पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४३५

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४४० , वण-बगड़ी उण ४।२२० ) इति अमुन्, सुट् च । २ टानड्यान, बैल।। यथ्यमाणत्य (नपत्री० ) वक्ष्यमाणका भाव या धर्म । पक्षण (स० त्रि०) १ शक्तिशाली, बलिष्ट । (को०) वक्षत्य- परिह-जोधपुर राजा समयसिंह के छोटे माई । नेति, वक्षरोपसहत्योः एयुट् । २ पक्ष, छाती। समयसिह के खग वामो शेने पर उनके पुत्र रामसिंह ३ चाहा। पिताकी नहा पर बैठे। घरमिद नागारके जागीरदार 'जियाम्म वक्षयानि यः" (मृक ६।२३१६) थे। रामसिका अभिपर रामय वानसिंहको माना "वक्षणानि वादकानि स्तोत्राणि क्रियात्म करवात ।" (सायण) आवश्यक था, योनिचे फुल बड़े थे । परन्तु न मालूम ४ अग्नि, माग। किस कारणले उस समय न तो वासिंह थाये और न चक्षणा (सं० स्त्री० ) १ नदी । ( प्राक् ५।४२।१३ ) २ नटी- किसी अपने प्रतिनिधि हामी नेना। रामसिंह समि- गर्म। (ऋक् १०।२६।१६) ३ उदर, पेट। कमे नानांकि टायमालेवल उनी । ___सा यः प्रज्ञा जनयत् वक्षणाभ्य" (वर्ष० २४१२।१४) आई थी। यव राजा रामलिंद बडे अप्रसन्न युए। बक्षणि ( स० वि० ) शनिदाता ।

उन्होंने इस छायमा वा अपमान दिया और अभिषेक

वक्षगी ( स० वि० ली० ) वक्षण लिया टीप। १शक्ति होगेर बाद ही उन्होंने नागौर पर धावा बोलने सेना- दावी । २४.नन्दबहिनी। को भासा टो। अपने चाचा नरसिंह को सेना एकत्रित वयपरत्या ( लि) अग्निमे रयापित। करनेका भी प्रकाशन दिगा। दोनों धोरस बमासान वलय (सं०१०) ३ बलाधान। २रद्धि-प्रकामा युद्ध होने लगा। छायामि व भयंकर युद्ध ाए । वक्षस ( स० पु० लो०) १ हत्योपरिग्य देहमाग, छाती। अन्तम नबन,रानिहने अपनी मूरानाका फल पाया। २६प, बैल । ये हार गये। वासिंहको मारवाडका सिहासन हाथ वटासमर्दिनी (सखो०) वक्षसि समह ने इति। लगः। अन्त में परताव्दको सानेरती तारानीने मार स मृह णिनि । सो, पत्नी। वाला । वक्षारयल ( सली० ) १ च्क्ष, छाती। २ हृदय। बतियार खिलजी-तिहास-सिद्ध यद्दविजेता मुमल- आघात ( स० पु०) वक्षमः तट वक्षस्तर ते मान सेनापति । मरम्मन-र-नरनियारा भागत. रक्षः। वक्षस्थलोपरि मुहयाघात, छाती पर बनड़ी (दहीप जम्का सरना)-प्राचीन गौरराज्य पाच मागॉम विसतरनमेसे बगडी एक विमाग है। मुका मारना। बक्षी ( स . स्त्री०) अग्निशिखा, आगकी ली। राहमिहिरती बृहत्संहिनामे जिस उपबद्गका उल्लेख पल-स्वनाम प्रसिद्ध इक्ष (O uc) नदी । तु देखो। है, शायद वही बगड़ी विभाग के जैसा मालूम होता है। बलओनीय (स० पु० ) विश्वामित्रके एक पुनका नाम । दिग्विजयप्रकाश लिम्बा है, कि भागीरथीके पूर्वभागमे पाच योजन विस्तृत उपचद। योरादि देश. कानन (भारत १३ पर्व) और धानेक नदी इसी उपवनके अन्तर्गत है। वक्षोज (सलो०) क्षसि जायते इति जन ड। स्तन, सेनवंशके जमाने में भागीरथी पूर्व, पद्मा पश्चिम और सागरके उत्तरवत्तों उन्लेका अंश बगडी कहलाता वक्षामएललिन (सं० पु०) नृत्यकालीन हरतबिन्याममेद । था। अभी मागीरथीका पश्चिमी किनारा राढ पौर चोरह (मपु०) वक्षसि रोहतीति रह-कः। रतन, पूर्वी किनारा बगड़ी पहलाता है। राढ़ और बगड़ी विभागमे विशेषता यह है, फिसद भूभाग मशैल और वक्ष्यमाण ( नि.) १ भविष्यत् कथनीय विपय, जो भविश्यमे कहने लायक हो। २ वाच्य, वक्त करमय, अधिकाश स्थल ऊचा नोचा है, किन्तु बगडी जो भूभाग इसका ठीक विपरीत है। इसकी कुल जमीन कयन का प्रस्तुत विषय हो, जिसे कह रहे हों। (ली)। उर्वरा है और वाढके समय इन जाती है। ४ मनोन वचन, सुन्दर वचन ! राढ और वकद्वीप देखो।