पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६०१

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-.. . ! वराह पुत्रों के निकट गये । ब्रह्माने सुरत्तो शरीरयो मुन्वयागुम्ने । बानेने अधोगति होती है। घराहको मांस खानेवालों भर दिया। जिससे दक्षिगाग्निम् उत्पत्ति है। केशव बगहयोनिमें जन्म ले कर १० वर्ष तक जंगलौम मारा पनकके शरीरको मुखवायु द्वारा पूर्ण फिया जिममे गा. मा फिरता है। इसके बाद घर व्याध हो कर ७७ वर्ष, पत्य अग्निकी और महादेवने घोरके शरीरको वायु पूर्ण कृमि रूप ७ वर्ष, चद्देफी योनिमें १४ वर्ष, गक्षमका फर दिया जिससे माहवनीय अग्निको उत्पत्ति हुई । इस शरीर धारण कर १६ वर्ष, साही नामक जन्तु बन कर ८ प्रचार प्रवाहवये या और यक्षीय सभी दृश्य तथा वर्ग, फिर णाध हो कर ३० वर्ग तक जावन विताना है। बराहपुत्रमे यज्ञीय अग्निकी उत्पत्ति हुई थी। इमफे याद घनगद मांस भक्षण करनेका पाप मिटता है। (कालिकापु० १६ २२) भूल कर घगहका माम बा लेनेमे उमका प्राय- घगहमतिमी प्रतिष्ठा करने में उसके लक्षणादिया। श्चित्तस पाप पट जाता है। प्रायश्चित्तका विषय इम विषय हरिभक्तिविलासमें इस प्रकार लिग्ना है-वराह तरहने लिया है। पहले पांच दिनों तक गोवर भोजन, म तवे मु' का विस्तार अला, कर्ण द्विगालक, धनु पीछे ७ दिन चावल का इण खा कर पवं मात दिन देश सात अंगुर, सृक्षणी दो अंगुल, बदन मान गुल, केवल जलपान करके रहना पड़ता है। इसके बाद दोनों टॉन टेढ यला, नामिकाविवर दोन जी, दोनों नेत्र दिनों तर अक्षारयणभोजन, तीन दिन मत्तू भोजन, एक जोन कुछ म, मुब कुछ मुमाराता हुआ. दोनों | ७ दिन तिल भोजन, मान दिन पत्थग्भोजन. फिर ७ कान दो रन्ध्र सपान हाने चाहिये। कानका मध्यभाग दिनों तक सिर्फ दग्धपान, इस तरहसे ४६ दिनों तक चार कला और उनकी ऊंचाई दो कला होगी। प्रीवादश थाहार संगत नधा जिनेन्द्रिय होकर रहनेमे यह पाप आठ अंगुल, ऊचाइ नेत्र के समान, अजट मझो अंग दूर हो जाता है। इस तरह प्रायश्चित्त द्वारा पाप. नृमिहदेव समान होंगे। शेषनाग न-बराहदेवके चरण मुक्त होनेसे वह विष्णुपूनाका अधिकारी हो सकता है। पकडे हुए हैं। वराह अपनी वाहुसे वसुन्धराको धारण विष्णुमकोक लिये वराहमाम स्त्राना बिलकुल हो निषेध कर अवस्थित है। इसके बाम भागमे शव और पद्म, है, यहां तक कि, उन्हें किसी तरह के मांस मत्स्य एवं दक्षिण भागम गदा और चक्र है। इस प्रकार वराहदेव मद्यादि का बहार नहीं करना चाहिये। व। मूति प्रतिष्ठा करनेसे भवबन्धन दूर होता है तथा इस जंगला घगदका माम श्राद्धादिमें भोजन करना लोकम तरह तरहका सुख सम्पदा प्राप्त होती है। लिया है। श्राद्धम जगलो चराहके मांससे प्रक्षण वराह सं० पु० ) वरान आहन्ति वर इन ड। पशुविशेष। भोजन कराया जा सस्ता है, उससे पाप नहीं होता। 1213 शूर, घृष्टि, कोट, पोल, किरि, किोट, मद्र, विणी उपासना करनेवाले भूल पर भी इस मांसका घानो, स्तम्यरोगा, क्रोड, भूदार, फिर, मुस्ताद. मुग्ला | भक्षण न करे। गू, स्थूलनासि. दन्नायुध, करपतृ, दीर्घतर, भान इस श्रेणोके वीपाये जानवरों को पाश्चात्य प्राणो. नि: भृक्षन्, बहस । ( शब्दरत्नाकर ) उन मास नवविदोने Suidae नामक पशुका ही एक मंग कायम गुण--वृष्य रन, लाई, बहुमूनकारक और रुक्ष । लिया है । जगली तथा पालतू भेद बराह जाति गरी वराहम, मांस गुण-सेद, वल और वीर्य- यो भागाम विभक्त है। प्रेजी में पु० उंगली वराहको गई। (राजनिक Fus Indicus (wild boar) तथा स्त्री वराहको Suine इसका नाम विष्णुको चढ़ाया नहीं जाता। शास्त्रमें हते है । शर जानि भी इसी श्रेणीके अन्तर्गत पंचना जन्टका र स्वाने योग्य थाहा है, किन्तु है, किन्तु शूकर बराहकी अपेक्षा कुछ छोटा होता है। वराहक पचनम्ब जस्ताफे मध्य होने पर भी प्राम्य साधारणतः जलो वा पाल्तू सभी वगह शूकरके वराह माम अखाद्य माना गया है। वराका मांस : नामसे प्रसिद्ध है। इम श्रेणीके कितने ही पु० वराहों को वापर ना विष्णुका पूजा नहो कर सकते, उसका मास ! मी दांत नहीं निकलते । यह चतुष्पद जानवर है,