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प्रधान और प्रसिद्ध लिंगोंके उद्देशस भी कभी उत्सव। है, कि पूर्वकालमै ईमानों में भी एक तरदकी लिंगपूजा
नी मनाया जाता था। वैकसदेवके फेलिफोरिया नामक | प्रचलित थी। आज मी टटली ने रोमन् काथलिक सम्प्र-
महोत्सबमे वहांके लोग मेयका चमडा पहन कर, मारे । दाय, उसका अंगविशेष विद्यमान है या नहीं, अच्छी
शरीरमै काली लेप कर और एक लबे लकडीके उडे | तरह बालोचना करनेसे उसका पता लग मकता है।
चर्मलिग वाध पर रास्ते रास्ते नाचते घूमते थे। मित्रदेशीय प्रथम माईगण लिंगातिमूलक पूर्वोतः
वैक्सके पुन प्रायेपसका उत्सव कुत्सित और वीभत्स तऊ' नामक वरतु गले में पहनते थे। पूर्वतन ईसाइगोंके
प्यापारयुक्त होता था। उनका प्रधान प्रधान महोत्सव अनेकों समाधि-मन्दिर वा स्तम्भमें यह नऊमूर्ति अद्धिा
केवल स्त्री द्वारा ही सम्पन्न होता था। वे सब रम | है । वही तऊ लिंग गो क्रांसचिम रूपान्तरित हुआ है
णियां उनकी पूजाके समय गदहेकी बलि देती तथा चा नही कर नहीं सकते। भारतीय हिन्दुओं तथा
मद्यादि विविध उपचार पूजा कर नाच गान और वाजे-1
पाश्चात्य ईसाइयोंम तिगोदामनाका सामञ्जस्य देख कर
के साथ उन्हें संतुष्ट करती थीं।
मूर साहबने लिखा है-
चैतस और प्रायेपसकी पूना तथा महोत्सबके
___ 'This last lingering rce of a very ancient
rite-Phallic, Lingase, or lonman. as one mily
सम्बन्धमे वहां के लोगोंका कुत्सित आवार और अनु.
be differently dispoud to eatin Christen
ठानादि देख कर ऐसा प्रतीत होता है, कि सुदर यूरोप
dom, has been thought to deserve aseparate
महादेशमे भी बहुत समय पहले तन्त्रोक्त वीराचारके
and somshat lengthy dissertation I have
जैसो आचार प्रचलित था।
compiled such a one from souncs not mention
___आथेनियसको लेखनीसे हमें मालूम होता है, कि nablc, with a running commentary showing its
ग्रीकवासिगण वैकसदेयके महोत्सव विशेपमे १२० हाथ close contespondence with custing Hindi
लम्बी एक सोनको लिंगमूर्ति ढो कर ले जाते थे। rate"-loor's Oriental ragments, p, 1-47
अलेकमन्द्रियाराज टलेमीने इस उत्सवका अनुष्ठान किया
भारतवर्ष शिवलिंगपूजामें चारों वर्णका समान
था। (Athenaeus, lib, r)
अधिकार है। शिवलिंगके मध्य पार्थिव शिवलिंगपूजा दी
प्राचीन फिनिकीया राज्यमें भी अति जघन्यभावमें
विशेष प्रशस्त है। इसके सिवा सोने, चांदी, तावे,
लिंगपूजा प्रचलित धी। लुसियानके वर्णनसे मालूम
स्फटिक और पारेका लिग बना कर उसकी पूजा करनेका
होता है, कि सिरियाके एक वडे मन्दिरमे ३०० फादम
विधान देना जाता है।
ऊचा लिंग था । प्राचीन आसिरीय और वाविलनगन्य लिंगमहिमा-संसारमें जो सब पुण्य कार्य हैं, उनमेसे
वासी ३०० हाथ लंबी लिंगमूर्ति बना कर उसको उपा शिवपूजा प्रधान है। अश्वमेध और वाजपेयाद यज्ञको
सना करते थे। वाविलनसे जो सब पीतलको पुरानो अपेक्षा शिवपूजामे अधिक फल है। यथा--
लिंगमूर्ति आविष्कृत हुई है, वह यविफल भारतीय शिव "अश्वमेधसहस्राणि वाजपेयगतानि च ।
लिंगकी-सी है । ७वी सदीमे चोन परिव्राजक यएनचवा महेशानुनपुण्यस्य क ना नाहन्ति पोडशीम् ॥"
पागोधाम आ कर १०० फुट 'चा तांबेमा शिवलिंग
(मत्स्यसृ० १६५०)
नया कमसे कम ६६ हाथ लम्बी एक पीतलझी गिनमूर्ति शिवलिंगकी पूजा करनेसे जो फल होता है, अग्नि
और २० सुन्दर मन्दिर देख गये हैं। काशी देखा। किसी होत्रादि यज्ञ उमके कोटि भागमेंसे भी एक भाग नहीं
किसी प्रत्नतत्त्वविद्ने प्रमाणके साथ यह सावित किया है । जो शिवलिंगकी पूजा करते है ये सभी पापोंसे मुस
होते है। इस जगन्में जीव नाना योनियों में भ्रमण कर
- Jour Roy, As Loc of Great Britain and Ire. | एकमात्र शिवलिंग पूजा द्वारा हो मुक्तिलाभ करता है
land, Vol 1p, 91-92 लिंगपुराणमें लिखा है, कि एकमात्र शिवलिंग