पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/८३

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C8 पटी और सहर देशवास करवात अत्यन्त सुदृश्य साखड़गको पविय कहते हैं। या संस्कार न करते पाता है। ऋषिक देयका खड्ग गुरुभार सता और भी बहु दिन परिष्कार रहता और थाण यनपर पढ़ते प्रत्यायाससे ही शरीर छेदन करता है। वन्देशका बहु अग्निकणा निकाला करता है। इसका पत करवा अति तोक्षण होता है। इससे छेद भेद होनेसे प्या, दाह, मलमूवरोध, ज्वर, तथा मूळ रोग करने में देर नहीं लगती। शूर्पारक देयीय खड्ग अति बढ़ता और किसी समय मृत्यु पर्यन्त पा पड़ता है। शय कठिन लगता है। विदेहका करवाच असञ्च वैश्य जातीय करबास नौल तथा अपवता देजस्वी और प्रभावशाली है। मध्यमपामका खड्ग है। संस्कार करनेसे यह पति पर निकलता लघु और पति सोक्षण रहता है। चैदिदेशका कर है। किन्तु इसमें तीक्ष्यता थाप पर पढ़ाने में बाल हबका पौर तीक्षण लगता, किन्तु सारहीन) पाती है। ठहरता है। सहग्रामका खड्ग प्रति तीक्ष्ण और बहुत जो खड्ग देखने में मेघवर्थ लगता, मोटी धार इलका होता है।. चीनदेशीय करवात तीक्षा और रखता, मृदुध्वनि करता और सायपर चढ़ते मी तीच्या अधिक निर्मच निकलता है। कालचरके निकट जी नहीं पड़ता, उसे विद्वान् शूद्र कहता है। खड्ग बनता, वह दीर्घकान स्थायी, तीक्ष्य और बहु जातिके सक्षण रखनेवाला करवान जाति- सुलक्षणयुक्त रहता है। सकर कहाता है। करवालको मष्टान भी कहते हैं। कारण इसकी ४ मिन भित्र चित्रका नाम नेव। बग- परोक्षा ८ प्रकार करना पड़ती है-१ अङ्ग २ रूप, वेत्तावोंके मतमें नेवचित तौससे अधिक नहीं होते। ३ जाति, ४ नेव, ५ परिठ, ६ भूमि, ७ ध्वनि और यथा-धक, पप, गदा, पात, डमक, मा परिमाण। छत्र, पसाबा, वीया, मत्स्य, भिव, धन, अर्धचन्द्र १ प्रस्तुत होनेपर खड़गके शरीरमें नो नाना प्रकार काम, शूल, व्याघ्रनेत, सिंह, सिंहासन, गह, ईस, विधते, उन्हींकी पकाते। प्रा प्रायः १०० मयूर, पत्रिका, जिद्धा, दण्ड, खड़ग, चामर, शिक्षा, प्रकार हो सकते हैं। पुष्पमाना और सर्पाकार चित। २ करबालका रही रूप कहता है। प्रधानत: ५ करबालके प्रमााचनमक. पिडा बाम रूप चार प्रकार रोता है-नीमरूप, रूप, पिल अरिष्ट है। यह ३० प्रकार होता है। यथा-छिद्र, रूप और धनरूप। सिवा इसके मित्ररुप भी देखने- रेखा, मित्र, काकपद, भेकषिर, विड़ासन, इन्दुर, मपाता है। शर्करा, नीला, मयक, भ्रमरपद, सूची, विन्दु, कपो. ३ खड़गको नाति चारप्रकार है-मामय, पविय, तक, निम्रत्रिविन्दु, खपर, मकर, शूकर, इमपन, वैश्य और शूद्र। फिर जातिसहर भी हुवा करता जाल, कराल, कारपत्र, खजुर, गोपुच्छ, खन्ता, है। सर्व विषयों गिना जानेवासा करबाल साल और बड़िय। परिष्ट क्षणाक्रान्त खड़ग ब्राह्मण है। इसके द्वारा पलवस भावे भी सर्वात धारण करनेवालेपर नाना विपद पड़ती है। दुखता पौर मोध उठता है। मूर्खा, पिपासा, दाह (खुड़गकी भूमि दो प्रकारके प्रों में व्यापात और बरका वेग बढ़नेसे शीत प्राण निकल जाता है। पती-प्रथम क्षेत्र वा काया और हितोय अम- हर, पांवला और वोडा-तीनों ट्रष्य कूट पीस एक सान। करवावको भखायो डरायो देखनेको प्रमा खानका विषय.समझ लेना चापिये। इसका अभ- दिन लगाकर रखते भी यह मसिन नहीं पड़ता, वर अधिक परिष्कार निवासता,हिमालय और कम खान (भूमि) विविधता दिख और भौम । वर्गम वो सौर उपमता, उसका नाम दब पड़ता है। दीप कभी कभी ब्राश्रय करवात मिस-जाताहै।.. धमवर्ष, सोमवार, ककरामनिकुम.और पांबात. फिर भारतवर्ष में उत्पन होनेवाचा बौड़ मोम ।।