पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५९३

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वग्दाचार्ग-परपुत्र गौरीपूजा करके पञ्चमीमे सरस्वतीपना रनो पड़ती है। घरदार (म पु०) १ वृक्षविशेष (Tectona Gran/lis) | वरदाचार्य-बहुतेरे अति प्राचीन संस्कृत प्रन्यनारों के २श्रेष्टदाम. पीपल वट आदि बना पे। नाम । यथा-१ अनब्रह्मविद्याविलाम और अम्बार- बरदारक (Fic पु०) वृक्षमेद । इसके पत्ते विषेले होते हैं। भाण नामक भाणके रचयिता । २ अधिकारसंग्रह- बग्दाश्चम (सौ. नि०) चन्द, बर देनेवाला। माष्यकार । ३ अभयप्रदान और अभयप्रदानसारके वरदो (२० स्त्री.) बद परिधान जो किमी विशेष विभाग. प्रणेता। ४ उत्प्रेक्ष मञ्जरी नामक अल्ट्रार-अन्य रन के कर्मचारियोंके लिये नियत हो, यह पोनाक या पहनाया यिता। ५पान्त'लोदण्डनमण्डनकार । ६ परतत्व- जो फिमा वाम महकमे के अफसरों और नौगैके लिये निर्णयकार। ७ कारिकादर्पणके प्रणेता । ८ प्रमेवमाला मुरहो। जैसे-पुलिसी वरदी, फौजको वरती। नामक वैदान्तिक प्रत्यके रचयिता । ६ भगवदुध्यान-वरदेव-राठोर राजवंश प्रतिष्ठाना। ये कामध्वज उपाधि- मुक्तावलोशार । १० मङ्गठमयूरमालिका नामक अल धारो तेरह महागागायोंके एक आदिपुरुष थे। अपने जेठे डार प्रन्यके रचयिता। ११ यतिराजविजय या वेदान्त- भाई द्वारा वाराणसी और ८४ नगरीका आधिपत्य विलासनाटककार । १२ विरोधपरिहार झार । १३, पाने पर भी उन सबोंको छोड कर इन्होंने पापपुरमें व्याकरण लघुवृत्तिके प्रणेना । ४ श्वेताश्वतरोपनिषा ! भ्वतन्त्र राजधानी कायम की। इनके वंगधग्गण पायक- दाटयकार । १५ साविती परिणय नामक काथ्यके फामध्वज नामसे प्रमिल हैं। रचयिता। वरदम (सं०पु०) वृहदाकार वृनभेट, एक प्रकारका अगर वरदाता (सं० वि०) घरदान देखो। जिमका वृक्ष बहुत बडा होता है। अगरेजीमें इसे वरदातु (सं० पु०) ददातोति दा-तुन् वरम्य दातुः। वृक्ष- gallschum कहते है। विशेप, सागवानका पेड। पर्याय-भूमिमह, द्वारदातु, वरधर्म ( सं० पु०) श्रेष्ठ कार्य, बड़ा काम । खरच्दा गुण-शिशिर और रक्तपित्नप्रसादन। वरधर्मकृत् (सं० त्रि०) दमरों की भलाई करनेवाला। " वरदातृ (सं० त्रि०)दा तृण, वरस्य दाना। अमीष्टफल-1 वरन् सं० अव्य०) ऐसा नहीं, बल्कि । इस शब्दका प्रयोग प्रदाता, वर देनेवाला। वरदात्रो (म त्रि०) वर देनेवाली। अव उठता जा रहा है। वरदाधीश यज्वन्-एक प्रसिद्ध स्मारी वेड्डटाघशक पुत्र। वग्ना (म० अध्य० ) नहीं तो, यदि ऐसा न होगा तो। इन्होंने प्रयोगवृत्त और प्रायश्चित्तप्रदापि लिम्वी। जैसे-आप चेठिये, वरना में भी उठ कर चला जाऊंगा। वरदान (म० की०) वरम्य द नं। १ अभिलपित विषय वरनारी (स० लो०) सुन्दरो रो । प्रदान, विसी देवता या बड़े का प्रसन्न हो कर कोई अभि- वरनिश्चय (२० पु०) पतिनिर्वाचन, पति चुनना। लपित बस्तु या मिद्धि देना। २ किसो फलका लाभ वरपक्ष (सं० पु०) बरयान, वरात । जो फिीकी प्रसन्मनासे हो। घरपक्षिणो (सं० स्त्री०) तन्त्रोक्त देवोमेद । वरदानमय (स० वि०) बरदान स्वरूपे मयट । वरदान- वरपक्षीय (सं० त्रि०) वरका सम्पाय या बरयान- खरूप । सम्बन्धी। वरदानिक (स० त्रि०) वरदान सम्बन्धी। वरपण्डित-जयाकौतुक नामक संस्कनप्रन्यके रचयिता । चरदानी (मपु० ) वर प्रदान करनेवाला, मनोरथ पूर्ण जनावरपास्य (सं० पु० ) वराणि पर्णान्यस्य, वरपणेति करनेवाला । आरया यस्य । क्षौरक चुकी वृक्ष, क्षोरकड़ार । वरदाभूमि-जनपदभेद । ( भविष्य ब्रह्मख०६।२७ ) . वरपीत (सं० पु.) हरिताल, हरलाल । वरदायोगिनी-बंगालको एक प्राचीन राजधानो। यहां | वरपीतक (सं० पु० ) परपीन देखा । गोडाधिप गजत्व करते थे । वर्तमान नाम वन- वरपुल (सं० पु०) वह जिसने वर पाया है । जैसे-कालि. योगिनी है। दास सरस्वतीके वरपुत्र थे।