पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६३५

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६५० वर्गाचा श्रमधर्म पिण्डायरक प्रबल होनेमे त्रुपक्ष का देशभङ्ग, सेना वर्णाधिप (म० ए०) वर्णानां ब्राह्मणादीनामधिपः । पति और मन्तिनियोग ये सबर्ग करे। फलितज्योतिष के अनुमार ब्राह्मणाटि वर्गों के अधिपनि फिर देगेश्वर के रवल होनेमे नमम्मय आणत्र ग्रह । ब्राह्मणाके अधिपनि बृहस्पति और शुक्र, क्षत्रियके अर्थात अणिमादिसपटेश्वर्यन तिथिपत्रक, गाम्नव और भौम और रवि. वैश्य चन्द्र, शूद्रक बुध और अन्त्यजके शाक्त य इत्यादि शारो रेक योग साधन करे। शनि माने जाते हैं। जिस नामसे निदिन व्यक्तिका पुकारा जाता है, वर्णान्यत्व (सं० क्लो०) दूसरे वर्ण का भाव, वर्णका जिस नामले पुकारने पर मनुष्य गमन करने है, उस परिवनन । नामके आदि वर्णम जो मात्रा अर्थात स्त्रर होगा उसोका वर्णापेन (स० वि०) वर्णदपेनः । वर्णहीन, मंकर जानि । नाम मानास्वर है। जिस प्रकार रजनीकान, इम नाम- वर्णाश्रम ( सं० पु० ) वर्गाना चानुपर्गना आश्रमः ! फा आदि अक्षर हुशार' और 'र' से अ संयुक्त है। चातुर्वर्णाश्रम, चारों वर्ण आश्रम । अतएव मानास्थर होगा ' गेदय शब्दमे देसा। वधिमधर्म (40 पु० ) चारों वर्ण का साश्रमधर्म । मात्रास्त्राचका ब्राह्मण, क्षत्रिय, वेश्य और शूट ये चार वर्ण आश्रममें रह कर जिस वृत्ति द्वारा जोविका और जिम कर्म द्वारा ऐहि और पारत्रिक कल्याण लाम र मकते हैं, उसको आश्रमधर्म कहते हैं। भिन्न भिन्न वर्णका भिन्न भिन्न आश्रम । महाभारतमे लिखा है, कि युधिष्ठिरने भीष्म देवमे पूछा था, कि मब वर्गों का नाधारण घम क्या हैं? तथा चार वर्णों का पृथक पृगक धर्म ही क्या है ? सि किस वर्णका किन किम आश्रममे अधिकार है १ मीष्म- देवने उत्तरमे कहा था, कि वार वर्ण के आश्रमधर्म का विपकहना है, सुनो। क्रोध परित्राग, मत्स्याय:- प्रयोग, मम्पकमाने वन विभाग, क्षमा, अपनो पत्नीम पुवोत्रादन परिनना, अहिंसा, सरलता ओर भृत्यका भरणपोषण ये नौ ममी वर्णो माधरण श्रम हैं। इन्द्रियदमन और वेदाध्ययन ही ब्रह्मणका प्रधान धर्म है । शान्तस्कमाव और नानवान ब्रह्मग यदि अमन कार्य । टि : टु, टे टो नरके सत्पधसे धन लाभ,र मकै, तो विवाह करके सन्तान उत्पादन, दान ओर यज्ञानुष्ठान करना उनका वर्ण ( स० बी० ) वृषाने मयने दति वृणु मक्षणे व कर्तव्य है। ब्राह्मण चाहे दूसरे कार्यका अनुष्ठान करें कायाम् । गढी , अरहर । वर्णाडा (#० स्त्री०) वर्णा अट्टान्तेऽनघेति अङ्क करणे, घन्, चाहें न करें, पर उनके वेदाध्ययननिरत और सदाचार- तनहाया लेखना, हलम! सम्पन्न होनेसे ही उनके वर्णाश्रम धर्मकी रक्षा होती है। वर्णाट ( म० पु.) वर्णान् अरनीति अट-अच् । १ गायन, घनदान यज्ञ'नुष्ठान, अध्ययन और प्रजापालन ही गया। चित्रकार। ३ नीकृतजावन, वह जिमसी। क्षत्रियका प्रधान धर्म है। जाचा, याजन वा अध्यापन जीविका खाम चलती हा। अवियोंके लिये निषिद्ध है। चोर डकैतोंका वध करने के लिये वणात्मन् (सं० पु०) वर्णः अक्षरम् आत्मा स्वरूपं यस्य । सदैव तैयार रहना, समगङ्गणमें विक्रम दिखलाना गन्द। क्षालयोंका कर्तव्य है। चोर डकैतोंके नाश करने के सिवा g | a C ca (ca ! ch64 | a ! in aw avavaan / an anna