धर २ ४७ .... कराढ़-ब्राह्मण-करार बायपशिशु बलि चढ़ाने की प्रथा रही.. १८१८ ई. उत्सवादि दूसरे ब्राह्मणों की भांति सम्पन्न किया करते पोछ या प्रथा एक काल उठ गयी है। इनका आधार करते हैं। बालक विद्यालयों में पढ़ते हैं। कराढ़ व्यवहार अनेक अंशम अपर महाराष्ट्रासे मिलता है। शक, स्वच्छ, अतिथिसेवी और पानाकारी होते हैं। “सुप्रसिद्ध महाराष्ट्र कवि मोरोपन्य कराढ़ प्रामण हो इनमें कोई व्यवसायी, कोई ज्योतिषो.भौर कोई भिक्षुक थे। इनमें भिन्न गोत्र और अनेक घर देख पड़ते हैं। है। ऋगवेद इनका प्रधान वेद है। करात (हिं. पु.) कोरात, ४ जौको तौल। इससे गोव स्वर्ण, रौप्य वा.औषध तौलते हैं। काश्यप गोत्र करामा (हिं. क्रि०) कार्यमें लगाना, करवाना। अत्रिगोन ७५ / करावत (अ. स्त्री.) १ भासवता, इत्तिसाल, नन- -भरद्वाजगोत्र 199 दीको। २ सम्बन्ध, अपनायत । . जमदग्निगोव ७५ कुराबतदारी (फा० स्त्री०) सम्बन्धिभाव, रिश्तेदारी। वशिष्ठगीत करावा (अ.पु.) काचपात्र विशेष, शीशेक्षा एक कौथिकगोन बरतन। इसका पाकार वृहत् और सुख क्षुद्र नैध्र वगौत्र २४ रहता है गौतमगोत्र १५, करामद (स.पु०) कर पा .सम्यक् मृनाति, कर- गाय गोत्र भा-मृद अप । करमवक्ष, करौदेका पेड़। सुहलगोत्र करामात (प. स्त्री.) पायर्यव्यापार, सिद्धि, करमा, विश्वामिवगोत्र अनहोनी। या शब्द 'करामत' का बहुवचन बादरायणगोत्र १ है। करामात दिखानेवालेको करामाती (सिच) कौण्डिन्यगोत्र १ कहते हैं। उपमन्युगोत्र कराम्बुक ( स० पु.) कीर्यते विक्षिप्यते. अख पातिरसगीन यस्मात, कृ कर्मणि अप-कप । वष्णपाक फल पक्ष, लोहिताचगोत्र करौदेका पेड़। वैखग्रोव कराग्ल, करामक देखो। : शाण्डिल्यगोव d कराम्बक (सं० पु०) कर कीयमाणं अम्झ यस्मात्, कुलथगोत्र कर-पल कप । करमदंक वृक्ष, करौंदेका पेड़। वात्स्यगोत्र करायजा (हिं. पु०) १ कुटज, कोरेया। २ इन्द्रयव । भार्गवगोत्र करायच (हिं. पु.), कनौजी, मंगरैला। २ लेन पार्थिवगोत्र वा घृतसे किया हुआ वैसवार, तेल या घी-में पकाया महाराष्ट्र देखी। हुवा मूग या उड़द की दासका झोल। प्राय:तर कर्णाटक प्रदेशमें. कराढ़ ब्रामण मिलते हैं। कारोके.झोलको भी करायल कर दिया करते हैं। यन्त्र चितयावनौसे मिलते जुलते हैं। वर्ण कुछ करायिका. (सं.स्त्री.) कराविव पाचरति उडयन- अधिक काला रहता है। किसीकी आंख भूरी काले करवलम्बमानत्वात्, कर-क्यङ्-खुल-टाम् । या नौती नहीं होती। विजयदुर्गा, भायंदुर्गा और उपमानादापार। पा ४१०।१ बचाकापची, छोटा बगवा। महारथी. इनकी कुलदेवता है। महिमर राज्यक २ पविभेद, एक चिड़िया.।.. गङ्गाराचार्य गुरू. माने जाते है। यह व्रतादि और करार (हि.पु.) १. नदीका च. सट, दरयाका Vol. IV. 25 ... ... १ १ ३ २ २ २
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