पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. कुकि प्रतिनिकट अनलल नाम कृतियों का एक दल रहता नहीं धोते । १२।१३ वर्ष वयम्स होते ही वह रावि. है । सिन्दु, शक्ति और लुमति पाकि भति प्रवन और कालको गहमें नहीं रहते, प्रहरीगृहमें रात्रियापन दुर्धर्ष हैं। उनमें कोई लिखना पड़ना न जानते भी सद करते हैं। उसके पीछे वयस होने पर विवाह किया लोग बन्दूक प्रभृति नामाप्रकार प्रस्त्रशस्त्र चला सकते जाता है। फिर कुकि घरमें रातको रह सकते हैं। हैं। निविड़ अरण्यवासी कुकि धान भी विवस्त्र रहते विवाहित व्यक्तिका मृत्य , होने से उसके पामोय कुटुम्बी हैं। किन्तु पासाम, श्री प्रकृति कई स्थानों में अंग सब एकत्र हो दुःख प्रकाश करते हैं। मृतदेहके वाम रेज गवर्नमेण्टके शासनसे उन्होंने कपड़ा पहनाना पाच तरकारी, भात और उसके साथ एक कटहर या मीख लिया है। महीका बरतन रख दिया जाता है। कुकि लोग स्वभावतः वन्नशाली हैं। देखने में वह कुकियों को धनसहा नहीं होती। धनके लिये वह मणिपुरवासी खसिया लोगोंसे मिलते जुलते है । कभी लूटमार करना नहीं चाहते। फिर भी वह जो कुकि प्रति पनीमें प्रायः डेढ़ सौ दो सौके हिसाबसे वीच दोच दलबह हो निकटस्य स्थान पाक्रमण करते रहते हैं। उनका घर ३४ हाथ मट्टी छोड़ माचे पर उसका अभिप्राय भिन्न रखते है। कुकियों का कोई वांससे बनाया जाता है। पर्वतके उच्चस्थान पर तथा राजा वा दलपति मरनेसे उसके प्रेतामाको तुष्टिक जसके निकट वह पहली निर्वाचन करते हैं। लिये नरवम्ति आवश्यक होता है। उससे वह मध्य नूतन फुकियों के प्रत्येक दलमें राजा, मन्त्री प्रकृति मध्य किसी स्थानको प्राक्रमण कर वहांसे कई अधि. पद विद्यमान हैं। दलपतिको वह 'मान' कहते हैं। वासियों को पकड़ लाते और उन्हें दुर्गम स्थानमें सकल दलों पर फिर एक पधिपति रहते हैं। उन्हें छिपाते हैं। प्रयोजन पड़नसे उनमें एकको बलि दे कुकि 'प्रथम' कह कर पुकारते हैं। नूतन कुकि कहते पभोष्ट सिद्धि करते हैं। किसी भपर असभ्य जातिके हैं कि उन्हों और मगों ने एक पिता औरससे जन्म साथ विवाद बढ़ने पर यदि शत्र, गुप्तमावसे राजाको लिया है । उनके आदिपुरुषके २ स्त्री रघौं। प्रथमाके मार नाते, तो सब पावं सोय कुकि एकव हो उसका गर्भसे मगों और द्वितीयाके गर्भसे कुकियों का जन्म प्रतिशोध लेने की चेष्टा करते हैं। वह प्रायोजन बहुत हुवा । जम्म होनेके अल्प दिन पोछे ही कुकियों को भयानक होता है। प्रत चत व्यक्तियों के कार्यसाधन माता मर गयौं। विमाता उन्हें देख न सकती थी। करने जा कालग्रासमें पड़ते भी कुकि पीछे नहीं हटते। वह अपने पुत्रको कपड़े पहनाती, किन्तु कुकिको नंगा यदि वह एक शत्रु को मार पाते. तो फिर फूले नहीं हो रखती थीं। इसीसे कुकि वनमें जाकर रहने लगे। समाते । उक्त मृतव्यक्तिशा मुण्ड सम्मुख रख सब लोग कुकियों में प्रत्यक गृहस्थ अपने परिवारको ले पान भोजन और उन्नाससे नृत्य गीत किया करते हैं। स्वतन्त्र म्हमें वास करता है। उनकी विधवाके लिये पोछे वही मुण्ड खगह विखण्ड कर पर्वतापर दनपति- अलग घर रहता है। सब लोग मिल कर विधवाके याँके निकट भेजा जाता है। रहने को अलग घर बना देते हैं। पानकन इनमें पुरुष कुकि भ्रमपशील लोग हैं। वह अधिक काल एक बड़े बड़े कपड़े पहनते हैं। कोई एक वस्त्र पहन स्थानमें वास नहीं करते। विजन कानन और दुर्गम दूसरेको कमरमें बांधता, जिसका कुछ अंश लटका पर्वतको उपत्यकाभूमि उनका रम्य स्थान पोर ऋषिकाय करता है। स्त्रियों ने भव कुरतोसे वक्ष ढांसना मोखा उपजीविका है। है। विवाहित रमणी वक्ष खुला रखती, किन्तु भविषा- हिता उसे ढांक लेती है । स्त्रियोंको केगोको चूड़ा कुकियों में किसी किसीने हिन्दुधर्म ग्रहण किया. बांधती हैं। दूसरे पहाड़ियोंको भांति कुकि भी गात्र है। अधिकांश लोग जड़ोपासक हैं। चतुर्यभाग सम्पर्ण। -