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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/८४

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करवाल-करभक अधम करवान युक्तिकल्पतरु नामक संस्कत ग्रन्यमै लिखा है। मध्यम खड्ग जितने मुष्टि दोघं रहता, विस्तृतिमें पुगकालको प्रथमतः देवासुर-युद्धमें खडूग निकला उसकी अर्ध अलिके तीन भागमें एक भाग और था। तदनुरूप करवाल किसो किसो स्थानमें रखे है। परिमाणमें अर्धं पल पड़ता है। उनमे स्थ लधार, पति लघु, निर्मल, सुन्दरनेत्र, अरिष्ट जितने मुष्टि दोघं, उतनी ही श्रङ्गुलिके . चार भागमें होन, दुर्भा, उत्तम ध्वनियुत्ता, संस्कार न करते भी एक भाग विस्तृत पौर उममे अर्ध वा अधिक पन्न निर्गल रहनेवाले और टूटनेसे दो वारा न जुड़नेवाले परिमित होता है। दिव्य हैं। दिव्य खड़गका प्राघात पानसे दाह और पूर्वकालको राजा बड़े यनसे पसिचालना सीखते अन्नपाक उत्पन्न होता है। मन्भवत: उल्का तोहसे थे। वैशम्पायनोछ धनुर्वेदमें ३२ प्रकारको असि- ने करवालको भी दिव्य कह सकते हैं। चालन-क्रियाका नाम मिलता । यथा-धान्त, भौम खडूगका लक्षया देखने को प्रथम नौहतत्त्व उभान्त, पाविद, श्रानुत, विद्युत, मृत, संयान्त, समझ लेना उचित है। लौह देखो। यह दो प्रकारका : समुदीर्ण, निग्रह, प्रग्रह, पदावकर्षण, सन्धान, मस्तक- होता है-धमृत और विषजन्मा। एक प्राचीन वामगा, भुजबामण, पाश, पाद, विवन्ध, भूमि, किंवदन्तीके अनुसार पूर्वकालको देवादिदेवने विषपान । उङ्मय, गति, प्रत्यागति, पालेप, पालन, उत्थानक, किया था। वह पोत विष क्रमशः विन्दु विन्दु नाना मुति, लघुता, मौटव, शोभा, स्वंय, दृढ़मुष्टिता, तिर्यक- देशों में गिर पड़ा। उन्हीं विविन्टुसे बातायस (ईस. प्रचार और जयप्रचार। पात ) वन विषजन्मा कहाया है। देवगणने समुद्र- करबालिका (म. स्त्री.) एक धारास्त्रविशेष, एक मन्यनीस्थित अमृत पान किया था। उस पीत अमृत। छोटो.तलवार । का विन्दु जहां गिरा, वहीं शुद्ध लौह बना। शुद- करबी (हिं. स्त्री..) यशुखाद्यविशेष, कटिया, चरी, लोहको ही अमृतजन्या बहते हैं। शुद्ध लौह धारा चौपायोंशा एक खाना। ज्वार या मकयोके हरे भरे णमो, मगध, सिंहल, नेपाल, अङ्गदेश, सुराष्ट्र प्रति पेड़ 'करवी' कहाते हैं। यह गडांससे पहुंटे पर स्थानमें उत्पन्न होता है। भीड़, कलिङ्ग, भद्र, बारीक काट काट गाय-भैंस प्रभृति पशुको खिलायो पाण्डा, अयस्कान्त और वज़ प्रभृति विविध शुष चौह ; जाती है। मिलता है। इस खौडका खड़ग ही उत्कष्ट बनता है। करबीला (हिं० वि०).चरीवाना, जो करवीमे भरा हो। ७ ध्वनि अर्थात् शब्द सुनकर करवालको भलायो- करवुर (हिं० ) कई र देखो। बुरायो पहंचानी जाती है। ध्वनि प्रथमतः दो प्रकार करवूस (हिं० पु. ) चमै वा सूवरन्न, एक रसो या होता है-घोर भोर भार। इंस, कांस्य, दया और तसमा। यह अश्वके ..पर्याण (जीन.)में अस्त्रंशस्त्र मेघना ध्वनि घोर कहाता है। धोर-ध्वनियुक्त खड्गको रखनेको टांक दिया जाता है। उत्तम समभाते हैं। काक, वीणा, खर और प्रस्तरो- करम (म• पु०) १ मणिबन्धसे - कनिष्ठ बङ्गालि यित ध्वनि भार होता है। भारध्वनियुक्त करवाल पर्यन्त इस्तका वहिर्भाग, कफदस्त, कलायोमे उंगलियों वुरा ठहरता है। की जड़तक हाथका हिस्सा । २ करिशुण्ड, हाधीको ८ खड्गका मान उत्तम और अधम भेदसे विविध सूड। ३ गजशिश; हाथी का बच्चा। ४ उष्ट्र, ट। है। विशाल एवं अल्पभारको उत्तम और क्षुद्र तथा ५ उष्ट्रभावक, मंट या किसी दूसरे जानवरका बच्चा। भारवान्की अधम कहते हैं। फिर इसमें उत्तम, ६ नखी नामक गन्वय, एक ..खुशबूदार चीज़। मध्यम और अधम तीन भेद पड़ते हैं। नागार्जुनकी ७ सूर्यावत। ८ एक दोहा। इसमें १६ गुरु और भाति नितने मुष्टि दी उतनी ही अङ्गुलिक चतुर्थ १६ लव लगते हैं। भाग विस्तृत और पलपरिमित अरवाल उत्तम होता । करभक (सं० पुः): अनुकम्मित: करमः करमका, Vol. IV. 22 ।