पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वदेश ४५६ मिलता है, यह मम्मवत यही बङ्गदेश है। यह भी , स्तर देखा। निम्नरल के रिसी स्था1में यह पिट लेयर या क्सिी समयमें राढ और वर्णमुर्प आदि भिभिन्न काले पत्थर कोयलेशारलर या तह २० से ३० फुट तक विभागांमें विभक्त हुआ था। इसके दक्षिण विभागरिथत मौजूद है। इस स्तरफे बाद माय ११ फुट तफ याका यद्धमान थादि प्रदेश राढ और उसके उत्तरा भूभाग! मित्रित कर्दम स्तर (Sind clas), इसके बाद १५ फुट कर्णसुवर्ण नाम परिमित था । गौड नार यादिम । तर फिर लू के नाम स्तर है। शेपोत दो स्मरों में पौण्ड्वद्ध ना ही अतगत था। पीछे गौग्नगरको मनधि उदोन आसप्य ऊचे सुन्दरी पक्षकी गुडी, वादावन चारो ओर फैल जाने पर समन पराय-और तो। मुरम क्षादिका पात्रा और शड्डू शक प्रेणाके जोवादि क्या, वर्तमान सारा बहाल गहा गोडदे या गौड को अस्थिया देखी थी। इसमे थछी तरह अनुमा। रान्यके नामसे विख्यात था। मुमलमानोंने अधिकार होता है, किए समय शिवादह नदीगाम मा दुमा कालमें लक्ष्मणावतीका भी प्रसिद्धिधुर । गौड नाम पर | था, क्रम। यह ऊपर उठ आया है और सुन्दरो रक्ष होनेसे काठ पा कर दहाउके पुराने छोटे छोटे विभाग | सुन्दरवनको विस्तृति साक्ष्य दे रहा है। भी बिलुप्त हो गये हैं। ___ कुछ समय पूर्वी ककत्ता फारनिलियम किले में ४८१ भागीरथोके पश्चिमीय दिनारके प्राचीन चड़ फुट गहरा एक पुआं खोदा गया। भूपठसे फासे इस दक्षिणसे प्राय ममन मेदिनीपुर मिरा और दालेश्वर कुए से वालुका, कई म, पिट और प्रस्तर स्तर पाहर हुमा जिला भी कुछ अशले र उम समयमा ताम्रनित था। भूपृष्ठसे ३५० पुट नीचे पहले कच्छपकी पृष्ठास्थि राज्यहै। वर्तमान तमोतु नगर उसकी रानधानी और इसक वाद ३८० पुर नीचे सुमिष्ट जलनीत्री म्यूक ध्यामायिक बन्दा था | महाभारतके घनपर्व ११४ | जातिको मृत हहिया और इसके बाद ध्वस्त वनमालाका अध्याय में उल्लखित हुमा है, कि राजा युधिष्ठिर पाच सौ] निदर्शन (bed of deerred nood ) दिग्वाइ देता मदियों के माय गडासागर सङ्गममें नीर्थस्नानादि कर है। इस पृयाधयनादिका निरीक्षण करने पर मालम समुद्र के पिनारेमे फलिद देशमें आये । म कग्डिम हो होता है, कि वर्तमान भूपृष्ठम ३८० फुट नीचे स्थित घेतरणा नदी प्रवाहित होती है । ताम्र लेप्ति देयो। । भूपृष्टस्तर बहुत दिन पहले निघिड वनमालामे आच्छा ऊपरमें बङ्गालको गठन थोर देशादि स्थान दित था। रितु यह भूपृष्ठ म देह रही, कि सुन्दरवनके सम्बधर्म जो लिखा गया है उसका सक्षिप्त इति । समतल प्रतिरकी तरह ऊ चा था। पयोकि ऐसा 7 हो, हास पङ्गालके पुरानस और प्रततच विभागम लिया | तो अवश्य हो उसी समुद्र नल इव नाना सम्मय था। गया है। ऐसे स्थलमै अपश्य ही मानना पड़ेगा, किपर समय भूतस्यचिद् गहोई बहार प्रान्तरकी पृक्ष यादिने प्रात्री यनगृष्ठको परिशोभित किया था। उत्पत्तिके सम्बधर्म विशेषरूपमे मागेचना पर समय पा र यह भूमिकम्पादि निमा नैसर्गिक कारणसे लिना है कि पहले बालुका पदमित्रित नोवदेह और भूग में प्रोधित हो गया है। इसके बाद नदास्रोतमे यद उद्भिजात पालेज स्तरविशेष ( Lom ) रूपान्तरित हो प्रभूत मृपिएह उस पर सञ्चित हो पर वर्तमान रतर भूपृष्ठ पर एसे है । कलकत्ता और उसके निस्टक प्रदेश । सगठिन हुमा है अथा उस समय य स्थार ममशः २४ परगना और यशोदर जिले के गाना Fधानों में ताराब चररूपसे समुह पृष्ठसे ऊपर उठा था। पुदवाने ममय भूपरकी मिट्टोमा पवेिक्षण र उहोंने भूपञ्जाके बीच निम्ति ये धनमालाये दाल पाकर यहाके स्तरोंक गउनग्य रिया है । परकत्तेके । धम प्राप्त हो कर कोयले में रूपान्तरित 3६ है। बहार शिवादहफे निकट ए पोखर गुयान समय उन्होंने भूपृष्ठ । में ऐसे कोयलेशी सनिको कमी नहीं है। रानोगक्ष पर यथाक्रम 'फान साएड'लोम, नई और पिट लेयर) कोपलेकी पनि लिये प्रसिद्ध है। इस समय यसका (Ient larer) या गपरिणत पत्थर कोयले का सामान्य | और वाइटा जिले तक विस्तृत स्थानम पोयरेकी उनि