पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

-कर्मधा । कुकर्मशाली-कुरि ०६७. -णिनि । कुकर्म करनेवाला, जो बुरा काम करता हो। म्भव शोन दहा हथादेहको चतुसे अलग रखना ही अच्छा है। उसे कोई देखने न पाये। कुकर्मशाली ( स० वि०) कु कर्मणा शालते, कु-कर्मन् उनमें किमौका पासवकाल उपस्थित होनेसे बड़ी शाल्-णिनि । कुकर्मयुक्त. जो बुरा काम करता हो। धूम पड़ती है। वह बड़े उल्लाससे मिष्टान खाते और कुकर्मा (स० पु०) कुत्सितं कर्म यस्य, बहुव्री० । अपने धर्म का प्रतिपाद्य ग्रन्थ पढ़ते जाते है। मृत्यु कुत्सित कार्यकारी, बुरा काम करनेवाला शखस । होनेसे किसके लिये गोक नहीं करते। उस समय कुकर्मी (सपु.) कु कुत्सित कर्म कार्यत्वेन अस्यास्ति कु-कर्मन्-इनि। कुत्सित कार्यकारी, बुरा काम करनेवाला। १३ दिन दिवारान ग्रन्थ पाठ होता है। उसके . पोहे कुकाठन (म० लो०) पित्तल, पीतल । जाति कुटम्ब सब मिलकर एक दिन पानभोजन और पामोद प्रमोद करते हैं। कुकापन्यो-एक सिखसम्प्रदाय । --लुधियानेसे साढ़े तीन कोस दक्षिण-पूर्व भैणी नामक एक-छुट प्राम १८७२ ई० को विषनसिह नामक किसी कुका. वा रामसिंह नामक किसी बढ़ने जन्म लिया था। दलपतिने धर्म प्रचार करने जा.. लोगों को उत्तेजित वही रामसिंह उक्त सम्प्रदाय के प्रवर्तक हुवे । १८४५ किया था। उसोसे उन्हें फांसी हुयो । पौछे उनके देश- ई० को रामसिंह सिख-सैन्यमें कर्म करते थे। अंग का सत्कार किया गया। उनके पुत्रने भस्मावशिष्ट देह- रेजो के कौशलसे सिखों का प्रभाव ख होने पर उन्हों- का एक अस्थि हरिद्वार ले जाकर समाहित किया। ने युधत्ति परित्याग कर सिखधर्मके पुनः संस्कार पर | कुकार्य (सं० लो० ) कु कुत्सित कार्यम्, मन लगाया। अब दिमके मध्य ही धर्मोपदेशक गुणसे मन्द काय, बुरा काम। सहन सहस्र व्यक्ति उनके शिष्य बनने लगे। यहां तक कुकि-भारतको पूर्वप्रान्सवासी एक जाति । पासा- कि १८६७ ई. तक सक्षाधिक लोग उनके अनुवर्ती हो मसे मणिपुर और चग्रामसे त्रिपुराके मध्य पर्वत और गये थे। मन्त्रोच्चारण समय उस सम्प्रदायवालों के सुख वनमें कुकिलोग रहते हैं । साधारणतः उन्हें लेनटा' से 'कुक' 'कुक' शब्द निकलता है। उससे उनका नाम कहते हैं। कुकि अनेक श्रेणियों में विभक्त हैं:पुरातन कुकि, 'कुकापन्यों है। नतन कुकि और पन्य श्रेणीमूक्त कुकि। पुरासन कुक • अपर सिखसम्प्रदायको भांति कुका-गुरुके भी योंमें भी दूसरी कई शाखा हैं। उनसे कछारमें रणकुत्त, १० पादेश हैं। उनमें पांच पाननीय और पांच निषिद्ध खेतमा तथा वैच और अन्यान्य स्थानों में छोटी, आइमोस हैं। पाख्य आदेशों को 'क' विधि कहते हैं । यथा-करद, रङ्गलङ्ग, पुरम, मन्तक, कोम, कोहरेंग भौर करूम काछ, कपैल, ककती और केश अर्थात् लोहभूषण, प्रधान है । नूतन कुकि त्रिपुरा पौर चट्टग्रामसे ज़ा छोटा नांघिया, चौहास्त्र, चिरुणि और. कैश । शेष कर उत्सराचलमें वास करते हैं। वहां ठदन, चङ्गसेन, पांचको नरमार ( नरहत्या करनेवाले), कुरिखार शिनसन और सङ्गम शाखा मिलती है। त्रिपुराके (धूमपान करनेवाले), सिरकंटा ( मुण्डन कराने पहाड़ी अञ्चसमें प्रामरई, चुत्लङ्ग, इलम्, वरपई पौर वाले), सुन्नत कटा (मुण्डितमस्तक रखनेवाले ) और कोचक कुकि पाये जाते हैं धौरमालिया ( कर्तारपुरवाले गुरुके शिष्य ) कहते हैं। कपुईके दक्षिण अाजकल दुर्दान्त खोङ्गजा कुति प्रथम दो कार्य है और शेषोक्त तीन प्रकारके व्यक्तियों के जाकर रहे हैं। उसके दक्षिण उक्त कुकियाँके मित्र कन्यादान निषित है। . तथा एक वंशीय अधच भिन्न शाखामुक्त पई, शक्ति, नानकशाहियों की भांति कुकापन्थी भी कठिन नियम तौति एवं लुसाई प्रभृति पराकान्त मुकियों शा वास में वह है। सभी एकप्रकार निष्टि चित्र व्यवहार करते | है। मणिपुर और उत्तर तथा दक्षिण कारशी चारो हैं। वह शवदेहका कोई यत्न महीं करते। उनके कथ ओर भी खोङ्गनई कुकियों को रहना होता है। प्राज नानुसार नौवात्माने जब देश छोड़ दिया तब यथास कल वह उक्त माखासे भिन्न हो गये हैं। मणिपुरके ।