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वर्ग:पात्र-
वलपि
वर्ण पान (स० क्ली० ) वर्णस्य पात्र । चितकारका , इतने वर्ण, इतने गुरु लघु इतना फटाए और इतने पिट
रंग रखनेका वरतन ।
( -दो फल ) होंगे। जितने वर्ण हो, उतने त्राने बाप से
वर्णपुर ( स० पु० ) शुद्ध रागका एक भेद । दाहिने बनावे। फिर उन नानकि नीचे उतने दालानां
वर्णपुष्प (म० पु० ) वर्ण यन्ति पुष्पाणि यस्य कप् ।। की छः पंनियां और बनाये। पोष्ठोंकी पहली पंनिमें
गजतरुणी पुपक्ष।
१, २, ३ आदि अंक लिग्वे ; दुसरी में वर्ण मूनीकर
वर्णपुग्पक (सं० पु० ) वर्गापुष्प देखो।
(२, ४, ८, १६ आदि) लिम्वे, निमरीनिमे दूसरी पंक्ति-
वर्ण पुरी (सं० सी०) वर्ण यन्ति पुपाणि यस्याः डोप ।। के अफाके आधे अंक मरे , चांथीम पहली और दूसरी
उद्रकाण्डी पुष्पवृक्ष।
गक्तिके अलाके गुणनफल लिग पनिधीमे वीथी पनि
वर्ण प्रकर्प (सं० पु० ) वर्णको अधिक्षना।
के आधे अक भरे छठी पंकिम चीथी और पांचों
वर्ण प्रत्यय (सं० पु०) छन्दःशास्त्र या पिगलमें वे पक्तिके अशोका योग लिने और सातवी तिने पटा
क्रियाएं जिनके द्वारा यह जाना जाता है, कि अमुक पक्तियो आधे अंक भरे।
सस्थाके वर्ण वृत्तोंके कितने भेट हो सकते हैं, उनके वर्णमातृ ( स० बी० ) वर्णस्य मातेवरावग्नन-
स्वरूप क्या होगे इत्यादि । जिस प्रकार मात्रिक छन्दोंमें त्वात् । लेग्वनी, लिम ।
प्रत्यय होने है, उसी प्रकार वर्णवृत्तोंमें भो । प्रत्यय वर्णमातृका ( रां० न्त्री० ) वर्णानां वर्णमालानां मातृस्त्र :
होते हैं.-प्रस्तार, सूची, पाताल, उहिष्ट, नए, मेरु, सगड सरखनी।
मेरु, एताका और मर्कटी।
| वर्णमाला (१० सी० ) वर्णस्य माना। कमारादि
वर्णप्रमादन ( स० क्ली०) वर्णस्य प्रसादनं यस्मान। वीं की हस्व दीर्धादि माना।
अगुरुचन्दन ।
वर्णमाला (स्त्री०) वांना माला। जानिमाला,
वर्णप्रातार (स० पु०) पिगल या छन्दःशास्त्रमे वह वर्णश्रेणी। २ अक्षरोंके रूपोंकी यथा श्रेणी लिपिन
क्रिया जिसके द्वारा यह जाना जाता है, कि इतने वर्णों - मूची, किसी भाषामे आनेवाले मात्र हरफ जो ठोक सिल
के वृत्तों के इतने भेद हो सकते हैं और उन भेदोके । सिलेसे रये हों। राम्त मे ५० और विषयों ५..
स्वरूप इस प्रकार होंगे। जिनने वर्णी का प्रस्तार वर्णमाला है। तन्त्रमे ५१ वर्णमालामा निर्देन और
बहाना हो उनने वणों का पहला मेद (सर्व गुरु) लिम्वे ।। उसके जपका विधान है। अगरेजी वर्णमाला २६,
फिर गुरुके नीचे लघु लिम्ब कर शेप ज्योका त्यों लिखे।। फरासी २३, अरवी २८, पारमी ३१, तुकी ३३, दि २२,
फिर मयमे बाई ओरके गुरुके नीचे लघु लिग्ब कर आगे रूसीय ४१, ग्रीक २४, लाटिन २२. उच २६, स्पेनिम २७,
ज्योंका त्यों लिखे और बाई ओर जितनी न्यूनता रहे, इटाली २०, तातार २०२, ब्रह्म १६ । चीन देगंग वर्णमाला
उतनो गुरुमे भरे। यह क्रिया अन्त तक अर्थात् सर्ग शब्दात्मक है, इन शब्दों की संख्या प्राय. अस्सी हजार
लघु भेदक आने तक करे।
होगी। अक्षरलिपि देखा।
वर्णभेड (सं० पु०) वर्णस्य भेदः। १ वर्णका भेद, वर्ण यिनव्य ( स० स्त्रो०) वर्णनीय, वणन करने
ब्राह्मणादि वर्णको भिन्नता। २ रगका भेद ।
योग्य।
वर्णमेदिनी (सरो ) लताविशेष।
वर्ण राशि (स० पु०) वर्णसमूह, वर्णमाला !
वर्णमय (स.वि.)वर्णविशिष्ट।
वर्ण रेवा ( स० स्त्री०) वर्ण रिस्यन्तेऽनयेनि लिख कापणे
वर्णमर्कटो (सनो) पिगल छन्दःशास्त्रमे एक घञ् चलयोरैक्यं । कठिनो, पडा।
क्रिया। हमसे यह जाना जाता है, कि इतने वर्गों के । वर्ण लिपि (सं० स्रो० ) वर्ण या अक्षरप्रकाशक लेविन
इतने वृत्त हो सकते है, जिनमें इनने गुर्वानि, गुवन्त और , प्रणाली (Alphabetic writing ) ।
इतने लम्चादि लध्यन्त होंगे तथा सब वृत्तोंमें मिला कर
विशेष विवरणा अक्षरलिपि मन्दम देखो।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६३१
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