कौल-कौवत् जो मूढगर्भ इस्त, पद और मस्तक अवं दिक कोलाक्षर (सं० पु० ) कोखमुद्रा देखो। उठा शक्षु की भांति योनिमुखको निरोधमें माता, वह कोलाट ( सं० पु० ) शोधितचौरपिण्ड । कोल कहाता है। ( सुनुत) ८ काष्ठफलक, लकड़ीका | कौलाल (सं० लो० ) कोलं पग्निशिखां प्रक्षति वारयति, पच्चड़। मुहांसाको दर्द करनेवाली कौन । १० रति कोन्त-प्रल्-प्रण । १ जन्न, पानी । २ रक्त, ग्वन। ३ वन्धविशेष, एक डौला। ११ कुम्हारके चाकको खंटी। अमृत 18 मधु, शहद। ५ पश, बांधा जानेवाला १२ जातके बीचको खूटी। १३ भाला। १४ कुहनीको नानवर । ६ बन्धननिवारक, वन्दिश छोड़ानेवाला। मार । १५ शिव। "जन वहन्तीरमतं घृतं पयः कोम्बालं परिश्वम् ।" (गुरुयजुः, २०३४) कोल (हि. स्त्री०) कार्पासभेद, किसी किसाको कपास 'कोलो बन्धः तमलति वारयति, कौलालं सर्ववन्धमिवर्तकम्।' (महौधर। कोलखंगी या देवकपास कहाती और गारोको पहा- ७ मल्लकोरस,। कोलालज (सं० क्लो०) कोनासात् जायते, कौलान-जन- ड़ियों में अधिक बोयी जाती है। ड। मांस, गोश्त । कोलक (सं० पु.) कोलति बन्धति अनेन, कोल करणे “पादी न धाववैधावत यावन्न मिहतोऽनुम। घञ् खाथै कन् । १ स्तम्भविशेष, किसी किस्म की मेख । कीलालन न खादयं करिष्ये चासुरव्रतम् ॥” (मारत, वन) २ पशुवो के बांधनेका खूटा। ३ तन्त्रोक्त देवताविशेष । कोलालधि (० पु० ) कोलाल जल' धीयतेऽस्मिन् (लो०) ४ मन्त्र विशेष । ५ ज्योतिषशास्त्रोक्त प्रभवादि कोसाल-धा-कि । समुद्र, वहर। ६० वर्षोंके अन्तर्गत एक वर्ष । उक्त वर्षमें यावतीय कीलालप (सं. मु.) कोलाल रुधिरं पिवति, कीलाल. शस्य उपजता और 'देशसमूहमें दुर्भिक्ष, अनावृष्टि पा-क । १ राक्षस । २ जनाका, जोक। तथा उपद्रवादि नष्ट हो मङ्गल हुवा करता है। ६ स्तव. कोलालपा (वै० प०) कोलाल-पा-विच । पाहता मनि- विशेष । सप्तशती पाठकास कोलकस्तव पढ़ना पड़ता क्वनिम्वनिपय । पाए।२।३।१ अग्नि । २ यम । है। केतुविशेष । कोलिका ( सं० स्त्री. ) नारचमेद, किसी किस्मका कोलकाख्य कौल देखो। तीर । २ अस्थिभेद, किसी किस्मकी हड्डो । कौनिका कोलन ( सं० क्लो०) कोल-ल्य ट। १ बन्धन, बन्दिश । ऋषम एवं भाराच व्यतीत अन्य स्नायु द्वारा प्रावद्ध २ तन्त्रमन्त्रविशेष रहती है। "सत् सम्य टः भवेत्तस्य कोलने परिभाषितम्।" ( फेलकारिणौतन्त्र) कोलना (हिं० कि०)१ कोल लगाना, मेख ठोंकना। कोलित (सं० वि०) कोल्यतेस्मेति, कोल कर्मणि । १वर, बंधा हुवा। २ कोल देना, अभिमन्वित करना। ३ सर्पको वशमें "एमिः कामगरस्तदनमभूत पस्य मनः कोलितम् ।" करना । ४ क्योभूत करना, तावेदार बना लेना। (गीतगोविन्द, १२।१३) कोलपादिका ( सं. स्त्री० ) सपादीशुप, एक २ कौररूपमें परिणत, मेख बना हुवा । (को०) झाड़ी। भावत। ३ वन्धन, कैद। कोलमुद्रा (सं० स्त्री.) लिपिमेद, एक प्रकारके अक्षर । कोलिया (हिं. पु. ) परहा, पुरवोला, जो मोटके उसके अपर कील-जैसे होते थे । मत लिपिके कई लेख बैनी को हांकता हो । ई. से कतिपय शताब्द पूर्व पारसिक देश में मिले थे। कोली (हिं. स्त्री.) कोलविशेष, एक खूटी। वह किसी कोसशायो (सं० पु० ) कुक्कर, कुप्ता । चक्रके मध्य लगायी जाति है। किसी पर ही चक्र कोलसंस्पर्श (सं० पु०) कोलं संस्पृशति, कील-सं-स्पृश अच् । तिन्दुकक्ष, तेंदूका पेड़। कोला (सं० स्त्री०) कोल-टाप् । १ कोल, मेख । २ रति कीवत् (वै. वि.) कियत्, पृषादरादित्वात् साधुः। कुछ, प्रहारविशेष । ३रतिबन्धविशेष। थोड़ा। घूमता है। .
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७५९
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