पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६३६

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वर्णाश्रमधम पतियका प्रधान कर्म और कुछ मो नहीं दान, मध्य | मनुष्य वानप्रस्थ मैदय, गाह स्य और ब्रह्मचय इन यन और यश द्वारा हो भवों का कल्याण गना है। राजा चार आननो भयरम्बन करन हैं। ब्रह्म समाधममें दुमरा कोई काम करे चाहे न करे, पर आनारनिष्ट हा करल ब्रह्मणका ही अधिकार है। आज सम्पा कर हे प्रनापारन करता दो पडगा। इमोस पाव । निनोदय नाग पहले उपनयनादि सरकारसे सस्टन धर्मको रक्षा होती है। होकर ब्रह्मवर्ग ग्रहा आयाधानानि कार्य समाधान, दान अध्ययन, यमानुष्ठान, मदुपाय द्वारा धन मञ्च वेदाध्ययन गौर १ छे गाह रूप धमका प्रतिपालन कर तथा पुरके मनान पशुगलन करना हो सका रित्य करल पत्नाक साथ वानप्रस्थ अम्बन करे । इस धर्म है। इस मिया दूसरे किमी काय का अनुष्ठान माधमपंच आरण्यक शास्त्राका अध्ययन कर ऊदुधरेता परनेसे वैश्या अधर्म में लिप्त होना पड़ता है। हो मामानास ब्रह्म में लीन हो माते हैं । ब्रह्मवर्ग मगवान् प्रन पनि प्रमादितान पगों का नाम तोगा ममात परक हा मोक्षगमा भैदर धर्मका आश्रय कह का कारण हो है । अतएर नान वर्णों का परि लेना ब्रह्मणोंक लिये दापारह ना है। इस भा.जमर्म चर्या करना होगा प्रधान धम है। यदि घनो वे सुखदु वरहित, तिकतन विहीन यदन्डाल घनानी, नन र धनी हो जाये तो प्राण प्राटि उत्ट ज्ञानिया दात निन्दिर मत्रोंक प्रति मम एसापन भाग उमके वा भूत हो माता है इसलिये शूद्रो वाहिय कि कामनाशून्य और निर्विकारचित्त हो भतमें ब्रह्म पदको खाने पान सिगा वह यधिा अर्थसञ्चय न 2 रनमे प्रत होते हैं। उमका पापग्रन हाना रहता है। नितु राजार आदेशा क्षत्रियादि पण भा घमणों दृष्टा तानुसार ही नुमार शूद धर्मायक अनुष्ठानाम् अर्थमञ्चय कर पामर यादि माध्रमका परम्वन करे। स्पधर्मनिरत माता है। ब्राह्मणादि नान पण शूद्रको भरण पोषण । तयस और शूमामा भैत्यधर्मप्रहण आधार तगा छन पेटा, "पन, आमन, उपानत् "गल चामर है। कृतारा परिणतयक वैश्य मा रानाका मनु और वन मादिगन करे। यह सदा मनिलेर दमरा आश्रम प्रण फरसाते हैं। क्षत्रिय धर्मल घन है। अपसञ्चय करना शुदा आप्रकार वेद मोर रानाति समयन, म नात्यान, सोमरस नहीं है। पान राजसूर और अश्वान आदि पानीमा अनुष्ठान, ___ यह नाना मारवा है तथा उमके पल भी अनेक चम्पाठ करा वर वालणगे दक्षिणा दान और श्राद्धादि हैं। ग्रहाण क्षत्रिय वैश्य और शूट ये चारों वर्ष ममा द्वारा पिनर का तृप्त पर शयावस्था दुमरा आश्रम यज्ञ कर माने हैं। शूटा यशमे अधिकार रहन पर भी' ग्रहण कर मत है। पत्निय गृहस्थधर्मका परित्याग पर मनम उने अधिकार नहीं है। चार जणाक समी यो सपना जावन रक्षाक रिपे हा भिक्षावृत्तिका अवनम्वन मबसे पदरे अदायका अनुष्ठान करना कत्तश्य है। रसाने हैं। मिस प्रतिमा अपरम्यन अलियादि तीन ध्रद्धा महदेवना म्वरूर है। यह पाशगेकी पवित्रता वर्गों का काम्पधम है, नित्यधम नहा । सम्पादनकाता। चार वर्णों के मध्य मत्य त प्रदा ____माननमात्रीक मध्य एक क्षत्रिययर्ण हो श्रेष्ठतर सापत दोन हारो यज्ञानुष्ठ ना अधिकार होता है। धर्मी मेवा करते है। पदम बहार नि अन्य तीन मनुष्र चारी मादि पापकायों में भामत दो घर मा यद वर्गों के सभी घर तथा समा उपघम क्षानमार यज्ञानुष्ठान करे, तो मा उस माधु पहा ना सस्ता यायत्त है । जिम प्रकार सभी प्रागयो क पचिह्न तथा महर्पिगण भी उसी प्रशसा परा हैं। त्रिलोके हाथा पदचिहम तीन हो शान हैं, उसी प्रकार ममा मध्य यश समान दूसरा कारवाय नहीं है। अलपत्र धर्म रानधम म लान हो गये हैं। पण्डितो न अन्यान्य चारों यों को अब शन्य हो पर धद्वापूर साध्या धमाको माफमद तथा क्षत्रिय को आश्रमका रूप यमानुपान करना चाहिये। | मारभून और रयाणा एकमात्र निदान यताया है।