बनवायी थी, लेने के लिये उसी गायके पीछे पीछे फिरता रहा। - ११०२ हिलरीको उसका निर्माणकाश शेष हुवा। गायन वन में जाकर प्रथम पेट भर घास खायो, फिर