पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/२१३

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लवणपत्तन लवगाधिज इस लवणधेनुका दान करनेसे इहलोकमें विविध मुग्न । तू लवणसमुद्र होगा और तेरा जल कोई नहीं पायेगा।' और अन्तकालमें रुद्रलोककी गति होती है। यह कथा यहुत पीछेकी कलियत जान पड़ती है। लवणपत्तन-चट्टलके अन्तर्गत एक नगर। लवणस्थान ( स० लो०) एक जनपद । (भविष्य ब्रह्मावि० १५५६४) लवणा ( स० स्रो०) लुनाति या लु ल्यु-टाप् । १ एक लवणपाटलिका (सं० स्त्री०) लवणको थली, नाकका नदीका नाम, लूनी । २ दीप्ति, भामा। ३ महाज्योतिमती स्थान। लता। । राजनि०) ४ चुमिका, नुक। ५ चंगेरी। लवणपालालिका ( सं० स्त्री०) लवणपाटलिका देसो। । ६ वणशाक, अमटोनी साग। लवणपुर (सं० क्ली० ) एक नगरका नाम । लवणाकर (मपु०) लयणम्य याकरः। लवणकी गान, लवणभास्कर (सं० क्ली०) वैद्यकका एक प्रसिह चूर्ण। इसमें वह स्थान जहासे नमक निकलना है। तीनों नमक और अन्य कई औषधियां पहती हैं और यह / ... ६ लवणारय-चटगायके अन्तर्गत एक लवण-मन्त्रयण । पेटकी अपच आदि वीमारियों में दिया जाता है। लवणाचल (सं० पु. ) लवणनिर्मिनं मचला। दानार्थ लवणमद ( स० पु०) लवणस्य मदः । खारो नमक। लवणादिनिर्मित पर्वत, पहाडके रूप में कल्पित नमकका लवणमन्त्र ( स० पु०) लवण उत्सर्गकालीन एक मन्त। ढेर। लणका जो पर्चन धना पर दान करते हैं उसे लवणमेह (सं० पु०) सुश्रुतके अनुसार प्रमेह रोगका एक लवणाचल कहने में। मत्स्यपुराणमें दम पर्वतदानका भेद । इस रोगमें पेशावके साथ लवणके ममान स्राव : विधान इस प्रकार है। सोलरद्रोण नमकका एक ढोका होता है । (मुश्रुत नि०६ म०) ले कर उसका पर्वत बनाये, अर्थात् उसे पर्वतके साकारमै लवणयन्त्र (सं० क्ली०) दो मुहडे दार वरतनोंके मुह स्थापित करना स्थापित करे। इतने नम झसे जो पर्वत बनाया जाता है जोड कर बनाया हुआ एक यन्त्र जिसमें कुछ गोप- वह उत्तम ; उसके आधेका यनाया हुआ वह मध्यम , धियोंका पाक होता। इनमेंसे एक वरतनमें नमक भी और उससे भी आधेका पनाया हुआ पर्वत अध्म कह- दिया जाता है। लाता है। जिस परिमाणका पर्वत बनाया जायगा, उसके लवणवर्ष (स'० पु०) पुराणानुसार फुशठीपके अन्तर्गत | चौथाईसे विष्कम्भ पर्वत बनाये । पर्वतदानके विधाना- एक वर्ष या खंड । ( लिनपु० ४६।३६ ) नुसार सुवर्ण मादिसे ब्रह्मादि और.लोकपालादि बना कर लवणवाटि (सत्रि०) लवणजल, खारे पानीका समुद्र। विधिपूर्वक उसको पूजा गरे। पीछे उसे दान कर लवणव्यापत् ( स० स्त्री०) घोडौंको एक प्रकारकी गहरी ब्राहाणको दक्षिणा दे और भोजन करावे। इस प्रकार पोड़ा। घोड़ा जब बहुत नमक खाता है, तो वायु कुपित विधिक यनुमार जो लवणपत दान करते हैं, वे इस हो कर बहुत पीडा होती है, इस पीडाको लवणण्यापत् | लोकमे नाना प्रकारका सुखसौभाग्य भोग कर उमालोकमे कहते हैं। एक क्ल्प तक वास करते और पीछे उन्हें मुक्ति मिलती लवणसमुद्र (सं० पु०) लवणसागर, खारे पानीका | है। (मत्स्य पु०) समुद्र। यह पुराणोक्त सात समुद्रों से एक है। अन्य लवणाद्यमोदक (स लो०) नमकसे वनाई हुई एक पुराणों में तो सातो समुद्रोंकी उत्पत्ति सगरके पुलोले प्रकारका श्रीपध । खोदनेसे या प्रियव्रत राजाके रथके चलनेसे वताई गई है, लवणान्तक ( स०पु०) लवणस्य अन्तः । १ लवणा- पर ब्रह्मवैवर्तमें लिखा है, कि श्रीकृष्णकी एक पत्नी सुरको मारनेवाले शत्रुघ्न । (रघु १५४०) २ नोवू । विरजाके गर्भसे सात पुत्र हुए जो सात समुद्र हुए। लवणाधि (सं० पु०) लवणसमुद्र, खारे पानीका समुद्र। इनमैसे एक पुत्रके रोनेके कारण थोडी देरके लिये कृष्णका | (मार्कपडेयपु०५७) वियोग हो गया। इस पर विरजाने उसे शाप दिया- लवणाधिज (सं० लो०) सवणा-धौ लवणसमुद्र जायते